केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आंतकवादियों ने घूमने आए पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया. इस हमले के तार पाकिस्तान से जुडे हुए हैं. हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकी संगठन TRF ने ली है. भारत के खिलाफ आतंक की साजिश रचने के लिए फिर एक बार पाकिस्तान की धरती का प्रयोग किया गया है.
इस हमले से पूरे देश की आंखे नम है और सभी में आक्रोश है. एक तरफ सेना-जम्मू-कश्मीर पुलिस आतंकियों को पकड़ने के लिए लगातार सर्च ऑपरेशन चला रही है. वहीं दूसरी ओर केंद्र की मोदी सरकार ने कूटनीतिक तरीके से पाकिस्तान पर बड़ा एक्शन लिया है. वैसे तो भारत ने पाकिस्तान को लेकर कई बड़े कदम उठाए हैं लेकिन सबसे बड़ा राजनयिक कदम है. सिंधु जल समझौते को स्थगित कर दिया है. भारत ने दो टूक कहा कि यह फैसला तबतक स्थगित रहेगा जब तक कि पाकिस्तान अपनी धरती पर आतंक के पालना-पोसना बंद नहीं करेगा.
क्या है सिंधु जल समझौता?
19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच कराची में सिंधु नदी तंत्र की नदियों को लेकर समझौता हुआ. उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. समझौते में सिंधु बेसिन से बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में बांटा गया. इनमें ब्यास, रावी और सतलुज को पूर्वी नदियां मानते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया. वहीं, सिंधु, चेनाब और झेलम को पश्चिमी नदियां माना गया और इनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया.
बता दें पाकिस्तान को इन नदियों के प्रवाह का 80 प्रतिशत पानी मिलता है. पाकिस्तान की 21 करोड़ से ज्यादा आबादी इस जल पर निर्भर है. पंजाब और सिंध प्रांत की खेती इसी पानी पर निर्भर है. इस समझौते के तहत भारत सिंधु नदी प्रणाली के पानी का केवल 20% ही इतेमाल कर सकता है. बाकी 80% पानी पाकिस्तान को देता है. सिंधु पाकिस्तान की लाइफलाइन कही जाती है.
पाकिस्तान की खेती, पीने का पानी और बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा इसी पानी पर निर्भर है. समझौते को रोकने से पाकिस्तान बूंद-बूंद पानी के लिए तरस जाएगा. पाकिस्तान खेतीबाड़ी पर इसका बड़ा असर होगा.
पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट से गुजर रहा है. अनाज की कमी से भूखमरी की मार भी पाकिस्तान से झेल रहा है. अब भारत के इस प्रहार से उसकी कमर टूटने जा रही है.
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