15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने के बाद देशी रियासतों को दो विकल्प दिए गए. यानि कि वो रियासत भारत में शामिल हो जाए या पाकिस्तान के साथ चली जाए. इसके आधार पर सभी रियासतों ने अपना-अपना देश चुन लिया. तत्कालीन भारत सरकार ने 500 से ज्यादा रियासतों को भारत के साथ एकुजट करने में सफल रही. लेकिन कुछ राजाओं को निर्णय लेने में काफी समय लगाया. उनमें से एक हैदराबाद के निजाम भी थे. वह अपना अलग देश चाहते थे.
दूसरी ओर पाकिस्तान की ओर से राजाओं को अपनी ओर करने के लिए चालें चली जाने लगी. तब भारत के तत्कालीन गृहमंत्री और लौह पुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल दीवार बनकर खड़े हो गए. सरदार पटेल, भारत की आत्मा से किसी भी प्रकार के खिलवाड़ होने के सख्त विरूद्ध थे.
80 फीसदी जनता हिन्दू लेकिन निजाम का शासन
हैदराबाद के निजाम ने विलय से इनकार कर दिया और अपना अलग देश बनाने के अड़ गया. बता दें उस समय हैदराबाद की 80 फीसदी आबादी हिन्दुओं की थी और वो भारत के साथ जाना चाहती थी लेकिन वहां के निजाम को ये नागवार था. निजाम ने पूरा जोर लगाया कि भारत में हैदराबाद का विलय नहीं हो, उसने अंग्रेजों से इसे स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर राष्ट्र-मंडल देशों में शामिल करने का अनुरोध किया, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उसका अनुरोध ठुकरा दिया. निजाम ने फिर मोहम्मद अली जिन्ना को चिट्ठी लिखी और भारत से युद्ध की स्थिति में सहायता का अनुरोध किया लेकिन जिन्ना इतना बड़ा साहस नहीं जुटा पाया और उसने मना कर दिया. जिन्ना की मौत के बाद पाकिस्तान ने पुर्तगाल को हैदराबाद की मदद करने को कहा लेकिन पुर्तगाल भी सरदार पटेल के चलते सामने नहीं आया.
निजाम की सेना ने हिन्दुओं पर किए अत्याचार
निजाम अपनी रजाकार सेना के माध्यम से वहां बहुसंख्यक हिन्दुओं को दबाने लगा. उस समय हैदराबाद में एक सोची-समझी साजिश के तहत सभी ऊंचे पदों पर मुसलमानों का कब्जा था जबकि बहुसंख्यक जनता हिन्दू थी. रियासत में ज्यादातर टैक्स हिंदुओं से ही वसूले जाते थे. बहुसंख्यकों पर लादे इन्हीं करों से शाही खजाना बढ़ता चला गया. जनता बहुसंख्यक होते हुए भी निजाम अपनी जिद पर अड़ा रहा. स्थिति इतनी खराब थी कि हिंदुओं का शारीरिक उत्पीड़न का भी शिकार होना पड़ा रहा था. खुलेआम कत्लेआम मचा रखा था. जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था.
क्या था समझौता?, जिसका निजाम ने किया उल्लंघन
हैदराबाद का निजाम इस बात पर अड़ा हुआ था कि वह अपनी स्वतंत्र संप्रभु राज्य की स्थिति को नहीं त्यागेगा. वो भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार है. समझौते में हैदराबाद के लिए स्वायत्तता की शर्तें रखी गईं. इन शर्तों में पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध की स्थिति में हैदराबाद भारत के साथ पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध में शामिल नहीं होगा. वहीं सरदार पटेल के पास खुफिया सूत्र लगातार सूचनाएं भेज रहे थे कि निजाम भारत को अपनी बातों में उलझाकर विदेशों से हथियार मंगवा रहा है.
यह स्थिति चलती रही और कई दौर की बातचीत के बाद, नवंबर 1947 में हैदराबाद ने भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें राज्य में भारतीय सैनिकों को तैनात करने के अलावा अन्य सभी व्यवस्थाओं को जारी रखा गया.
हैदराबाद में हिन्दू भी अपने अस्तित्व और संघर्ष की लड़ाई लड़ रहे थे और इस संघर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उनके साथ था. वह हैदराबाद की मुक्ति के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे. 15 अगस्त के बाद स्थानीय हिंदुओं ने निज़ाम के विरुद्ध जनसंघर्ष तेज कर दिया था. निज़ाम की सेना, रजाकार और रोहिल्ला लड़ाके सत्याग्रहियों पर अत्याचार कर रहे थे और पकड़कर जेलों मे डाल रहे थे. जनवरी 1948 मे निज़ाम ने बाहर से भाड़े के गुंडे बुलवाकर सत्याग्रहियों पर जेल के भीतर भी हमले करवाए.
मेजर जनरल जे.एन. चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 की सुबह 4 बजे हैदराबाद में अभियान शुरू कर चुकी थी. महज पांच दिन के अंदर 17 सितंबर 1948 की शाम 5 बजे निजाम उस्मान अली ने रेडियो पर संघर्ष विराम और रजाकारों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. इसके साथ ही, हैदराबाद में भारत का सैन्य अभियान समाप्त हो गया.
पांच दिन तक चले इस ऑपरेशन के बाद 17 सितंबर की शाम 4 बजे हैदराबाद रियासत के सेना प्रमुख मेजर जनरल एल. ईद्रूस ने अपने सैनिकों के साथ भारतीय मेजर जनरल जे.एन. चौधरी के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. इसके बाद हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय का हो गया.
ये भी पढ़ें- भारत ने चीन को हराकर पांचवीं बार जीता एशियाई हॉकी चैम्पियंस ट्रॉफी का खिताब
ये भी पढ़ें- केजरीवाल ने उपराज्यपाल को सौंपा इस्तीफा, आतिशी ने सरकार बनाने का दावा किया पेश
कमेंट