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क्या है सिंधु जल संधि, भारत ने क्यों किया समझौता स्थगित? पाकिस्तान पर क्या पड़ेगा असर?

भारत ने राजनयिक कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को स्थगित कर दिया है. भारत ने साफ शब्दों में कहा है कि ये तब तक स्थगित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को पूरी तरह से छोड़ नहीं देता.

Editor Ritam Hindi by Editor Ritam Hindi
Apr 29, 2025, 04:18 pm IST
क्या है सिंधु जल संधि, भारत ने क्यों किया समझौता स्थगित? पाकिस्तान पर क्या पड़ेगा असर?

भारत ने सिंधु जल संधि की निलंबित (सांकेतिक तस्वीर)

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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान पोषित आतंकी हमले के बाद भारत ने सख्त कदम उठाएं हैं. इस कड़ी में भारत ने राजनयिक कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) को स्थगित कर दिया है.

भारत ने साफ शब्दों में कहा है कि ये तब तक स्थगित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को पूरी तरह से छोड़ नहीं देता. आईए समझते हैं कि क्या है सिंधु जल संधि और इसके स्थगित होने से पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा?

सिंधु जल संधि क्या है?
नदियों के जल बंटवारे के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि वर्ष 1960 हुई थी. इस संधि में विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी. इस संधि 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे.

संधि के तहत यह तय हुआ कि सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों के जल को भारत और पाकिस्तान के बीच कैसे साझा किया जाएगा. इस समझौते के अनुसार, तीन पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को मिला और तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया. पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियां भारत से होकर पहुंचती हैं.

संधि के अनुसार भारत इन नदियों के जल का 20% उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए कर सकता है. जबकि जल का 80% हिस्सा पाकिस्तान में चला गया.

इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए. यह संधि पाकिस्तान के डर का नतीजा थी कि नदियों का आधार भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े.

किशनगंगा परियोजना पर पाकिस्तान पहले भी कर चुका है विवाद

जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा नदी पर स्थित किशनगंगा परियोजना को लेकर पाकिस्तान पहले भी आपत्ति उठा चुका है. किशनगंगा नदी झेलम नदी की एक सहायक नदी है. संधि के अनुसार पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का 20% पानी भारत को आवंटित किया गया है.

ऐसे में जब भारत ने किशनगंगा परियोजना पर काम करना शुरू किया तो पाकिस्तान ने अड़ंगा लगाया और साल 2010 में मध्यस्थता न्यायाधिकरण में मामले को लेकर पहुंचा.

पाकिस्तान ने इस पर आपत्ति यह जताई कि इस परियोजना के माध्यम से भारत झेलम की सहायक नदी का जल मोड़ रहा है. हालांकि न्यायाधिकरण ने साल 2013 में एक फैसला सुनाया था, जिसमें भारत को परियोजना के निर्माण को जारी रखने को कहा और संधि के नियमों का पालन करने को भी.

भारत तो पहले ही संधि का पालन कर रहा था लेकिन पाकिस्तान का रवैया बेढंगा था. इसलिए उसे यहां पर भी मुंह की खानी पड़ी.

भारत के सब्र की सीमा कितनी?
वर्ष 1960 में हुए सिंधु जल समझौते के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे को लेकर तनाव लगातार जारी है. हर तरह के असहमति और विवादों का निपटारा संधि के ढांचे के भीतर प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया गया है.

इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के कुल पानी का केवल 20% का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है. बता दें कि जिस समय यह संधि हुई थी, उस समय पाकिस्तान के साथ भारत का कोई भी युद्ध नहीं हुआ था.

उस समय परिस्थिति बिल्कुल सामान्य थी, पर वर्ष 1965 से पाकिस्तान लगातार भारत के साथ हिंसा के विकल्प तलाशने लगा, जिसमें 1965 में दोनों देशों में युद्ध भी हुआ और पाकिस्तान को इस लड़ाई में करारी हार भी मिली. फिर साल 1971 में पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध लड़ा, जिसमें उसको अपना एक हिस्सा खोना पड़ा, जो बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है.

तब से अब तक भारत के खिलाफ पाकिस्तान आतंकवाद और सेना दोनों का इस्तेमाल कर रहा है. मगर भारत ने फिर भी इन नदियों का पानी कभी नहीं रोका. लेकिन अब पाकिस्तान ने सारी हदों पार कर दिया है. और भारत के मजबूर होकर यह कदम उठाना पड़ा है.

भारत की तीन-स्तरीय योजना

भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करना एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कदम है, लेकिन इसका तत्काल प्रभाव पाकिस्तान को जाने वाले जल प्रवाह पर नहीं पड़ा है. हालांकि, यदि भारत अपनी योजनाओं को पूरी तरह से लागू करता है, तो भविष्य में पाकिस्तान को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है.

भारत सरकार ने पाकिस्तान को जाने वाले पानी को नियंत्रित करने के लिए एक तीन-स्तरीय रणनीति अपनाई है:-

  • तत्काल कदम: जल प्रवाह और बाढ़ डेटा साझा करना बंद करना.
  • मध्यम अवधि: पश्चिमी नदियों पर नए बांधों और जलविद्युत परियोजनाओं की योजना बनाना.
  • दीर्घकालिक योजना: पूर्वी नदियों के जल प्रवाह को पूरी तरह से भारत में उपयोग करना और पाकिस्तान को जाने वाले अनावश्यक पानी को रोकना. ​

(Source- The Economic Times)

पाकिस्तान पर संभावित प्रभाव

पाकिस्तान में सिंधु, चिनाब, बोलन, हारो, काबुल, झेलम, रावी, पुंछ और कुन्हार नदियां बहती हैं. इसके अतिरिक्त भी यहां कई प्रमुख नदियों का प्रवाह होता है. लेकिन लाइफलाइन सिंधु नदी है. पाकिस्तान की कृषि प्रणाली का लगभग 80% हिस्सा सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है.

यदि भारत पश्चिमी नदियों के जल प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो पाकिस्तान में सिंचाई, पेयजल और जल विद्युत उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. ​अब आप समझ सकते हैं कि अगर भारत ने ये पानी रोक दिया तो क्या होगा? पाकिस्तान पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस जाएगा.

Tags: PakistanBharatIndiaIndus Water TreatySindhu Water TreatyIndus RiverIndus Water Dispute
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