नई दिल्ली: चीन के साथ सैन्य टकराव के बीच पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे स्थानों पर उच्च ऊंचाई वाले युद्ध के लिए डिजाइन किए गए स्वदेशी जोरावर लाइट टैंक का पहला परीक्षण रेगिस्तानी इलाकों में किया गया है. फील्ड ट्रायल ने रेगिस्तानी इलाकों में इच्छित उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया है. डीआरडीओ ने शुक्रवार को परीक्षण के फोटो और वीडियो रिलीज करके परीक्षणों के दौरान टैंक की फायरिंग में सटीकता के प्रदर्शन की पुष्टि की है.
First phase of developmental field firing trails of Indian Light Tank successfully conducted. The field trials have successfully met the intended objectives in desert terrain. During trials the tank demonstrated required accuracy on the intended targets.@DefenceMinIndia pic.twitter.com/cm9qr4uHsJ
— DRDO (@DRDO_India) September 13, 2024
2027 तक सेना में होंगे शामिल
चीन की सीमा पर पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त तेज़ बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों की तलाश पूरी हो गई है. लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने डीआरडीओ के सहयोग से ढाई साल के भीतर स्वदेशी लाइट टैंक जोरावर का पहला प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है. दो साल तक परीक्षण होने के बाद 2027 तक इसे सेना में शामिल कर लिया जाएगा. लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में उच्च ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों के साथ-साथ कच्छ के रण जैसे नदी क्षेत्रों में भी इन हल्के टैंकों को तेजी से तैनात किया जा सकता है.
चीन को काउंटर करने में मदद करेगा जोरावर टैंक
पूर्वी लद्दाख में टकराव के बाद भारतीय सेना ने चीन को चौतरफा घेरने के लिए एलएसी पर 40 से 50 टन वजन वाले रूसी मूल के भीष्म टी-90, टी-72 अजय और मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन भी तैनात कर रखे हैं. लद्दाख के ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए सेना के जवानों को कई दर्रों से गुजरना पड़ता है. ऐसी स्थिति में ऑपरेशन के दौरान आवश्यकता पड़ने पर टी-72 और अन्य भारी टैंक उस स्थान तक नहीं पहुंच सकते हैं. इसलिए उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए हल्के वजन वाले टैंकों की जरूरत महसूस की गई ताकि इन्हें 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर ले जाया जा सके.
इसके बाद भारत ने खुद ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ के तहत 25 टन से कम वजन वाले 354 टैंकों का निर्माण करने का फैसला लिया. सैद्धांतिक रूप से डीआरडीओ को 2021 के अंत तक 354 टैंकों की आवश्यकता में से 59 का निर्माण करने के लिए हरी झंडी दे दी गई थी। इसके बाद डीआरडीओ ने हल्के टैंकों को विकसित किया और एलएंडटी को इसके निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई. डीआरडीओ और एलएंडटी ने टैंक की डिजाइन तैयार की है, के-9 वज्र सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टी 155 मिमी. की चेसिस पर आधारित है. एलएंडटी ने ही गुजरात के हजीरा में एलएंडटी के प्लांट में के-9 वज्र टैंक तैयार किया है.
अब एलएंडटी ने डीआरडीओ के सहयोग से ढाई साल के भीतर स्वदेशी लाइट टैंक ज़ोरावर का पहला प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है, जिसका अनावरण 6 जुलाई को किया गया था. ये सभी टैंक हल्के होने के साथ-साथ बेहतर मारक क्षमता और सुरक्षा प्रदान करने वाले होंगे. डीआरडीओ प्रमुख डॉ. कामत ने कहा कि पहला प्रोटोटाइप अगले छह महीनों में विकास परीक्षणों से गुजरेगा और फिर भारतीय सेना को दिसंबर तक उपयोगकर्ता परीक्षण के लिए सौंप दिया जाएगा. परीक्षण पूरे होने में संभवतः दो साल लगेंगे और इसके बाद 2027 तक इसे सेना के बेड़े में शामिल कर लिया जाएगा.
हिन्दुस्थान समाचार
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