दिवाली पर हर साल आज भी बड़ी संख्या में लोग लक्ष्मी-गणेश जी के चांदी की सिक्के खरीदते हैं और अपने घरों में इसका पूजन करते हैं. चाहें चांदी की कीमत में कितना भी उछाल आ गए. दिवाली पर लोग लक्ष्मी- गणेश जी का सिक्का खरीदना नहीं भूलते. भले ही भारतीय करेंसी पर लक्ष्मी- गणेश का चित्र अब अंकित नहीं होता लेकिन एक ऐसा जमाना भी था. जब मुद्राओं पर लक्ष्मी जी का चित्र अंकित होता था.
भारतीय मुद्रा के इतिहास को खंगाले तो पता चलता है कि सबसे पहले गुप्त काल के दौरान सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण पर शुरू हुआ था. इसके बाद जब 1192 में तराईन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट प्रथ्वीराज चौहान को हरा दिया और अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सत्ता सौंपकर चला गया. बावजूद इसके सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण जारी रहा.
अकबर ने सिक्कों पर लक्ष्मी जी का चित्रण कराया था बंद
इतिहासकार राजकिशोर राजे की पुस्तक हकीकत-ए-अकबर में लिखा है कि दिल्ली सल्तनत के तमाम मुस्लिम शासकों अलाउद्दीन खिलजी, फिरोज तुगलक और सिकंदर लोदी के समय भी सिक्कों पर लक्ष्मी जी के चित्र का मुद्रण जारी रहा था. इतना ही नहीं मुगल काल के दो शासकों बाबर और हिमांयु के शासनकाल के दौरान भी लक्ष्मी जी का मुद्रण जारी रहा लेकिन अकबर के आने के बाद इसमें बदलाव हुआ. मुगल बादशाह अकबर ने सिक्कों पर से लक्ष्मी जी का चित्र हटाकर कलमा का मुद्रण कराया. इस बात की जानकारी रांगेव राघव का किताब रांगेय राघव ग्रंथावली के भाग-10 से मिलती है. किताब के अनुसार, साल 1604 में अकबर भगवान राम और सीताजी पर चांदी का सिक्का जारी किया था और पांच अधेला के सिक्के पर देवनागरी लिपि में राम सिया अंकित किया गया था. अकबर के शासनकाल में ही स्वास्तिक और त्रिशूल वाले 4 ग्राम के सिक्के जारी किए गए थे और इन्हें आगरा में स्थित फतेहपुर सीकरी के टकसाल में ढाला गया था.
सबसे प्राचीन सिक्के
भारत में पंचमार्क सिक्कों को सबसे प्राचीन माना जाता है. ये सिक्के 600 से 200 ई.पू. के माने जाने जाते हैं. सिक्के चांदी, कांसे और तांबे के बने होते थे इनकी कोई आकृति नहीं होती थी. इस तरह के सिक्कों पर पेड़, मछली, यज्ञ, वेदी, मोर, हाथी, बैल, शंख आदि चित्रित होते थे. ये सिक्के राजाओं के बजाय व्यापारी जारी करते थे.
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