कोलकाता: यूरोप में नौकरी पाने की चाहत में बांग्लादेशी नागरिक फर्जी भारतीय पासपोर्ट का सहारा ले रहे हैं. इस बड़े फर्जीवाड़े का पर्दाफाश करते हुए पुलिस ने खुलासा किया कि कोलकाता में एक संगठित गिरोह मोटी रकम लेकर फर्जी पासपोर्ट तैयार करता था. इस चौंकाने वाली जानकारी में यह भी सामने आया है कि इस गोरखधंधे में पुलिस के निचले स्तर के कुछ कर्मियों की मिलीभगत भी थी.
पुलिस के अनुसार, बांग्लादेशी पासपोर्ट या वहां के नागरिक होने की पहचान के साथ यूरोप में नौकरी पाना मुश्किल है. ऐसे में भारतीय पासपोर्ट बांग्लादेशियों के लिए एक आसान विकल्प बन गया था. गिरोह के मुख्य सरगना समरेश विश्वास और उनके बेटे रिपन विश्वास ने यह नेटवर्क उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और नदिया तक फैला रखा था.
फर्जीवाड़े का तरीका और पुलिस की मिलीभगत
जांच में पता चला है कि पासपोर्ट आवेदन के दौरान सही तरीके से वेरिफिकेशन किए बिना ही आवेदकों की जानकारी पोर्टल पर अपलोड कर दी जाती थी. इसमें जिला खुफिया ब्यूरो (डीआईबी) के कुछ कर्मियों की संलिप्तता सामने आई है. बताया जा रहा है कि कोलकाता में ही समरेश और उनके गिरोह ने तीन हजार से अधिक फर्जी पासपोर्ट बनाए.
उत्तर 24 परगना के पासपोर्ट सेवा केंद्र के अस्थायी कर्मचारी तारकनाथ सेन पर भी 200 से अधिक फर्जी पासपोर्ट बनाने का आरोप है. फिलहाल जांच एजेंसियों ने 73 फर्जी पासपोर्ट की पहचान कर ली है. इस गिरोह के एजेंट और सब-एजेंट्स बांग्लादेशी घुसपैठियों के संपर्क में रहते थे. मोटी रकम लेकर उनके लिए फर्जी भारतीय पासपोर्ट तैयार किए जाते थे, जिनका इस्तेमाल यूरोप जाने और वहां नौकरी पाने के लिए किया जाता था.
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
इस फर्जीवाड़े के इतने लंबे समय तक चलने पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रशासन और पुलिस के सहयोग के बिना यह संभव था. जांच एजेंसियां इस पूरे नेटवर्क की तह तक जाने की कोशिश कर रही हैं.
हिन्दुस्थान समाचार
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