केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा के चुनाव हुए है. यहां नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को बहुमत मिला है. NC चीफ फारूक अब्दुल्ला ने साफ कर दिया है कि उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे. वहीं बीजेपी मुख्य विपक्षी दल की भूमिका अदा करेगी.
उपराज्यपाल ही होंगे असली बॉस
उमर अब्दुल्ला पहले भी सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वो जनवरी 2009 से जनवरी 2015 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं. लेकिन जब जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य था. वहां का अलग संविधान और झंडा था. संसद के कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे. पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता था लेकिन धारा-370 हटने के बाद वहां का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है. जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर नया केंद्र शासित प्रदेश बना दिया है और जम्मू-कश्मीर को अलग से यूटी बनाया गया है. मुख्य बात ये है कि यहां की स्थानीय सरकार को अब पहले जैसे अधिकार नहीं होंगे. सीमित अधिकार होंगे. बल्कि केंद्र सरकार का ज्यादा दखल रहेगा. यानि कि उपराज्यपाल ही प्रदेश का असली बॉस माना जाएगा.
स्थानीय सरकार को पुलिस और कानून व्यवस्था को छोड़कर बाकी मामलों में कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन उसके लिए उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी. इतना ही नहीं, उपराज्यपाल का नौकरशाही और एंटी-करप्शन ब्यूरो पर भी नियंत्रण होगा. इसका मतलब हुआ कि उपराज्यपाल सरकारी अफसरों का ट्रांसफर और पोस्टिंग उपराज्यपाल की मंजूरी से होगा. उपराज्यपाल को एडवोकेट जनरल और लॉ अफसरों की नियुक्ति करने का अधिकार भी मिल गया है. वहीं सरकार का कार्यकाल 5 वर्ष होगा.
5 विधायकों को मनोनित करने का अधिकार
मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दो महिला सदस्यों को नामित करने का प्रावधान किया था. जिन्हे वहां के राज्यपाल नामित करेंगे. 26 जुलाई 2023 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 में संशोधन किया गया. इस संशोधन के बाद नई व्यवस्था में तीन नए सदस्यों को नामित करने का प्रावधान किया गया है. इनमें से दो सीटें( एक महिला और एक पुरूष) कश्मीर विस्थापितों के लिए हैं. जो साल 1990 के बाद कश्मीर घाटी से विस्थापित थे. वहीं वो लोग पहले से पंजीकृत भी होने चाहिए. वही एक सदस्य पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) से विस्थापित होना चाहिए. पीओजेके से साल 1947-48, 1965 और 1971 में विस्थापित सदस्य को नामित किया जाएगा.
पुदुचेरी के मॉडल पर होगा आधारित
जम्मू-कश्मीर में मनोनित सदस्यों का ये मॉडल पुदुचेरी के मॉडल पर आधारित होगा. वहां 3 सदस्य उपराज्यपाल मनोनित कर सकता है वो भी सरकार की सहमति के बिना. इस मनोनित विधायकों को भी वही सारे अधिकार मिलते है. जो चुने गए विधायक को मिलते हैं.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का नंबर गेम
बता दें 90 विधानसभा सीटों वाली असेंबली में बहुमत के लिए 46 सीटें चाहिए. प्रदेश में एनसी को 42 सीटे और कांग्रेस को 6 सीटे मिली हैं. यानि गठबंधन को 48 सीटे जीतकर सरकार बनाने जा रहा है. बीजेपी को राज्य में 29 सीटें मिली है. महबूबा मुफ्ती की पीडीपी को 3 सीटे मिली तो जेपीसी-सीपीआईएम और आम आदमी पार्टी को 1-1 सीटें मिली है. वहीं 11 निर्दलीय ने भी इस बार बाजी मारी है.
केंद्र शासित प्रदेशों के बारे में जानें
केंद्र शासित प्रदेशों के लिए संविधान में 239 से 243 तक आर्टिकल में विस्तार से जानकारी दी गई है. संविधान का अनुच्छेद 239 कहता है कि हर केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपति के पास होगा. इसके लिए राष्ट्रपति हर केंद्र शासित प्रदेश में एक प्रशासक की नियुक्ति करेंगे. बता दें अंडमान-निकोबार, दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल होते हैं. जबकि दमन दीव और दादरा नगर हवेली, लक्षद्वीप, चंडीगढ़ और लद्दाख में प्रशासक होते हैं. जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन एक्ट 2019 के अनुसार, पुडुचेरी में लागू संविधान का अनुच्छेद 239A ही जम्मू-कश्मीर में भी लागू होगा. वहीं दिल्ली में धारा 239AA लागू है. दिल्ली में पुलिस, जमीन और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सभी मामलों में कानून बनाने का अधिकार दिल्ली सरकार को है.
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