मैरिटल रेप मामले पर आज सर्वोच्च अदालत में केंद्र सरकार की ओर से हलफनामा दायर किया गया, जिसमें केंद्र की ओर से उन याचिकाओं का विरोध किया जो मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने बात कह रही थीं. केंद्र की ओर से कहा गया कि जितना ये मुद्दा कानूनी है उससे कहीं ज्यादा सामाजिक है. इसका सामान्य तौर पर सीधा असर समाज पर पड़ता है.
केंद्र ने मौजूदा भारतीय बलात्कार कानून का समर्थन किया, जो पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों के लिए इसे अपवाद बनाता है. सर्वोच्च अदालत में केंद्र ने कहा कि अगर मैरिटल रेप को अपराध भी घोषित कर दिया जाता है, तो भी अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती. सिर्फ सरकार की ओर से इस पर निर्णय लिया जा सकता है.
केंद्र ने कहा कि विवाहित महिलाओं को पहले से सुरक्षा प्राप्त हैं. ऐसा नहीं है कि विवाह के बाद उनकी मर्जी समाप्त हो जाती है, लेकिन विवाह के बाद महिलाओं की मर्जी का उल्लंघन करने की स्थिति में रेप का कानून लागू नहीं होता. इस मामले में अन्य उपाय भी हैं. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर संवैधानिक वैधता के आधार आईपीसी की 375 के अपवाद 2 को खत्म किया गया तो उसका दूरगामी असर पड़ेगा.
सरकार की ओर से ये भी कहा गया कि इसका शादी के रिश्तों पर भी गंभीर असर पड़ सकता है.सामाजिक, पारिवारिक ढांचा जो तेजी से बढ़ और बदल रहा है उसमें संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग भी किया जा सकता है. इसका कारण ये है कि किसी व्यक्ति के लिए महिला की मर्जी साबित करना मुश्किल होगा. सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि वो हर महिला की आजादी, गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.
सरकार ने अपने हलफनामें में कहा कि पत्नी की मर्जी के उल्लघन का कोई मौलिक अधिकार पति के पास नहीं है. इस मामले में व्यापक नजरिये की आवश्यकता है. याचिका के परिणाम का समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. देश में विवाह की अवधारणा को देखते हुए. जो लोगों और परिवार के अन्य लोगों दोनों के लिए सामाजिक और कानूनी अधिकार बनाता है.
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