आंध्र प्रदेश का तिरुपति मंदिर लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. ये मंदिर तिरुमाला पहाड़ी पर स्थित है. मंदिर के गर्भगृह में जिस ईश प्रतिमा की स्थापना की गई है उसे भक्तगण भगवान वेंकटेश, वेंकटेश्वर और तिरुपति स्वामी व तिरुपति बालाजी के नाम से जानते हैं. इस मंदिर की तीन बातें प्रसिद्ध है. पहला ये कि तिरुपति मंदिर देश के सबसे धनी मंदिरों में से एक है. दूसरी इस मंदिर में साल भर में करोड़ो भक्त पहुंचते हैं, है तो चढ़ावे की धनराशि भी इससे कम नहीं होती. तीसरा इस मंदिर का लड्डू प्रसाद. तिरुपति की यही प्रसाद वाली प्रसिद्धि चर्चा में है. यहां के प्रसिद्ध लड्डुओं में मिलावट की बात सामने आई है.
इस लड्डू में मिला है- बीफ फैट, फिश ऑयल और एनिमल टैलो मिला है. अब इस मामले में आगे क्या किया जाएगा वो बाद में पता चलेगा, लेकिन आज हम आपको इस लड्डू प्रसाद के इतिहास, शुरुआत और मान्यता के बारे में बताएंगे. ड्डू प्रसाद तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर की पारंपरिक रीतियों और भक्ति-पूजा से जुड़ा हुआ है. तिरुपति बालाजी के मंदिर में लड्डू को विशेष प्रसाद के रूप में उन्हें अर्पित किया जाता है. बेसन, घी, चीनी, काजू, किशमिश मिलाकर इस लड्डू प्रसाद को बनाया जाता है.
लड्डू प्रसादम का क्या है इतिहास?
ऐसा कहा जाता है कि तिरुपति के लड्डू प्रसाद की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई. वैसे लोगों की अपार श्रद्धा और इसका प्रसादम के रूप में वितरण सदियों पुरानी परंपरा है. तिरुपति के लड्डू को 2009 में Geographical Indication-GI टैग भी मिला था. यानी इसे केवल तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर में ही बनाया जा सकता है. तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद का धार्मिक महत्व होने के साथ ही इससे कई लोककथाएं भी जुड़ी हैं. इन लड्डुओं को खास सामग्री जैसे बेसन (चने का आटा), चीनी, घी, काजू, किशमिश, इलायची, और अन्य ड्राई फ्रूट्स के साथ मिलाकर बनाया जाता है. इसे खास तौर पर मंदिर की रसोई में पारंपरिक विधान से तैयार किया जाता है, जिसे “पोटू” कहा जाता है.
प्रसाद में लड्डू को ही क्यों अपनाया गया इसका कारण द्वापर युग से जुड़ा है. दरअल, भगवान कृष्ण के बालपन में नंद बाबा और मां यशोदा भगवान विष्णु की पूजा कर रहे थे. इस दौरान नंद मे भगवान विष्णु को लड्डूओं का भोग लगाया. जब उन्होंने आंखे खोलकर देखा तो कन्हैया मजे से भोग के लड्डूओं को खा रहे थे. ऐसा कई बार हुआ, तो नंद और मां यशोदा ने कान्हा को डांट भी. इस पर तोतली आवाज में भगवान ने कहा कि आप दोनों भोग तो बार मुझे ही लगा रहे हो. इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने दोनों को अपने चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन दिए और साथ ही कहा कि ये लड्डू बड़े स्वादिष्ट हैं. अब ये मुझे भोग के लिए माखन की तरह प्रिय होगा. तभी से चतुर्भुज श्रीकृष्ण को लड्डुओं का भोग लगाया जाने लगा.
तिरुपति मंदिर में श्रीकृष्ण का ही चतुर्भुज स्वरूप स्थापित है जो कि भगवान विष्णु का ही सनातन स्वरूप है. तिरुपति का अर्थ है तीनों लोकों का स्वामी. एक और कथा के अनुसार, एक समय जब तिरुमला की पहाड़ियों पर भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति स्थापित की जा रही थी, तब मंदिर के पुजारी इस उधेड़बुन में थे कि प्रभु को प्रसाद में क्या अर्पित करें.
तभी एक बूढ़ी मां हाथ में लड्डू का थाल लेकर आईं और उन्होंने प्रथम नैवेद्य चढ़ाने की मांग की. जब पुजारियों ने इसे भोग लगाकर प्रसाद रूप में ग्रहण किया तो इसके दिव्य स्वाद से वह दंग रह गए. उन्होंने बूढ़ी माई से कुछ पूछना चाहा तो देखा कि वो गायब थीं. तब माना गया कि खुद देवी लक्ष्मी ने प्रसाद का संकेत देने के लिए सहायता की थी.
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