दो लड़कियों को बंधक बनाने के मामले में जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ईशा फाउंडेशन के खिलाफ केस बंद कर दिया. दरअसल, एक व्यक्ति ने द्वारा याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियों को जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के परिसर के अंदर बंदी बनाकर रखा गया.
मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दोनों महिलाएं बालिग हैं और उन्होंने कहा है कि वे स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के आश्रम में रह रही हैं. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर उस व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश देने की मांग की जाती है जो लापता है या जिसे अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है.
सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज की ओर से मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. पिता की ओर से लता याचिका में आरोप लगाया कि उनकी दोनों बेटियों का ब्रेनवॉश करके आश्रम में रखा गया है. बड़ी बेटी गीता 42 और छोटी बेटी लता 39 साल की है. इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु पुलिस को ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी आपराधिक मामलों को इन्वेस्टिगेट करने और रिपोर्ट पेश करने को कहा था.
हाईकोर्ट से आदेश मिलने के बाद 150 पुलिस के जवान जांच करने ईशा फाउंडेशन गए. वहीं जो आरोप ईशा फाउंडेशन पर लगाए गए उस पर उनकी ओर से कहा गया कि दोनों लड़कियां अपनी मर्जी से आश्रम में हैं. ईशा फाउंडेशन मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. इसके बाद तीन अक्टूबर को सर्वोच्च अदालत ने फाउंडेशन के खिलाफ की जा रही पुलिस जांच पर रोक लगा दी.
पिछली सुनवाई में एक युवती ने कहा था कि वह अपनी मर्जी से आश्रम में है. साथ ही लड़कियों की ओर से आरोप लगाया गया कि उनके पिता उन्हें आठ सालों से परेशान कर रहे हैं.
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