जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद आज मतगणना जारी है. शुरूआती रूझान आने लगे हैं. जम्मू-कश्मीर अब पहले जैसा राज्य नहीं रहा. ये अब दिल्ली और पुदुचेरी की तरह केंद्र शासित प्रदेश हो गया है. यहां सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों ना बने लेकिन सत्ता की सर्वोच्च पावर एलजी यानि उपराज्यपाल के पास होगी. दरअसल, राज्य की 90 सीटों पर वोटिंग के जरिए प्रतिनिधि चुनने की प्रकिया हो रही है. इसके अलावा अन्य 5 सदस्य उपराज्यपाल मनोनित करेंगे. इनके मनोनयन के साथ ही विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 95 हो जाएगी और सरकार बनाने के लिए 48 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा. विधानसभा में सदस्यों के मनोनयन के लिए एलजी को राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह भी नहीं लेनी होगी. केंद्रीय गृह मंत्रालय की सलाह पर वह नए सदस्य मनोनीत कर सकेंगे.
जानें पूरा मामला?
9 अगस्त 2019 यानि 5 साल पहले केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 पारित किया गया था. इसके साथ ही इस राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों यानी जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में पुनर्गठित कर दिया गया था. वहीं जम्मू-कश्मीर को विधानसभा मिली तो लद्दाख पूरी तरह से केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल किया गया. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दो महिला सदस्यों को नामित करने का प्रावधान भी किया गया था. जिन्हे वहां के राज्यपाल नामित करेंगे.
संशोधन कर बढ़ाई 3 सदस्यों की संख्या
वहीं 26 जुलाई 2023 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 में संशोधन किया गया. इस संशोधन के बाद नई व्यवस्था में तीन नए सदस्यों को नामित करने का प्रावधान किया गया है. इनमें से दो सीटें( एक महिला और एक पुरूष) कश्मीर विस्थापितों के लिए हैं. जो साल 1990 के बाद कश्मीर घाटी से विस्थापित थे. वहीं वो लोग पहले से पंजीकृत भी होने चाहिए. वही एक सदस्य पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) से विस्थापित होना चाहिए. पीओजेके से साल 1947-48, 1965 और 1971 में विस्थापित सदस्य को नामित किया जाएगा.
माना जा रहा है कि नई सरकार के गठन में इन पांचों मनोनीत विधानसभा सदस्यों की बेहद अहम भूमिका होगी. अगर किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो असली सरकार की चाबी उपराज्यपाल के हाथों में रह सकती है.
पुदुचेरी के मॉडल पर होगा आधारित
जम्मू-कश्मीर में मनोनित सदस्यों का ये मॉडल पुदुचेरी के मॉडल पर आधारित होगा. वहां 3 सदस्य उपराज्यपाल मनोनित कर सकता है वो भी सरकार की सहमति के बिना. इस मनोनित विधायकों को भी वही सारे अधिकार मिलते है. जो चुने गए विधायक को मिलते हैं.
सुप्रीम कोर्ट भी लगा चुका है मुहर
मनोनित सदस्यों के विधायक बनने और उनके अधिकारों को लेकर पुदुचेरी में बवाल हो चुका है. जब वहां की उपराज्यपाल किरण बेदी ने विधानसभा में दो सदस्यों को वहां की स्थानीय कांग्रेस सरकार की सलाह के बिना ही मनोनीत कर दिया था. कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने उप राज्यपाल के अपने मन से विधायकों को मनोनीत करने के फैसले को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा तो सर्वोच्च अदालत ने उप राज्यपाल के इस फैसले में कानून का कोई उल्लंघन नहीं पाया था और इसे लीगल बताया था.
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