सूरत/अहमदाबाद: दक्षिण गुजरात में तेंदुए के हमलों की घटनाओं में लगातार वृद्धि के मद्देनजर राज्य के वन विभाग ने एक तेंदुए के जर्मन इंजीनियर्ड रेडियो कॉलर लगाकर उन्नत तकनीक का उपयोग करने संबंधी एक पायलट परियोजना शुरू की है. यह कॉलर सैटेलाइट के माध्यम से वन विभाग को हर आधे घंटे में तेंदुए की लोकेशन भेजेगा. तेंदुए के किसी गांव के पास पहुंचने पर वन विभाग उस गांव के लोगों को तुरंत सूचित कर सकेगा.
दक्षिण गुजरात में शुरू की गई इस तरह की पहली परियोजना के बारे में दक्षिण गुजरात वन विभाग के डीएफओ आनंद कुमार ने बताया कि राज्य के वन विभाग ने तेंदुए को जर्मन इंजीनियर्ड रेडियो कॉलर लगाने की पहल की है. एक आठ वर्षीय नर तेंदुए को जर्मन इंजीनियर्ड रेडियो कॉलर लगाया गया है, जो वास्तविक समय में उसकी गतिविधियों पर नज़र रखेगा. उन्हाेंने बताया कि यह प्रणाली वास्तविक समय में तेंदुए की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उपग्रह और जीएसएम तकनीक का उपयोग करती है. यह हर आधे घंटे में तेंदुए का कॉलर सैटेलाइट के माध्यम से वन विभाग को तेंदुए की लोकेशन भेजेगा. यदि किसी गांव के पास कोई तेंदुआ आता है, तो दक्षिण गुजरात के वन विभाग के अधिकारियों को तुरंत सूचित किया जाएगा, इसलिए वे तुरंत उस गांव में रहने वाले लोगों को सूचित करेंगे, “आपके गांव के पास एक तेंदुआ आया है.
डीएफओ आनंद ने बताया कि यह परियोजना सूरत के 10 तहसील में चार तेंदुओं की गतिविधियों की निगरानी करके तेंदुओं की पारिस्थितिकी को समझने में मदद करेगी. कार्यक्षमता और सुरक्षा दोनों के लिए डिज़ाइन किया गया यह अभिनव कॉलर एक बटन दबाकर तेंदुए की गर्दन से हटाया भी जा सकता है. इससे वन विभाग को तेंदुए की गतिविधियों को समझने में मदद मिलेगी.
तेंदुए की गर्दन पर लगा रेडियो कॉलर तेंदुए की लोकेशन का डेटा सैटेलाइट तक पहुंचाएगा, जहां से वन विभाग के अधिकारी तेंदुए की लोकेशन जान सकेंगे. उन्हाेंने बताया कि दक्षिण गुजरात में पहली बार एक तेंदुए को रेडियो कॉलर लगाया गया है. तेंदुए को यह रेडियो कॉलर 18 दिन पहले लगाया गया था, जिसके जरिए सूरत वन विभाग को जानकारी मिली है कि तेंदुआ जहां भी छोड़ा जाता है, वह अपने होम रेंज में वापस आ जाता है. इस दौरान उसने दो बार नदी पार की और उकाई बांध के पास से भी गुजरा.
डीसीएफ आनंद कुमार ने कहा कि दक्षिण गुजरात में आदमियाें पर तेंदुओं के हमले की घटनाओं काे कम करने पर शोध शुरू किया गया है. एक वर्ष तक चलने वाले इस अध्ययन में तेंदुए के दैनिक एवं रात्रिकालीन व्यवहार के बारे में जानकारी एकत्र की जाएगी. तेंदुए के भोजन, पानी के सेवन, दैनिक यात्रा और व्यवहार का विवरण दर्ज किया जाएगा. इस शोध का मुख्य उद्देश्य तेंदुओं की गतिविधियों को समझना और मानव-तेंदुआ संघर्ष को कम करना है. इसका अध्ययन मांगरोल तहसील के झनखवाव स्थित वन विभाग के तेंदुआ बचाव केंद्र में शुरू हुआ. उन्हाेंने बताया कि इस परियोजना के लिए केवल एक रेडियो कॉलर का उपयोग किया गया है. एक रेडियो कॉलर की कीमत करीब पांच लाख रुपये है. जिसके कारण एक ही समय में कई कॉलराें का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. यदि यह अध्ययन सफल रहा तो भविष्य में और अधिक तेंदुओं पर यह प्रयोग किया जाएगा.
रेडियो कॉलर के डिजाइन को देखते हुए, यदि इसकी बैटरी खत्म हो जाती है, तो इसे हटाने के लिए तेंदुए को पकड़ने की जरूरत नहीं पड़ती. इस रेडियो कॉलर की बैटरी लाइफ एक वर्ष से अधिक है. बैटरी पूरी तरह चार्ज हो जाने पर, सिस्टम स्वचालित रूप से कॉलर को खोल देता है और उसे तेंदुए की गर्दन से हटा देता है.
इस परियोजना को पीसीसीएफ (प्रधान मुख्य वन संरक्षक) और मुख्य वन्यजीव वार्डन कार्यालय द्वारा मंजूरी दी थी. उन्हाेंने बताया कि तेंदुए की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए रेडियो कॉलर का उपयोग एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जो भविष्य में संघर्ष को कम करने के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है.
उल्लेखनीय है कि सूरत जिले में 104 से अधिक तेंदुए हैं. मनुष्यों पर तेंदुओं के हमले की घटनाओं में वृद्धि चिंतित वन विभाग ने दक्षिण गुजरात में पहली बार तेंदुए की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उसके गले में रेडियो कॉलर लगाया गया है.
हिन्दुस्थान समाचार
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