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Opinion: विपक्षी एकता की दरकती दीवार और बाबा साहेब का अपमान

राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जिस आक्रामक अंदाज में कांग्रेस को घेरा, उसने राहुल गांधी के ‘संविधान बचाओ’ अभियान की पोल खोल कर रख दी. उन्होंने अपने भाषण में ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर सिलसिलेवार तरीके से बताया कि किस तरह कांग्रेस की सरकारों ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक के कार्यकाल में निजी और राजनैतिक हित साधने के लिए संविधान में बदलाव किए.

विकास सक्सेना by विकास सक्सेना
Dec 20, 2024, 10:01 am IST
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संविधान अपनाने की 75वीं वर्षगांठ पर संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में चार दिनों तक लम्बी चर्चा चली. राज्यसभा में चर्चा का जवाब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दिया. उन्होंने अपने लगभग एक घण्टा 40 मिनट लम्बे भाषण में जिस तरह से तथ्यों और तर्कों को रखा उसने कांग्रेस नेतृत्व को मुंह छिपाना मुश्किल हो रहा था. अमित शाह के भाषण के दौरान राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा जयराम रमेश, दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मौजूद रहे लेकिन कोई भी नेता दमदारी से अमित शाह के तर्कों का विरोध नहीं कर सका.

राज्यसभा की कार्यवाही के बाद कांग्रेस नेताओं ने अमित शाह के राज्यसभा में दिए गए भाषण में से 12 सेकेण्ड की विडियो क्लिप निकाल कर हंगामा करना शुरू कर दिया. भाजपा और मोदी विरोधी तंत्र सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गया और यह प्रचारित किया जाने लगा कि अमित शाह ने अपने भाषण के दौरान बाबा साहेब का अपमान किया है. इसके बाद बाबा साहेब के अपमान के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी समेत कई विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हो गए. कांग्रेस के उठाए मुद्दे पर इन दलों की जुगलबंदी के बाद तमाम राजनैतिक विश्लेषक कयास लगाने लगे कि पिछले दिनों विपक्षी एकता में जो दरारें दिख रही थी, वह इस मुद्दे के बाद थम जाएगी. लेकिन बाबा साहेब के अपमान के मुद्दे पर विपक्षी एकता कायम होने की उम्मीद जताने से पहले दो बिन्दुओं पर विचार करना अपरिहार्य है. पहला यह कि आखिर ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव, शरद पवार, अखिलेश यादव और दूसरे क्षेत्रीय दलों के नेता कांग्रेस को पीछे क्यों ढकेलना चाहते हैं. दूसरा, बाबा साहेब के अपमान के मुद्दे पर विपक्षी दल कांग्रेस का किस हद तक बचाव कर सकेंगे जबकि ऐतिहासिक तथ्य इस मामले में कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा करते हैं.

दरअसल, राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जिस आक्रामक अंदाज में कांग्रेस को घेरा, उसने राहुल गांधी के ‘संविधान बचाओ’ अभियान की पोल खोल कर रख दी. उन्होंने अपने भाषण में ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर सिलसिलेवार तरीके से बताया कि किस तरह कांग्रेस की सरकारों ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक के कार्यकाल में निजी और राजनैतिक हित साधने के लिए संविधान में बदलाव किए. उन्होंने पहले संविधान संशोधन का जिक्र करते हुए बताया कि इसके जरिए देश के आम लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी को छीनने का प्रयास किया गया. इसके बाद इंदिरा गांधी ने अदालत से उनके खिलाफ आए एक फैसले के बाद अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपातकाल लगा दिया और देश के नागरिकों के मौलिक अधिकार तक छीन लिए. राजीव गांधी ने तो वोटबैंक के लालच में शाहबानो मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को ही पलट दिया गया. इसके उलट मोदी सरकार ने पिछले दस साल के शासनकाल में संविधान में जो भी संशोधन किए हैं उनका उद्देश्य देश को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक मोर्चे पर मजबूत बनाना रहा है. इसके लिए उन्होंने महिलाओं के आरक्षण देने, पूरे देश में एक समान कर प्रणाली (जीएसटी) लागू करने और जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी करने जैसे कई संविधान संशोधनों का जिक्र किया.

भाजपा और मोदी पर संविधान बदल कर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाकर पिछले लोकसभा चुनाव में आंशिक सफलता हासिल करने वाले कांग्रेसी नेताओं की कलई भी अमित शाह ने अपने भाषण के दौरान खोलकर रख दी. उन्होंने तथ्यों के आधार पर समझाया कि किस तरह कांग्रेस सरकारों की वजह से जम्मू और कश्मीर के दलितों और पिछड़ों को आरक्षण के लाभ से वंचित रखा गया. जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका. अपने भाषण के दौरान अमित शाह ने विस्तार से बताया कि किस तरह दो बार पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आम्बेडकर को चुनाव हराने के लिए पूरी ताकत लगाई. यहां तक कि उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में खुद जाकर प्रचार भी किया. उन्होंने यह भी बताया कि जब तक देश में कांग्रेस की सरकार रही, तब तक बाबा साहब को भारत रत्न नहीं दिया गया.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के तार्किक आरोपों से बौखलाए कांग्रेसियों ने राज्यसभा में अमित शाह के भाषण से 12 सेकेण्ड की एक वीडियो क्लिप निकाली जिसमें वह कहते हुए दिख रहे हैं ‘आजकल एक नया फैशन चला है, आम्बेडकर, आम्बेडकर, आम्बेडकर. इतना नाम यदि भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.’ कांग्रेस और उससे जुड़ा प्रचार तंत्र मौके का लाभ उठाने के लिए इस वीडियो क्लिप को बहु प्रसारित (वायरल) करने में जुट गया. भाजपा और मोदी के विरोध में वातावरण तैयार करने के लिए सदैव तत्पर रहने वाली समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी उनके सुर में सुर मिलाते हुए अमित शाह पर राजनैतिक हमले शुरू कर दिए. दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल अपने समर्थकों के साथ सड़कों पर आ गए. इसी तरह अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी अमित शाह के बयान की तीखी आलोचना की. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो बाकायदा पत्रकार वार्ता करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मांग की कि अमित शाह को केंद्रीय मंत्रिमण्डल से बर्खास्त किया जाए. बाबा साहब के अपमान के मुद्दे पर विपक्षी नेताओं के हमले झेल रहे अमित शाह भी शाम के समय पत्रकारों के बीच आए लेकिन वे किसी तरह से बचाव की मुद्रा में दिखाई नहीं दिए. कांग्रेस पर ‘सत्य को झूठ के कपड़े पहनाकर’ लोगों का भ्रमित करने का आरोप लगाते हुए वहां मौजूद पत्रकारों से उन्होंने एक ही अपील की कि वे उनके पूरे भाषण को लोगों के सामने रखें, इसे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

सोशल मीडिया के इस युग में किसी भी सच्चाई को ज्यादा समय से छिपा कर रख पाना संभव नहीं है. खासतौर पर तब जबकि राज्यसभा में दिया गया भाषण तमाम स्थानों पर सहज रूप से उपलब्ध है. दरअसल, अमित शाह के भाषण की 12 सेकेण्ड की जो वीडियो क्लिप बहु प्रसारित की जा रही है उसके आगे के अंश में वे कह रहे हैं. डॉ. आम्बेडकर का सौ बार और नाम लो लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि उनके बारे में आपकी भावनाएं क्या हैं, वो ज्यादा जरूरी हैं. मैं आपको बता दूं कि जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार से असहमति के बाद बीआर आम्बेडकर को पहले मंत्रिमण्डल से इस्तीफा देना पड़ा था. आम्बेडकर जी ने कई बार कहा था कि मैं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से हुए व्यवहार से असंतुष्ट हूं. सरकार की विदेश नीति और अनुच्छेद 370 से मैं असहमत हूं. इसलिए वह पद छोड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें आश्वासन दिया गया और जब वह पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया.’

ऐसे में जो राजनैतिक विश्लेषक ये अनुमान लगा रहे हैं कि बाबा साहेब के अपमान के मुद्दे पर विपक्षी एकता की दरकती दीवार बच जाएगी उन्हें समझना होगा कि अमित शाह के भाषण के इस अंश को सुनने के बाद आम्बेडकर समर्थक समझ जाएंगे कि अमित शाह असल में क्या कह रहे हैं. इस मुद्दे पर कांग्रेस का तनिक भी बचाव कर पाना संभव नहीं है. इसके अलावा लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, शरद पवार और अखिलेश यादव के राहुल गांधी एवं कांग्रेस को निशाने पर लेने की असल वजह मुस्लिम वोटबैंक है जो इन क्षेत्रीय दलों की राजनीति का आधार है. हाल ही में हुए हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव नतीजों से साफ हो चुका है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जो भी बढ़त दिखाई दी थी उसका कारण मुस्लिम वोटों का उसके पाले में जाना था. ऐसे में ये क्षेत्रीय नेता कभी नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस उनके इस वोटबैंक में सेंध लगाकर मजबूत हो. इसीलिए इन नेताओं ने राहुल गांधी पर सवाल उठाने शुरू किए हैं. ऐसे में बाबा साहेब के अपमान के मुद्दे पर वे कांग्रेस के साथ ज्यादा दूर तक चलेंगे इसकी संभावना नहीं है.

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

हिन्दुस्थान समाचार  

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Tags: Home Minister Amit ShahDr B R AmbedkarIndian Constitution75th anniversary
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