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Opinion(बसन्त पंचमी विशेष): प्रकृति और ज्ञान के संगम का पर्व

बसंत पंचमी, प्रकृति और ज्ञान के संगम का पर्व है. यह त्योहार बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है. इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. बसंत पंचमी पर प्रकृति का खिलना और नई फसल आना भी देखा जाता है.

रमेश सर्राफ धमोरा by रमेश सर्राफ धमोरा
Jan 31, 2025, 03:40 pm IST
Basant Panchami Special

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Opinion: बसंत पंचमी, प्रकृति और ज्ञान के संगम का पर्व है. यह त्योहार बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है. इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. बसंत पंचमी पर प्रकृति का खिलना और नई फसल आना भी देखा जाता है. बसंत पंचमी बहुआयामी त्योहार है जो बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है और समृद्ध परंपराओं, कृषि महत्व और आध्यात्मिक प्रथाओं से भरा हुआ है. यह एक ऐसा दिन है जब प्रकृति की जीवंतता, देवी सरस्वती की भक्ति और कृषि समुदाय का जीवन उत्सव की एक खूबसूरत तस्वीर में एक-दूसरे से जुड़ जाता है.

माघ महीने में जब बसंत ऋतु का आगमन होता है तो इस महीने के पांचवें दिन यानी पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है. शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. बसंत उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है. जो फरवरी, मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती जिन्हें विद्या, संगीत और कला की देवी कहा जाता है, उनका अवतरण इसी दिन हुआ था और यही कारण है कि भक्त इस शुभ दिन पर ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं. साथ ही इसे सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है.

सभी शुभ कार्यों के लिए बसन्त पंचमी के दिन अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है. बसन्त पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं. यह पर्व माघ मास में ही पड़ता है. माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है. इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है. दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं. इसलिए प्राचीन काल से बसन्त पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है अथवा कह सकते हैं कि इस दिन को सरस्वती के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है.

भारत में पतझड़ ऋतु के बाद बसन्त ऋतु का आगमन होता है. हर तरफ रंग-बिरंगे फूल खिले दिखाई देते हैं. इस समय गेहूं की बालियां भी पक कर लहराने लगती हैं. जिन्हें देखकर किसान हर्षित होते हैं. चारों ओर सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है. इसीलिये बसन्त ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ऋतुराज कहा गया है. इस दिन भगवान विष्णु, कामदेव तथा रति की पूजा की जाती है. इस दिन ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी. इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है.

बसन्त पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है. मकर सक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है. हालांकि विश्व में बदलते मौसम ने मौसम चक्र को बिगाड़ दिया है. पर सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है. हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है. इन पर्वों पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है. सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात फिर सर्दी का बदलता क्रम देह में बदलाव के साथ ही प्रसन्नता प्रदान करता है.

बसन्त पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को अर्पित ज्ञान का महापर्व है. शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है. किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा-पाण्डालों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का रिवाज चल पड़ा है. मां सरस्वती का प्रिय रंग पीला है. इसलिए उनकी मूर्तियों को पीले वस्त्र, फूल पहनाए जाते हैं. देश में लोग बसंत पंचमी पर पीले कपड़े पहन कर विद्या की देवी मां सरस्वती की वंदना मंत्र का उच्चारण कर उनकी पूजा करते हैं.

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता.

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता.

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसन्त ऋतु का आरंभ होता है. फाल्गुन और चैत्र मास बसन्त ऋतु के माने गए हैं. फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला. इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ बसन्त में ही होता है. इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है. मौसम सुहावना हो जाता है. पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं. सरसों के फूलों से भरे खेत पीले दिखाई देते हैं. अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है.

ग्रंथों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं. अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है. बसन्त पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है. ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है. मां सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं. कहते हैं जिनकी जिह्वा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं.

प्राचीन कथाओं के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के कहने पर सृष्टि की रचना की थी. एक दिन वह सृष्टि को देखने के लिए धरती पर भ्रमण करने के लिए आए. ब्रह्माजी को सृष्टि में कुछ कमी का अहसास हो रहा था लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस बात की कमी है. उन्हें पशु-पक्षी, मनुष्य तथा पेड़-पौधे सभी चुप दिखाई दे रहे थे. तब उन्हें आभास हुआ कि क्या कमी है. वह सोचने लगे कि ऐसा क्या किया जाए कि सभी बोलें और खुशी में झूमें. ऐसा विचार करते हुए ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से जल लेकर धरती पर छिड़का. जल छिड़कने के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए हुए एक देवी प्रकट हुई. इस देवी के चार हाथ थे- एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में कमल, तीसरे हाथ में माला तथा चतुर्थ हाथ में पुस्तक थी. ब्रह्माजी ने देवी को वरदान दिया कि तुम सभी प्राणियों के कण्ठ में निवास करोगी. सभी के अंदर चेतना भरोगी, जिस भी प्राणी में तुम्हारा वास होगा वह अपनी विद्वता के बल पर समाज में पूजनीय होगा. ब्रह्माजी ने कहा कि तुम्हें संसार में देवी सरस्वती के नाम से जाना जाएगा.

कड़कड़ाती ठंड के बाद बसंत ऋतु में प्रकृति की छटा देखते बनती है. पलाश के लाल फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को सुहाना बना देती है. यह ऋतु सेहत की दृष्टि से भी बहुत अच्छी मानी जाती है. मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है. देश के कई स्थानों पर पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला लगता है. राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में तो बसंत पंचमी के दिन से ही लोग समूह में एकत्रित होकर रात में चंग ढफ बजाकर धमाल गाकर होली के पर्व का शुभारम्भ करते हैं.

बसन्त पंचमी के दिन विद्यालयों में भी देवी सरस्वती की आराधना की जाती है. भारत के पूर्वी प्रांतों में घरों में विद्या की देवी सरस्वती की मूर्ति की स्थापना की जाती है और वसन्त पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाती है. उसके बाद अगले दिन मूर्ति को नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है. देवी सरस्वती को ज्ञान, कला, बुद्धि, गायन-वादन की अधिष्ठात्री माना जाता है. इसलिए इस दिन विद्यार्थी, लेखक और कलाकार देवी सरस्वती की उपासना करते हैं. विद्यार्थी अपनी किताबें, लेखक अपनी कलम और कलाकार अपने संगीत उपकरणों और बाकी चीजें मां सरस्वती के सामने रखकर पूजा करते हैं.

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं.)

हिन्दुस्थान समाचार

Tags: Basant PanchamiOpinionBasant Panchami SpecialMaa Saraswati
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