सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की याचिका को इस एक्ट को लेकर पहले से लंबित बाकी याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस याचिका पर भी बाकी याचिकाओं के साथ 17 फरवरी को सुनवाई करने का आदेश दिया.
ओवैसी ने देश में विभिन्न धार्मिक स्थलों पर दावे को लेकर चल रही अदालती लड़ाइयों के बीच इस एक्ट को प्रभावी तौर पर अमल में लाए जाने की मांग की है. ओवैसी की ओर से पेश वकील निजाम पाशा ने धार्मिक स्थलों के सर्वे का विरोध किया है. इससे पहले 12 दिसंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई होने तक कोई भी कोर्ट मंदिर-मस्जिद से जुड़ा नया मामला स्वीकार नहीं करेगी.
सुप्रीम कोर्ट में कई हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल की गई हैं। राजनीतिक दल सीपीआईएम, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, एनसीपी शरद पवार गुट के विधायक जीतेंद्र आव्हाड, आरजेडी के सांसद मनोज कुमार झा, सांसद थोल तिरुमावलन के अलावा वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी और मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने हस्तक्षेप याचिका दायर कर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का समर्थन किया है. इस मामले में 9 सितंबर, 2022 को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने जमीयत उलेमा ए हिंद की कानून के समर्थन में दाखिल याचिका पर भी नोटिस जारी किया था. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देते हुए काशी नरेश विभूति नारायण सिंह की बेटी कुमारी कृष्ण प्रिया, वकील करुणेश कुमार शुक्ला, रिटायर्ड कर्नल अनिल कबोत्रा, मथुरा के धर्मगुरु देवकीनंदन ठाकुर, वकील रुद्र विक्रम सिंह और वाराणसी के स्वामी जितेंद्रानंद ने याचिकाएं दायर की हैं.
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा अवैध तरीके से पौराणिक पूजा, तीर्थस्थलों पर कब्जा करने को कानूनी दर्जा देता है. याचिका में कहा गया है कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध को अपने धार्मिक स्थलों पर पूजा करने से रोकता है. याचिका में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 की मनमानी कटऑफ तारीख तय कर अवैध निर्माण को वैधता दी गई. याचिका में कहा गया है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा 2, 3 और 4 असंवैधानिक है. ये धाराएं संविधान की धारा 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करती हैं. ये धाराएं धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाती हैं जो संविधान के प्रस्तावना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. याचिका में कहा गया है कि सरकार को किसी समुदाय से लगाव या द्वेष नहीं रखना चाहिए, लेकिन उसने हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख को अपना हक मांगने से रोकने का कानून बनाया है.
साभार – हिंदुस्थान समाचार
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