केंद्र की मोदी सरकार ने देश में जातिगत जनगणना कराने का अहम और ऐतिहासिक फैसला लिया है. PM मोदी की अध्यक्षता में हुई सुपर कैबिनेट (CCPA) की बैठक में इस फैसले पर मुहर लग चुकी है. बता दें कि पहली बार आजाद भारत में जाति के आधार पर जनगणना होगी. अभी तक अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गिनती होती है लेकिन अब पहली बार देश में पिछड़ी और अन्य जातियों की गणना होने जा रही है. विपक्षी दलों ने भी मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत और समर्थन किया है.
बता दें कि भारत में प्रत्यके 10 साल बाद जनगणना होती है. आखिरी बार 2011 में जनगणना हुई थी. उस हिसाब से जनगणना 2021 में होनी थी लेकिन कोरोना महामारी की वजह से जनगणना नहीं हो पाई. अब सरकार ने करीब 14 सालों बाद जनगणना कराने का फैसला लिया है. केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि इसबार जनगणना के फॉर्म में ही जाति का एक कॉलम होगा.
जाति व्यवस्था और मुस्लिम समाज
जाति एक जटिल सामाजिक व्यवस्था है. यह व्यवस्था सभी धर्मों के अंदर पाई जाती है. जाति ही लोगों को विभिन्न समूहों में विभाजित करती है. इसका मतलब है कि जो व्यक्ति जिस जाति में पैदा होता है. उसी के हिसाब से वह समाज में पहचाना जाता है. जातियों ने समाज को इस कदर जकड़ा हुआ है कि लोग जाति को ही सर्वोपरि मानते हैं और यह सभी परंपराओं और रीति रिवाजों के केंद्र में है.
वहीं जाति के आधार पर भारतीय समाज में भेदभाव किसी से छिपा नहीं है. ऊंची जाति वाला वर्ग, निचली जाति वाले वर्ग को हमेशा अपने से कमजोर समझता है और उन्हें दबाने का प्रयास करता है.
सिर्फ हिन्दू धर्म में ही जातिगत बिखराव है ऐसा नहीं है. मुसलमानों में भी जातियां होती है और वहां भी जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है. इतना ही नहीं मुस्लिम समाज में निचली जातियों की स्थिति ज्यादा भयावह है. उन्हें ऊपर उठने का मौका ही नहीं मिलता.
ऊंचे पदों पर अगड़ी जातियों का दबदबा हैं. यही कारण है कि राजनीतिक, शैक्षिक और आर्थिक स्तर पर मुसलमानों की निचली जातियों के लोग हाशिए पर हैं. जिन्हें पसमांदा मुसलमान कहा जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारत में 85 प्रतिशत मुसलमान गरीब-दलित और पीड़ित हैं. सिर्फ 15 प्रतिशत मुस्लिम ही अच्छी स्थिति में है. उनका जीवन स्तर भी अच्छा है. वह भी सभी अगड़ी जाति से आते हैं.
देश में मुस्लिम आबादी कितनी है?
भारत में इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धर्म है. 2011 की जनगणना के अनुसार, हिन्दुस्तान में 17.20 करोड़ (14.20%) मुस्लिम आबादी निवास करती है और यह संख्या साल-दर साल बढ़ती ही जा रही है. बता दें कि आजादी के बाद 1951 में जब पहली बार जनगणना हुई थी तब देश में केवल 3.5 करोड़ (9.80%) मुस्लिम ही थे. इसका मतलब है कि 6 दशकों (60 सालों) में 13.70 करोड़ मुस्लिम आबादी बढ़ गई.
Source- Study IQ
कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच, मुसलमानों की प्रजनन दर (2.36%) रही. जो अन्य धर्मों के लोगों के मुकाबले सबसे ज़्यादा थी. मतलब साफ है भारत में मुस्लिम आबादी, हिंदू आबादी की तुलना में कई ज़्यादा रफ्तार से बढ़ी है.
भारत में मुस्लिम जनसंख्या का राज्यवार विवरण
भारत में मुसलमानों की सबसे अधिक जनसंख्या 3 राज्यों (उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार) में है. केवल इन तीनों राज्य में 47% मुस्लिम आबादी रहती है. वहीं आंध्र प्रदेश, असम, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड में भी मुसलमान काफी ज्यादा संख्या में निवास करते हैं.
सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश
Source- Study IQ
भारत में मुसलमानों की जातियां
भारत में मुस्लिम समाज कई जातियों में बंटा हुआ है. इन जातियों में ऊंच-नीच के आधार पर भेदभाव होता है. बता दें कि इस्लाम धर्म में दो संप्रदाय है. जिसमें पहला है सुन्नी और दूसरा है शिया. इनमें भी मुसलमान 3 प्रुमख वर्गों में बंटे हैं और इन समूहों में भी सैंकड़ों बिरादरियां होती है.
1. अशराफ
2. अजलाफ
3. अरजाल
जैसे हिंदुओं में ब्राहण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चार वर्ण होते हैं. वैसी ही मुसलमानों में तीन वर्ग अशराफ, अजलाफ और अरजाल होते हैं.
अशराफ वर्ग में मुसलमान की जाति
अशराफ समूह के मुसलमानों को ऊंची या अगड़ी जाति का मुसलमान माना जाता है. इसमें सैय्यद, शेख, पठान, मिर्जा, मुगल जैसी जातियां शामिल हैं. बता दें कि यह वो मुसलमान हैं जिन्होंने दूसरे देश से आकार भारत पर आक्रमण किया था. इनमें सैयद जाति के मुसलमानों को पैगम्बर मोहम्मद का वंशज माना जाता है. शेख जाति के मुसलमानों को अरब के अल-कुरैश कबीले का वंशज माना जाता है.
अजलाफ समूह में ये मुसलमान शामिल
दूसरे वर्ग के मुसलमानों को अजलाफ कहा जाता है. इनमें मुस्लिम समाज की पिछड़ी जातियां शामिल हैं. अजलाफ जाति में अंसारी, मंसूरी, राइन, कुरैशी, गद्दी, इदरिसी, सिद्दिकी और फाकिर जैसी कई जातियां आती हैं. इस वर्ग में वह मुसलमान शामिल हैं जिन्होंने धर्म परिवर्तन करके इस्लाम को अपनाया था. इन मुसलमानों की कई जातियों को OBC श्रेणी में आरक्षण का लाभ भी मिलता है.
कुरैशी जाति के मुसलमान मीट का व्यापार करते हैं और अंसारी जाति के मुसलमान मुख्यत: कपड़ा बुनाई का काम करते है.
अरजाल वर्ग के मुसलमान
अरजाल वर्ग में मुसलमानों की अतिपिछड़ी जातियां आती है. इसमें धोबी, मेहतर,अब्बासी, भटियारा, नट, हलालखोर, मेहतर,भंगी, बक्खो आदि शामिल हैं. मुस्लिमों में दलित जातियां नहीं होती है. इन्हें मुसलमानों में दलितों जैसी जातियां माना जाता है. यानि कह सकते हैं कि हिंदुओं में जो पेशा अनुसूचित जाति (SC) का होता है. मुसलमान में वह अजलाल वर्ग में आने वाली जातियों का है.
अजलाफ और अरजाल वर्ग में आने वाली जातियों के मुसलमानों को पसमांदा मुसलमान भी कहते हैं, जिसका मतलब होता है- आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए मुसलमान. यह वही मुसलमान हैं जिनके साथ जातियों के आधार पर काफी भेदभाव होता है.
मुस्लिमों में किस वर्ग की कितनी संख्या
भारतीय मुस्लिम समाज में अगड़ी जातियों के मुसलमानों की आबादी सिर्फ 15% है, जबकि मध्यम वर्ग की जातियों के मुसलमानों की आबादी 50% है और पिछड़े मुसलमानों की आबादी 35% है. दावा किया जाता है कि भारत में लगभग 85% आबादी पसमांदा मुसलमानों की है, जिसमें निम्न जातियों के मुसलमान आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी पिछड़े हुए हैं.
मुसलमानों में ऊंच-नीच की गहरी खाई
भारत में ऊंची या अगड़ी जाति के मुसलमान, सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी मजबूत है. उनका जीवन स्तर, निचली जातियों के लोगों के मुकाबले काफी अव्वल दर्जे का है. इन्हीं अगड़ी जाति के मुसलमानों का सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में उन्हें प्रतिनिधित्व होता है. मुसलमानों के धार्मिक संगठन जैसे वक्फ बोर्ड, मदरसे या मस्जिद कमेटियाँ में भी इन्हीं लोगों का दबदबा होता है. वहीं पसमांदा समाज हमेशा से हाशिए पर रहा है. पासमांदा समाज के लोग गरीब, कम पढ़े-लिखे और पीडितों की श्रेणी में आते हैं.
कहा यह भी जाता है कि मुस्लिमों के नाम पर सारी सुख-सुविधाओं का फायदा भी यही अगड़ी जाति के मुस्लिम ही उठाते है. बता दें मुस्लिम ओबीसी जातियों की स्थिति हिंदुओं से भी ज्यादा खराब है.
क्या अपनी जाति में शादी करते हैं मुस्लिम?
मुसलमानों में लोग अपनी जाति देखकर ही शादी करते हैं. इनमें भी अलग-अलग जातियों के रीति रिवाज अलग-अलग हैं. इतना ही नहीं भारत में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम इलाकों में जाति के आधार पर कॉलोनियां बसी हुई है. एक बिरादरी के मुस्लिम इस कॉलोनी में रहते हैं और दूसरी बिरादरी के दूसरी कॉलोनी में. कई जगह तो ऐसी हैं जहां जातियों के हिसाब से कब्रिस्तान बनाए गए हैं. हलालख़ोर, हवारी, रज्जाक जैसे मुस्लिम जातियों को लोगों को ऊंची जाति के मुसलमान सैयद, शेख़, पठान जातियों के क़ब्रिस्तान में दफ़नाने की जगह नहीं दी जाती.
क्या मुसलमानों को आरक्षण मिलता है?
मुसलमानों में कोई भी जाति कितनी भी पिछड़ी हो, उसे अनूसूचित जाति (SC) का दर्जा नहीं मिलता है. लेकिन मुसलमानों की कुछ पिछड़ी जातियों हैं जिन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलता है. लेकिन हलालख़ोर जैसी पिछड़ी जातियों के लोगों को कोई फ़ायदा नहीं मिलता, वहीं भारत में कहीं कहीं मुसलमानों की कुछेक जातियों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा मिला हुआ है. वहीं अगर हिंदू धर्म को मानने वाले अनुसूचित जाति और जनजाति का कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म अपना लेता है, तो उन्हें अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण नहीं मिलता.
जातिगत जनगणना से दलितों मुस्लिमों को क्या फायदा?
अभी तक भारत में जनगणना एक धार्मिक समूह के रूप में होती है. लेकिन इस बार जब पहली बार जातिगत जनगणना होगी तो इसमें मुस्लिमों की जातियों की भी गणना होगी. जिससे मुस्लिम समाज में विभिन्न जातियों और उनके सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति के आंकड़े सामने आएंगे. जिससे पसमांदा मुसलमान जो पिछड़े हुए हैं और उनके उत्थान का मार्ग सुनिश्चित होगा.
सरकार को इन आकंड़े के आधार पर पिछड़े तबके को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए नीति निर्धारण और योजना बनाने में मदद मिलेगी. जातिगत आंकड़ों के आधार पर आरक्षण, सरकारी योजनाएं और नेतृत्व में भागीदारी तय की जा सकती है. जिससे वास्तविक समानता, सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार की राह खुल सकती है.
ये भी पढ़ें- क्या है जातिगत जनगणना? क्यों पड़ी इसकी जरूरत? जानें हर सवाल का जवाब
कमेंट