देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह व्यक्ति नहीं विचारधारा थे. चौधरी चरण सिंह ने हमेशा यह साबित करने की कोशिश की थी कि किसानों को खुशहाल किए बिना देश का विकास नहीं हो सकता. उनकी नीति किसानों व गरीबों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने की थी. वे कहते थे कि देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों और खलिहानों से होकर गुजरता है. उनका कहना था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है. जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वो देश कभी तरक्की नहीं कर सकता.
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को गाजियाबाद जिले के नूरपुर गांव के चौधरी मीर सिंह के घर हुआ था. बाद में उनका परिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गया था. 1928 में चौधरी चरण सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की. 1930 में महात्मा गांधी द्वारा नमक कानून तोड़ने के समर्थन में चरण सिंह ने हिण्डन नदी पर नमक बनाया जिस पर उन्हें 6 माह जेल की सजा हुई. 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफ्तार किये गये. 1942 में अगस्त क्रांति के माहौल में चरण सिंह को गिरफ्तार कर डेढ़ वर्ष की सजा हुई. जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक शिष्टाचार भारतीय समाज में शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है.
चौधरी चरण सिंह खुद एक छोटे-से गांव में एक किसान के घर जन्मे थे. बचपन से ही उन्होंने गांव के किसानों, गरीबों के दुखः दर्द को नजदीकी से देखा जाना था. इसलिये उन्हें उनकी समस्याओं का बखूबी अहसास था. उनको जब कभी कहीं मौका मिलता वे गांव के किसानों की सेवा करने से नहीं चूकते थे. उनके दिल में हमेशा गांव के किसान ही बसे रहते थे. चौधरी चरण सिंह जीवन पर्यन्त गांधी टोपी धारण कर महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी बने रहे.
उन्होने किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल दिया था. किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए भी वो बहुत गंभीर रहते थे. उनका कहना था कि भारत का सम्पूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मजदूर, गरीब सभी खुशहाल होंगे. चौधरी चरण सिंह की गिनती हमेशा एक ईमानदार राजनेता के तौर पर की जाती है. उन्होंने जीवन पर्यन्त किसानों की सेवा को ही अपना धर्म माना और अपने अंतिम समय तक देश के गांव में रहने वाले किसानों, गरीबों, दलितों, पीड़ितों की सेवा में ही पूरी जिंदगी गुजारी। चौधरी चरण सिंह जाति प्रथा के कट्टर खिलाफ थे.
चौधरी चरण सिंह को 1951 में उत्तर प्रदेश सरकार में न्याय एवं सूचना विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. 1952 में डॉक्टर सम्पूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला. एक जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को खेती करने के अधिकार मिले. 1954 में उन्होने किसानों के हित में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया. चरण सिंह स्वभाव से भी कृषक थे तथा कृषक हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे. 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्री बनाया गया. उत्तर प्रदेश के किसान चरण सिंह को अपना रहनुमा मानते थे. उन्होंने कृषकों के कल्याण के लिए काफी कार्य किए. लोगों के लिए वो एक राजनीतिज्ञ से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता थे. उनके भाषण को सुनने के लिये उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ जुटा करती थी.
किसानों में चौधरी साहब के नाम से मशहूर चौधरी चरण सिंह 3 अप्रैल 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. तब 1967 में पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कहीं पत्ता भी नहीं हिल पाया था. 17 फरवरी 1970 को वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. अपने सिद्धांतों से उन्होने कभी समझौता नहीं किया. 1977 में चुनाव के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया. केन्द्र में गृहमंत्री बनने पर उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. 1979 में वे उप प्रधानमंत्री बने. बाद में मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद हो गये. 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस के सहयोग से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने.
चौधरी चरण सिंह एक कुशल लेखक भी थे। उनका अंग्रेजी भाषा पर अच्छा अधिकार था. उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन भी किया. 29 मई 1987 को 84 वर्ष की उम्र में जब उनका देहान्त हुआ तो देश के किसानो ने सरकार में पैरवी करने वाला अपना नेता खो दिया था. लोगों का मानना था कि चरण सिंह से राजनीतिक गलतियां हो सकती हैं लेकिन चारित्रिक रूप से उन्होंने कभी कोई गलती नहीं की. इतिहास में उनका नाम प्रधानमंत्री से ज्यादा एक किसान नेता के रूप में जाना जाता है. चौधरी चरण सिंह ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलन्द करते हुये आह्वान किया था कि भ्रष्टाचार का अन्त ही देश को आगे ले जा सकता है.
अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने 2001 में हर वर्ष 23 दिसम्बर को चौधरी चरण सिंह की जयंती को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाने की जो परम्परा शुरू की थी उससे जरूर उनको साल में एक दिन याद किया जाने लगा है. आज किसानों की हालात को देखकर चौधरी चरणसिंह जैसे देश के बड़े किसान नेता की याद आना स्वाभावित ही है. मौजूदा समय में चौधरी चरणसिंह जैसा नेता होता तो किसानों को उनका वाजिब हक मिलने से कोई नहीं रोक सकता था. चौधरी चरण सिंह जैसे किसानो के बड़े नेता द्धारा किसानों के हित में किये गये कायों को देखते हुये वर्षो पूर्व ही उनको भारत रत्न सम्मान मिलना चाहिये था. मगर सरकारों की अनदेखी के चलते उनको वर्षों तक उचित सम्मान नहीं मिल पाया. नरेन्द्र मोदी सरकार ने चौधरी चरण सिंह जैसे सच्चे बड़े व सच्चें किसान नेता को भारत रत्न प्रदान कर सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है. इससे देश के करोड़ों किसानों के साथ ही सरकार का भी सम्मान बढ़ा है.
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं)
हिन्दुस्थान समाचार
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