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‘श्रद्धा में अंधत्व का कोई स्थान नहीं है जानो और मानो…’, बोले मोहन भागवत

सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि गत 2000 वर्षों से विश्व अहंकार के प्रभाव में चला है. मैं अपने ज्ञानेन्द्रिय से जो ज्ञान प्राप्त करता हूं वही सही है उसके परे कुछ भी नहीं है, इस सोच के साथ मानव तब से चला है जब से विज्ञान का अदुर्भाव हुआ है.

Editor Ritam Hindi by Editor Ritam Hindi
Nov 26, 2024, 11:47 pm IST
मोहन भागवत

मोहन भागवत

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि अध्यात्म एवं विज्ञान में कोई विरोध नहीं है. दोनों में श्रद्धायुक्त व्यक्ति को ही न्याय मिलता है. डॉ भागवत नई दिल्ली में मुकुल कानिटकर द्वारा लिखित एवं आई व्यू एंटरप्रायजेस द्वारा प्रकाशित जीवन मूल्यों पर आधारित पुस्तक ‘बनाएं जीवन प्राणवान’ के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि श्रद्धा में अंधत्व का कोई स्थान नहीं है. जानो और मानो यही श्रद्धा है.

सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि गत 2000 वर्षों से विश्व अहंकार के प्रभाव में चला है. मैं अपने ज्ञानेन्द्रिय से जो ज्ञान प्राप्त करता हूं वही सही है उसके परे कुछ भी नहीं है, इस सोच के साथ मानव तब से चला है जब से विज्ञान का अदुर्भाव हुआ है. परंतु यही सब कुछ नहीं है. विज्ञान का भी एक दायरा है, एक मर्यादा है. उसके आगे कुछ नहीं, यह मानना गलत है.

उन्होंने कहा कि यह भारतीय सनातन संस्कृति की विशेषता है कि हमने बाहर देखने के साथ-साथ अंदर देखना भी प्रारंभ किया. हमने अंदर तह तक जाकर जीवन के सत्य को जान लिया. इसका और विज्ञान का विरोध होने का कोई कारण नहीं है. जानो तब मानो. अध्यात्म में भी यही पद्धति है. साधन अलग है. अध्यात्म में साधन मन है. मन की ऊर्जा प्राण से आती है. यह प्राण की शक्ति जितनी प्रबल होती है उतना ही उसे पथ पर आगे जाने के लिए आदमी समर्थ होता है.

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि पंचदशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि प्राण का आधार परमात्मा है जो सर्वत्र है. प्राण की सत्ता परमात्मा से ही है, उसमें स्पंदन है, उसी से चेतना है, उसी से अभिव्यक्ति है, उसी से रस संचार है और वहीं जीवन है. प्राण चैतन्य होता है. स्वामी अवधेशानंद ने दिल्ली विश्वविद्यालय में आकार रोमांचित अनुभव करते हुए कहा कि 70 के दशक में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने का सपना देखा था, लेकिन उन्हें राजस्थान जाना पड़ गया.

उन्होंने कहा कि यहां आने का विचार उनके मन में 50 वर्ष पहले आया था और वह आज यहां पहुंच पाए हैं. पुस्तक को लेकर उन्होंने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि परमात्मा की सहज अभिव्यक्ति प्राण है और उसकी व्याख्या इस पुस्तक में है. दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने इस अवसर पर कहा कि आज की पीढ़ी तर्क प्रधान है. लेकिन अंग्रेजी में लिखी हर बात को सही मान लेना और हिन्दी व संस्कृत में लिखी बातों पर अधिक तर्क उचित नहीं है. तर्क एक सीमा तक ही सही है.

पुस्तक पर चर्चा करते हुए कुलपति ने कहा कि जब हम इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो जीवन से संबंधित लाइफ स्टाइल को समझने का मौका मिलेगा. इस पुस्तक में सबको कुछ न कुछ नया मिलेगा. जैसे पत्थर में भी प्राण हैं, ये नई बात है. इस पर बहुत तर्क करना सही नहीं, क्योंकि ज्यादा तर्क से श्रद्धा कम हो जाती है. पुस्तक के लेखक मुकुल कानिटकर ने कहा कि भारतीय संस्कृति में सब कुछ वैज्ञानिक है. आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, स्थापत्य के साथ ही दिनचर्या और ऋतुचर्या के सभी नियम भी बिना कारण के नहीं है. हज़ार वर्षों के संघर्ष काल में इस शास्त्र का मूल तत्व विस्मृत हो गया. वही प्राण विद्या है. सारी सृष्टि में प्राण आप्लावित है. उसकी मात्रा और सत्व-रज-तम गुणों के अनुसार ही भारत में जीवन चलता है. विभिन्न शास्त्र ग्रंथों में दिए तत्वों को इस पुस्तक में सहज भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयत्न हुआ है. नई पीढ़ी के मन में आनेवाले सामान्य संदेहों के शास्त्रीय कारण स्पष्ट करने में सहयोगी होगी.

हिन्दुस्थान समाचार

ये भी पढ़ें:आरबीआई गवर्नर को अस्पताल से मिली छुट्टी, अस्पताल ने कहा-ठीक है हालत

Tags: Mohan BhagwatMohan Bhagwat NewsMohan Bhagwat News TodayMohan Bhagwat News HindiMohan Bhagwat News Today In HindiMohan Bhagwat News Latest
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