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कभी तेल और हथियार सप्लाई करते थे ईरान-इजरायल, दो देशों की दोस्ती आखिर दुश्मनी में कैसे बदली?

इजरायल 14 मई 1948 को बना. उससे पहले इस देश का कोई अस्तित्व नहीं था. ये सारा फिलिस्तीन था. इस पर कभी ऑटोमन साम्राज्य शासन किया करता था.

Editor Ritam Hindi by Editor Ritam Hindi
Oct 3, 2024, 09:41 am IST
ईरान और इजरायल अब जंग के मुहाने पर खड़े हैं

ईरान और इजरायल अब जंग के मुहाने पर खड़े हैं

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मध्य पूर्व में तनाव के हालात हैं. वजह है ईरान का इजरायल पर मिसाइल अटैक. ईरानी हमले के बाद दोनों देश जंग की कगार पर खड़े हैं, लेकिन आपको जानकर हैरत होगी कि इन दोनों दुश्मन देशों में कभी बहुत अच्छी दोस्ती हुआ करती थी और दोनों के रिश्ते भी बहुत मधुर थे, लेकिन आज हालात पूरी तरह से अलग है. ईरान और इजरायल के रिश्तों में कड़वाहट कैसे आई, इसे समझने के लिए इतिहास के पन्ने पलटने होंगे. वहीं से हमें इस बात जवाब मिलेगा.

इजरायल 14 मई 1948 को बना. उससे पहले इस देश का कोई अस्तित्व नहीं था. ये सारा फिलिस्तीन था. इस पर कभी ऑटोमन साम्राज्य शासन किया करता था. संयुक्त राष्ट्र ने साल 1947 में ये प्रस्ताव रखा कि फिलिस्तीन को यहुदी और अरब राज्य में बांट दिया जाए. जबकि जोयेरूशलम के लिए प्रस्ताव रखा गया कि उसे एक अंतरराष्ट्रीय शहर बना दिया जाए. यहूदी नेताओं को ये प्रस्ताव मंजूर था, लेकिन अरब नेताओं ने इसे नामंजूर कर दिया.

संयुक्त राष्ट्र के इस प्रस्ताव की खिलाफत 13 देशों ने की थी और उनमें ईरान भी शामिल था. इतना ही नहीं साल 1949 जब इजरायल संयुक्त राष्ट्र में सदस्य बना तब भी ईरान ने उसके संयुक्त राष्ट्र में प्रवेश का विरोध किया था और प्रवेश के खिलाफ वोटिंग की थी. शुरुआती विरोध हो रहे थे, लेकिन जियोपॉलिटिकल और रणनीतिक हितों के कारण जल्द ही ईरान और इज़रायल के बीच सीक्रेट रिश्तों का जन्म हुआ.

हालाकिं सार्वजनिक रूप से ईरान ने इजरायल को अब मान्यता नहीं दी थी, लेकिन फिर साल 1950 आते-आते ईरान ने इजरायल को देश के रूप में स्वीकार कर लिया. ऐसा करने ईरान तूर्की के बाद दूसरा देश था. इसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में अहम मोड़ तब आया जब साल 1953 में ईरान में शाह शासन वापस आया. मोहम्मद रजा शाह पहलवी की सत्ता में वापसी हुई और उन्होंने इजरायल से घनिष्ठ गठबंधन बनाना शुरू किया.

साल 1950 में जब ईरान द्वारा इजरायल को देश के रूप मान्यता दी गई, उस समय वेस्ट एशिया में ईरान में सबसे बड़ी यहूदी आबादी रहा करती थी. शाह पहलवी शासन ने इजरायल और ईरान एक दूसरे के सहयोगी बने. पारस्परिक लाभ से प्रेरित इस दोस्ती के चलते ईरान और इजरायल के बीच आर्थिक, सैन्य और खुफिया सहयोग में बढ़ोतरी हुई. इतना ही नहीं कम्युनिस्ट USSR को वेस्ट एशिया से बाहर रखने और साझा हितों के आधार पर दोनों देशों में एक करीबी रिश्ते का विकास हुआ, क्योंकि दोनों देशों को तब पूंजीवादी अमेरिका सपोर्ट था.

सऊदी अरब के दैनिक अरब न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक नए देश बने इजरायल को ईरान ने 40 प्रतिशत तेल की आपूर्ती की. इसके बदले इजरायल ने हथियारों, तकनीकी और एग्रीकल्चर से जुड़ी चीजों का व्यापार किया. ईरान से मिलने वाला तेल इजरायल की इंडस्ट्री और सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी जरूरी था, जबकि इजरायल के दुश्मन अरब देशों ने तेल पर प्रतिबंध लगा रखा था.

साल 1968 में ईलाट-अश्केलोन पाइपलाइन कंपनी स्थापित की गई. ये एक महत्वपूर्ण संयुक्त परियोजना थी. इससे ईरान ने मिस्र के अधीन स्वेज नहर को दरकिनार करते हुए तेल को इजरायल तक पहुंचाया. इसके बदले इजरायल ने 1980 के दशक में इराक के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए ईरान को आधुनिक सैन्य उपकरण और हथियारों की आपूर्ती की. साल 1979 में पहलवी राजवंश के पतन के साथ ही दोनों देशों के रिश्तों में बदलाव आए.

अयातुल्ला खामेनेई के नेतृत्व में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना हुई, जिसके बाद ईरान की फॉरन पॉलिसी और वर्ल्ड व्यू को पूरी तरह से उलट गई. हालांकि शुरुआती सालों में दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य रहे. साल 1980-88 ईरान इराक जंग के दौरान इजराइल ने ईरान को सालाना 500 मिलियन डॉलर के हथियार बेचे थे. इस जंग के बाद भी कुछ समय तक दोनों देशों में सीक्रेट संबंध जारी थे, लेकिन बाद में इसमें गिरावट आने वाली थी.

ईरान मानता है कि इजरायल ने फिलिस्तीन पर कब्जा कर रखा है. बाद के सालों में जब दोनों देशों के रिश्ते खराब हुए तो ईरान ने इजरायल को छोटा और अमेरिका को बड़ा शैतान कहा. दरअसल, शिया देश ईरान चाहता था कि वो मध्य पूर्व का पावर सेंटर बन जाए और इसीलिए उसने सुन्नी इस्लाम के मक्का सऊदी अरब को चुनौती देना शुरू कर दिया. उसने इज़रायल और अमेरिका दोनों को क्षेत्रीय मामलों में हस्तक्षेप करने वाला भी माना.

इस घटना के बाद ईरान ने इजरायल से सभी राजनायिक रिश्ते तोड़ लिए और फिर फिलिस्तीन और अन्य इज़रायल विरोधी आंदोलनों को सक्रीय रूप से समर्थन देने लगा. इसी समय दोनों देशों के रिश्तों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई. इसी अवधि में ईरान ने शिया लेबनानी तत्वों का भी समर्थन शुरू कर दिया, जिसने बाद में हिज्बुल्लाह का रूप लिया. साल 1991 के खाड़ी जंग के खत्म होने बाद दोनों देशों में खुली दुश्मनी युग शुरू हो गया. क्योंकि इस समय अमेरिका सोवियत संघ के विगठन के बाद इकलौता महाशक्ति बन गया.

अमेरिका के उदय ने इस क्षेत्र को और अधिक पोलराइज्ड कर दिया. वहीं, ईरान और इज़रायल ने खुद को लगभग हर प्रमुख जियो-पॉलिटिकल विमर्श में एक दूसरे के खिलाफ पाया. साल 1980 में ईरान का जो न्यूक्लियर कार्यक्रम शुरू हुआ 1990 के दशक में वो विवाद का केंद्र बन गया. पश्चिमी देशों और अमेरिका समेत इजरायल ने ईरान से कहा कि वो अपने परमाणू महत्वकांक्षाओं को त्याग दे. इसके बाद खुले तौर पर दोनों देशों में टकराव हुए.

बता दें कि, हालिया सालों में दोनों देशों के बीच दुश्मनी की आग और भड़क गई है. इसी के चलते इज़रायल और ईरान ने एक दूसरे के खिलाफ मौखिक कटाक्ष और प्रॉक्सी वॉर शुरू कर दिए हैं.

ये भी पढ़ें:‘मध्य पूर्व में भड़की आग क्षेत्र को नरक बना रही’, ईरान-इजरायल युद्ध पर बोले UN महासचिव

Tags: Iran Israel WarIran Israel TensionsIran Israel CrisisIran Israel Crisis Latest NewsIran Israel Crisis Latest News In Hindi
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