दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरिवंद केजरीवाल को देश की सर्वोच्च अदालत से दिल्ली शराब घोटाला मामले से जुड़े सीबीआई केस में जमानत मिल गई है. जिसके बाद केजरीवाल शुक्रवार शाम को तिहाड़ जेल से बाहर आ गए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अहम शर्तों के साथ केजरीवाल को बेल दी है लेकिन केजरीवाल का बाहर आना आम आदमी पार्टी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है.
पिछले डेढ़ साल से पार्टी अपने सबसे नाजुक दौर से गुजर रही है. पार्टी के कई शीर्ष दिग्गज नेता शराब घोटाला केस में तिहाड़ जेल में बंद थे. वहीं अब सुप्रीम कोर्ट से लगभग सभी नेताओं को राहत मिलती नजर आ रही है. पहले संजय सिंह फिर मनीष सिसोदिया और अब सीएम केजरीवाल को बेल मिलने से आप में एक जान फूंक दी है. केजरीवल को जमानत तो मिल गई है लेकिन वो मुख्ममंत्री पद के जुड़े दायित्वों का निर्वाहन नहीं कर सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि वो ना दफ्तर जाएंगे और ना ही किसी भी फाइल पर साइन करेंगे. साथ ही केस से जुड़े किसी व्यक्ति से बात तक नहीं कर सकेंगे. आइए जान लेते है इस तरह की सुप्रीम शर्तों के साथ केजरीवाल कैसे मैनेज करेंगे. आखिर केजरीवाल को जमानत मिलने के मायने क्या हैं.
सरकार चलाने में मुश्किलें
शर्तों के मुताबिक केजरीवाल किसी भी फाइल पर साइन नहीं करेंगे, दफ्तर नहीं जाएंगे. जिसकी वजह से वो नीतिगत फैसले नहीं ले पाएंगे. ऐसे में उन्हें सरकार चलाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. अनुमान लगाया जा रहा था कि केजरीवाल जेल से बाहर आने के बाद ताबड़तोड़ फैसले लेंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की शर्तों के चलते वो ऐसा नहीं कर पाएंगे. इसके साथ ही आप ने इस साल के बजट में दिल्ली की महिलाओं को प्रति महीने 1 हजार रूपये देने का वादा ऐलान किया था. वो स्कीम और कई कार्य दूर-दूर तक धरातल पर उतरते नहीं देख रहीं है.
चुनाव प्रचार में झोकेंगे ताकत
इस साल जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल दोनों ही प्रदेशों में चुनाव प्रचार की कमान संभालेंगे. जम्मू-कश्मीर में पार्टी का इतना जनाधार ही नहीं है. पार्टी ने पहले चरण के लिए ही 7 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. लेकिन हरियाणा में पार्टी सभी 90 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ रही है. दिल्ली और पंजाब दोनों में आम आदमी पार्टी की सरकार है और अरविंद केजरीवाल खुद हरियाणा में पैदा हुए हैं. ऐसे में केजरीवाल हरियाणा में पूरी ताकत झोकेंगे. वहीं अगली साल फरवरी में दिल्ली में भी विधानसभा का चुनाव होना है. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि केजरीवाल दिल्ली की जनता की नब्ज पकड़ने में खिलाड़ी है. वो दिल्ली चुनाव के रणनीति और बीजेपी को घेरने के लिए नया प्लान जरूर तैयार करेंगे.
पद से नहीं देंगे इस्तीफा?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे. क्योंकि उन्होंने शराब घोटाला केस में जेल जाने के बाद भी इस्तीफा नहीं दिया और अब जेल से बाहर आने के बाद वो इस्तीफा कैसे दे सकते हैं. बीेजेपी लगातार केजरीवाल के इस्तीफे की मांग कर रही है लेकिन केजरीवाल ने इसे बीजेपी का षड़यंत्र बताकर कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया.
क्या दिल्ली में लगेगा राष्ट्रपति शासन?
पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय राजधानी में राष्ट्रपति शासन लगने की अटकलें तेजी से चल रही है. इसके संबंध में दिल्ली के बीजेपी विधायकों का दल, नेता राजकुमार आनंद के साथ राष्ट्रपति से मिला है और ज्ञापन सौंपकर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी. राष्ट्रपति ने भी इस ज्ञापन को केंद्रीय गृह मंत्रालय को विचार के लिए भेज दिया है. बीजेपी विधायकों की ओर से हवाला दिया गया था कि मुख्यमंत्री जेल में है जिससे संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है. इसलिए मौजूदा सरकार को बर्खास्त कर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए. लेकिन अब केजरीवाल जेल से बाहर आ गए है. ऐसे में बीजेपी की ओर से उठाया गया ये मामला ठंडे बस्ते में जा सकता है. हालांकि अंतिम फैसला गृह मंत्रालय को करना है.
गठन को बिखरने से बचाने की चुनौती
आप के सर्वोच्च नेता के पिछले 6 महीन से जेल में होने से पार्टी का संगठन कमजोर भी पड़ा और बिखरता भी नजर आया. कई पार्टियों के बड़े नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया जिनमें पूर्व मंत्री राजकुमार आनंद आप से छिटकर बीजेपी में चले गए. तो वहीं सीमापुरी से विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र कुमार गौतम ने कांग्रेस में शामिल हो गए. कई आप पार्षदों और कार्यकर्ताओं ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया. केजरीवाल की गैरमौजूदगी में उनकी सुनीता केजरीवाल से लेकर मनीष सिसोदिया और संजय सिंह तक संगठन से जुड़े फैसले ले रहे थे. इससे पहले आतिशी, सौरभ भारद्वाज और सांसद संदीप पाठक को आगे किया गया था. लेकिन अब केजरीवाल के वापस आने के बाद संगठन में जान आई है. अब केजरीवाल के बाहर आने पर कई अहम नेताओं को संगठन के भीतर नई जिम्मेदारियां दी जा सकतीं हैं ताकि पार्टी की गाड़ी दोबारा पटरी पर लौट सके.
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