कहते हैं वसुधैव कुटुम्बकम् यानि पूरा विश्व एक परिवार के समान है लेकिन हमारे समाज में अपना ही कुटुंब यानि परिवार बिखरता जा रहा है. एक जमाना था जब संयुक्त परिवार एक साथ रहा करता था लेकिन समय के साथ ज्वाइंट फैमली, एकल परिवार में टूटती चली गई. बहू अपनी सास के साथ रहना नहीं चाहती और यह दूरी, साल दर साल बढ़ती जा रही है लेकिन सास-बहू के बीच इसी खाई को पाटने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राजस्थान के बाड़मेर में सास-बहू सम्मेलन का आयोजन किया. यह कार्यक्रम 2 मार्च 2025 यानि रविवार शाम बाड़मेर के स्थानीय जांगिड़ समाज के भवन में आयोजित हुआ. कार्यक्रम में सास-बहू की जोड़ियों को शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया. सम्मेलन में शामिल ग्रामीण महिलाओं ने अपने-अपने अनुभव साझा किए और समाज में सास-बहू के रिश्ते पर अपने विचार साझा किए. इस दौरान सास-बहू की जोड़ियों ने हमेश मां-बेटी की भांति मिलकर साथ रहने की बात भी कही.
बहू को बेटी मानें हर सास
इस कार्यक्रम में एक सास (सायरा देवी) ने बताया कि उनका परिवार एकजुट है क्योंकि वह अपनी बहू को बेटी की तरह ही रखती हैं. उन्होंने बताया कि जब उनके बेटे का विवाह हुआ था और बहू ससुराल आई थी तब वह 12वीं पास थी. इसके बाद हमनें उसकी पढ़ाई पूरी करवाई और उसने नीट का एक्जाम भी दिलवाया. उम्मीद है कि आगे जाकर उसे नौकरी भी मिलेगी.
उन्होंने सम्मेलन में आई हुई महिलाओं को संदेश देते हुए कहा कि सास का फर्ज है कि वो अपनी बहू को बेटी की तरह ही माने, जिससे घर-परिवार में सुख शांति रहे और समृद्धि भी आएं. वहीं बहू को भी ससुराल की मान-मर्यादा का ध्यान रखते हुए अपने फर्ज निभाने चाहिए.
मां अपनी बेटी को दे अच्छे संस्कार
कार्यक्रम में एक बहू (लीना चंद्रास) ने कहा कि हर सास चाहती है कि उसकी बहू अच्छी आए, इसलिए प्रत्येक मां को अपनी बेटी को अच्छे संस्कार देने की आवश्यकता है. सास को अपनी बहू को बेटी की तरह रखना चाहिए.
मनुष्य के जीवन में उतार-चढ़ाव आएंगे- नंदलाल बाबा
इस मौके पर आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक नन्दलाल बाबा ने कहा कि मनुष्य के जीवन में उतार-चढ़ाव तो आएंगे ही. लेकिन रिश्ते महत्वपूर्ण होते हैं. उन्होंने भगवान राम के 14 साल के वनवास और भगवान कृष्ण के जेल में जन्म लेने का उदाहरण भी दिया. उन्होंने कहा कि परिवार में सास-बहू का रिश्ता प्रेम का आधार होता है और इसी से पूरा परिवार एकजुट होता है. हर सुख-दुख में साथ रहना, अपना कर्तव्य का निर्वाहन करना और भगवान के नाम का जप करने से जीवन की गाड़ी सुखमय चलती रहती है.
वहीं आएसएस के बाड़मेर विभाग संघचालक मनोहर लाल बंसल ने सम्मेलन में कहा कि सास-बूह को लेकर शायद यह पहला कार्यक्रम है. उन्होंने कहा कि संघ प्रमुख कुटुंब प्रबोधन के विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं.यह विषय पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से हमारे समाज में परिवार के महत्व को भुलाए जाने और परिवारों के टूटने की बढ़ती घटनाओं के कारण महत्वपूर्ण हो गया है.”
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