दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए पॉलिटिकल पार्टियां सियासी जमीन पर अभी से खाद-पानी देने में लगी हैं. फरवरी में होने वाले चुनाव को लेकर जोर-अजमाइश शुरू हो गई है. वैसे दिल्ली में मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी औऱ बीजेपी के बीच ही है लेकिन कांग्रेस भी अपनी खोई हुई जमीन को दोबारा वापस पाने के लिए पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरी है. आम आदमी पार्टी ने सबसे पहले चुनावी समर में अपने 70 के 70 कैंडिडेट्स की लिस्ट कर दी है. कांग्रेस ने भी 21 चेहरे पर दांव खेल दिया है. वहीं बीजेपी इस चुनाव में फूंक-फूंक कर कदम रख रखी है. बीजेपी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
बात नई दिल्ली सीट की करें तो यहां से लगातार चौथी बार दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चुनावी मैदान में हैं. बता दें केजरीवाल साल 2013 से इस सीट से विधायक हैं. उन्होंने 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां दिवंगत शीला दीक्षित को हराया था. 2015 और 2020 में भी उन्होंने यहां से बीजेपी प्रत्याशियों को पटखनी दी थी. अब एक बार फिर केजरीवाल मैदान में है. इस बार नई दिल्ली सीट पर चुनाव दिलचस्प होने जा रहा है क्योंकि कांग्रेस ने इसी सीट से पूर्व मुख्ममंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को केजरीवाल के खिलाफ उतारा है. वहीं बीजेपी से पूर्व मुख्यमंत्री रहे साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा का टिकट फाइनल माना जा रहा है. अगर ऐसा होता है तो दो पूर्व सीएम के बेटे और केजरीवाल के खिलाफ जबरदस्त टक्कर इस सीट पर देखने को मिल सकती है.
बता दे संदीप दीक्षित की गिनती कांग्रेस के बड़े नेताओं में होती है वो पूर्व दिल्ली से सांसद रह चुके है और उनके पास दिवंगत शीला दीक्षित की विरासत भी है. वहीं प्रवेश वर्मा भी पश्चिमी दिल्ली से बीजेपी के सांसद रहे हैं और उनके पास भी अपने पिता साहिब सिंह वर्मा की विरासत है. बीजेपी उन्हें केजरीवाल के खिलाफ मैदान में उतार सकती है.
क्यों खास है नई दिल्ली सीट?
नई दिल्ली सीट में लुटियंस दिल्ली का इलाका आता है. राष्ट्रपति भवन, कनॉट प्लेस, इंडिया गेट, लोधी कॉलोनी सहित इस विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है. यह सीट वीआईपी सीट तो है ही साथ ही इसे सत्ता का पावर हाऊस भी कहा जाता है. यहीं से शीला दीक्षित ने साल 1998, 2003 और 2008 में जीत दर्ज कर दिल्ली की सत्ता हासिल की थी. उनके बाद 2013, 2015 और 2020 में इसी सीट को फतह कर केजरीवाल सीएम की कुर्सी तक पहुंचे थे.
दिल्ली में विधानसभा के गठन के बाद से बीजेपी सिर्फ एक बार नई दिल्ली सीट पर जीत सकी है. साल 1993 में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर कीर्ति आजाद विधायक चुने गए थे, लेकिन उस समय नई दिल्ली सीट को गोल मार्केट के नाम से जाना जाता था. 2008 में परिसीमन के बाद नई दिल्ली विधानसभा का गठन किया गया था. तभी से यह दिल्ली की सत्ता का एपिसेंटर बनी हुई है.
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