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Opinion: देश के रेलवे नेटवर्क में क्यों होते है सिग्नल फेल?

एक ट्रेन कई कारणों से पटरी से उतर सकती है. ट्रैक का रखरखाव खराब हो सकता है, कोच खराब हो सकते हैं और गाड़ी चलाने में गलती हो सकती है. ट्रेन हादसों को रोकने के लिए ट्रेन की पटरियों का मरम्मत कार्य होते रहना बहुत जरूरी है.

प्रियंका सौरभ by प्रियंका सौरभ
Oct 17, 2024, 09:27 am IST
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देश का रेलवे बुनियादी ढांचा विशालतम होने के साथ बेहद पुराना है. इसके पुराने होने की वजह से भी विभिन्न कमियों के कारण दुर्घटनाओं का खतरा मंडराता रहता है. हाल ही में सिग्नल की विफलता के कारण मैसूर-दरभंगा एक्सप्रेस चेन्नई के पास एक स्थिर मालगाड़ी से टकरा गई, जिससे मजबूत सुरक्षा उपायों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश पड़ा. दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक होने के बावजूद, इस तरह की घटनाएं आधुनिकीकरण की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं.

दरअसल, भारतीय रेलवे के एक लाख किलोमीटर से अधिक फैले देशव्यापी ट्रैक नेटवर्क के जरिये प्रतिदिन करीब ढाई करोड़ यात्री अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचते हैं. साल 2019-20 की एक सरकारी रेलवे सुरक्षा रिपोर्ट में पाया गया है कि 70 फीसदी रेलवे दुर्घटनाओं के लिए उनका पटरी से उतरना जिम्मेदार रहा. इसके बाद ट्रेन में आग लगने और टक्कर लगने के मामले आते हैं, जो कुल दुर्घटनाओं में क्रमश: 14 और आठ फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं. इस रिपोर्ट में साल 2019-20 के दौरान 33 यात्री ट्रेनों और सात मालगाड़ियों के पटरी से उतरने की घटनाएं गिनाई गईं. इनमें से 17 दुर्घटनाएं में ट्रैक में खराबी के कारण हुईं. नौ हादसे ट्रेनों, इंजन, कोच, वैगन में खराबी के कारण हुए. ट्रेनों का पटरी से उतरना रेलवे के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.

एक ट्रेन कई कारणों से पटरी से उतर सकती है. ट्रैक का रखरखाव खराब हो सकता है, कोच खराब हो सकते हैं और गाड़ी चलाने में गलती हो सकती है. ट्रेन हादसों को रोकने के लिए ट्रेन की पटरियों का मरम्मत कार्य होते रहना बहुत जरूरी है. धातु से बनी रेलवे पटरियां गर्मी के महीनों में फैलती हैं और सर्दियों में तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण सिकुड़ती है. ऐसे में इनके नियमित रखरखाव की जरूरत होती है. जरा-सी लापरवाही बड़े हादसे की वजह बन सकती है. ढीले ट्रैक को कसना, स्लीपर बदलना और अन्य चीजों के अलावा, चिकनाई और समायोजन स्विच. इस तरह का ट्रैक निरीक्षण पैदल, ट्रॉली, लोकोमोटिव और अन्य वाहनों द्वारा किया जाता है.

कई वर्ग अभी भी मैन्युअल सिग्नलिंग पर भरोसा करते हैं, जिससे मानवीय त्रुटि का खतरा बढ़ जाता है, जो दुर्घटनाओं का एक महत्वपूर्ण कारक है. 2024 मैसूर-दरभंगा टक्कर सिग्नलिंग विफलता के कारण हुई. ट्रेन को गलत ट्रैक पर ले जाया गया. 2017 कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के पटरी से उतरने की घटना का कारण ट्रैक की खराब स्थिति को बताया गया था. अत्यधिक काम करने वाले कर्मचारी, विशेष रूप से लोकोमोटिव पायलट, अक्सर तनावपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं, जिससे त्रुटियां होती हैं. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की 2021 की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी सीधे सुरक्षा को प्रभावित करती है.

कई भारतीय रेलगाड़ियां पुराने कोचों का उपयोग करती हैं, जिनमें क्रैशवर्थी डिजाइन जैसी आधुनिक सुरक्षा सुविधाओं का अभाव होता है. 2023 की ओडिशा दुर्घटना में पुराने आईसीएफ कोच शामिल थे, जो आधुनिक एलएचबी कोचों की तुलना में कम प्रभाव-प्रतिरोधी थे. मजबूत आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र की कमी भी दुर्घटना होने पर क्षति को बढ़ा देती है. 2023 की बालासोर दुर्घटना में मलबा हटाने में छह घंटे से अधिक का समय लगा, जिससे बचाव कार्यों में देरी हुई.

इन कमियों को दूर करने में ‘कवच’ प्रणाली की भूमिका बहुत ही अहम है, कवच प्रणाली लाल सिग्नल पार करने पर ट्रेनों को स्वचालित रूप से रोक देती है, जिससे खतरनाक टकराव को रोका जा सकता है. रेल मंत्रालय ने दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा मार्गों पर कवच लागू किया है. इसके बाद रेल हादसों में कमी आई. कवच यह पता लगाता है कि दो ट्रेनें एक ही ट्रैक पर हैं और टक्कर को रोकने के लिए स्वचालित रूप से ब्रेक लगता है. दक्षिण-मध्य रेलवे नेटवर्क पर कवच सुनिश्चित करता है कि ट्रेनें गति सीमा से अधिक न चलें. कवच लोकोमोटिव पायलटों पर कार्यभार कम करता है, मानवीय त्रुटियों को कम करता है.

परीक्षणों से पता चला है कि कवच-संरक्षित ट्रेनों का उपयोग करने वाले पायलटों के बीच थकान सम्बंधी त्रुटियों में 50 फीसद की कमी आई है. कवच का एकीकरण कई बुनियादी ढांचे की चुनौतियों का समाधान करते हुए अधिक डिजिटलीकृत और स्वचालित रेलवे प्रणाली की ओर बदलाव का संकेत देता है. राष्ट्रीय रेल योजना 2030 में कवच को 34,000 किलोमीटर के उच्च-घनत्व वाले मार्गों पर विस्तारित करने की परिकल्पना है. 2024 के रेल बजट में 1, 112.57 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. इसी में से प्रमुख रेलवे गलियारों में कवच स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली का विस्तार होना है. कवच के कार्यान्वयन के बाद बेंगलुरु-चेन्नई मार्ग पर आपातकालीन प्रतिक्रिया समय कम हो गया है.

कवच प्रणाली सुरक्षा और दक्षता बढ़ाने के लिए एक परिवर्तनकारी समाधान प्रदान करती है. सिग्नलिंग प्रणालियों को आधुनिक बनाकर, टकरावों को रोककर और ट्रेन परिचालन में सुधार करके, कवच उन कई कमियों को दूर कर सकता है जो दुर्घटनाओं में योगदान करती हैं. भारत में सुरक्षित रेलयात्रा सुनिश्चित करने के लिए इसके कार्यान्वयन को पूरे नेटवर्क में विस्तारित करना महत्वपूर्ण है.

(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

हिन्दुस्थान समाचार  

ये भी पढ़ें- ‘भारत-कनाडा के संबंधों की क्षति के लिए सिर्फ ट्रूडो जिम्मेदार’ भारतीय विदेश मंत्रालय ने सुनाई खरी-खरी

Tags: Train AccidentIndian RailwayRailway Network
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