Sanjauli Masjid Controversy: शिमाला का संजौली मस्जिद विवाद एक बार फिर चर्चा का विषय बना हुआ है. इस मामले में अब एक नया मोड़ सामने आया है. जिसमें देवभूमि संघर्ष समिति की ओर से यह दावा किया गया है कि संजौली मस्जिद पूरी ही अवैध है व इसका निर्माण सरकारी जमीन पर हुआ है. राजस्व रिकॉर्ड में यह जमीन वक्फ बोर्ड नहीं बल्कि हिमाचल सरकार की है.
इसके अलावा संजौली मस्जिद कमेटी ने मस्जिद के भवन निर्माण को लेकर अब तक नक्शा भी नहीं जमा किया है. साल 2010 में मस्जिद कमेटी द्वारा जो नक्शा जमा किया गया था, उसे तत्कालीन आयुक्त ने खारिज कर दिया था. जिसके बाद कोई और नक्शा जमा नहीं करवाया गया है. ऐसे में समिती ने मस्जिद की वैधता पर सवाल खड़े किए हैं. साथ ही इसके निर्माण को लेकर राजस्व रिकॉर्ड में गड़बड़ी की गंभीर आशंका भी जताई है.
बता दें कि इस मामले में स्थानीय लोगों के वकील जगतपाल ने शमिला में पत्रवर्ता के दौरान बताया कि वक्फ बोर्ड ने रेवेन्यू रिकॉर्ड पेश करने के लिए समय की मांग की है. जो कि शक पैदा करता है. उन्हें (वक्फ बोर्ड) कोर्ट में मार्च तक यह रिकॉर्ड पेश करना है. वकील जगतपाल की ओर से रेवेन्यू रिकॉर्ड में छेड़छाड़ कि आशंका जताई गई है. उन्होंने कहा कि ऐसी कोई भी छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी. उन्हेंने आगे कहा कि अब तक के राजस्व रिकॉर्ड और जमाबंदी के अनुसार मस्जिद की जमीन का मालिकाना हक हिमाचल सरकार के पास है.
स्थानीय लोगों के वकील ने नगर निगम आयुक्त पर उच्च न्यायालय के आदेश की अवज्ञा का आरोप लगाया है. इस मामले पर फैसला जल्दी न होने को लेकर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कही है.
देवभूमि संघर्ष समिति के प्रांत सचिव विजेंद्र पाल सिंह का कहना है कि संजौली मस्जिद को लेकर हुआ आंदोलन हिंसक नहीं था. कुछ व्यक्तियों पर एफआईआर भी दर्ज हुई है. समिति भी कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है.
यूपी और देवभूमी उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में सरकारी जमीन पर बने अवैध निर्माण तुरंत हटाने के आदेश दिए जाते हैं, परंतु हिमाचल प्रदेश में दस्तावेजों से यह बात साबित होती है कि मस्जिद का निर्माण र्अवैध रूप से सरकारी जमीन पर किया गया है. विजेंद्र पाल ने कहा कि देवभूमि संघर्ष समिति 15 मार्च को कोर्ट का फैसले आने के बाद आगे का रुख तय करेगी.
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