भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है. नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक के बाद यह जानकारी दी कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अब 4.19 ट्रिलियन डॉलर हो गया है. इससे भारत, जापान (4.18 ट्रिलियन डॉलर) को पीछे छोड़कर चौथे स्थान पर पहुंच गया है. अब भारत से ऊपर अमेरिका (30.5 ट्रिलियन डॉलर), चीन (19.2 ट्रिलियन डॉलर) और जर्मनी (4.74 ट्रिलियन डॉलर) हैं.
सितंबर 2022 में भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना था. तीन साल से भी कम समय में भारत, जापान को पछाड़कर चौथी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है.
भारत का दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, लेकिन सवाल ये भी है कि साल 2014 से पहले ऐसा क्यों नहीं हो पाया? इसके पीछे कई आर्थिक, प्रशासनिक और नीतिगत कारण रहे हैं. आइए समझते हैं कि वो कौन-कौन सी प्रमुख वजहें थीं. जिनकी वजह से भारत इतनी तेजी से प्रगति नहीं कर पाया, जितनी की साल 2014 के बाद हुई.
1. धीमी आर्थिक सुधार प्रक्रिया (1991 के बाद)
1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई, लेकिन सुधारों की गति धीरे-धीरे चलती रही. कई क्षेत्रों में सुधार लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी, जैसे कि भूमि सुधार, श्रम कानूनों में बदलाव आदि. नौकरशाही और लालफीताशाही ने निजी निवेश और व्यापार की गति को बाधित किया.
A. जुलाई 2021 को पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स (PIIE) में छपे एक लेख में बताया गया कि साल 1991 में भारत ने व्यापार और विदेशी निवेश के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना शुरू किया, लेकिन सुधारों की प्रक्रिया राजनीतिक रूप से कठिन बनी रही. जिसके कारण देश को अभी भी लंबा रास्ता तय करना है.
Source- PIIE
B. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) वर्किंग पेपर
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के कुछ वर्किंग पेपर्स और विश्लेषणों में इस बात को रेखांकित किया गया है कि भारत में 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद सुधारों की प्रक्रिया अपेक्षाकृत धीमी रही है. इसका एक प्रमुख कारण देश की लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था है. लोकतंत्र की बुनियादी प्रकृति सहमति, संवाद और सहभागिता पर आधारित होती है, जिससे किसी भी बड़े नीति परिवर्तन के लिए व्यापक राजनीतिक समर्थन, सामाजिक स्वीकृति और अक्सर राज्यों की सहमति आवश्यक होती है. आईएमएफ के अनुसार, भारत जैसे विविधतापूर्ण और संघीय ढांचे वाले देश में यह प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली हो जाती है.
Source- IMF
C. कैटो इंस्टीट्यूट विश्लेषण
कैटो इंस्टीट्यूट, एक अमेरिकी स्वतंत्रतावादी थिंक टैंक है जो वाशिंगटन डीसी में स्थित है. संस्थान सार्वजनिक नीति के मुद्दों पर शोध करता है और नीतिगत सुझाव देता है. इस इंस्टीट्यूट में अक्टूबर 2016 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया कि 1991 के बाद के 25 वर्षों में भारत की आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया निजी क्षेत्र की सफलता और सरकारी विफलताओं की कहानी रही है.
Source – www.cato.org
2. कमजोर बुनयादी ढांचा (Infrastructure)
1991 से 2014 के बीच भारत में सड़क, बिजली, रेलवे और पोर्ट जैसे बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में निवेश अपेक्षाकृत कम रहा, जिससे आर्थिक विकास की गति पर प्रभाव पड़ा. इस अवधि में निवेश की कमी और उसके प्रभावों को दर्शाने वाले कुछ प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
A. बुनियादी ढांचा निवेश में गिरावट
जापान स्थित नोमुरा फाउंडेशन (Nomura Foundation) के अनुसार, 1990 के दशक की शुरुआत से भारत में बुनियादी ढांचा निवेश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हिस्सा घटता गया और 2003 में यह 33 वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच गया. इसमें ऊर्जा, हवाई अड्डे, बंदरगाह, सड़कें और दूरसंचार शामिल हैं.
Source- Nomura Foundation
B. सड़क, रेलवे और पोर्ट क्षेत्रों में निवेश की कमी
Academy of International Journal of Multidisciplinary Research (RAIJMR) एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि पिछले पांच वर्षों में टेलीकॉम और तेल एवं गैस क्षेत्रों में निवेश का बड़ा हिस्सा गया, जबकि सड़क, रेलवे और पोर्ट जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में वास्तविक निवेश में कमी देखी गई.
Source- RAIJMR
C. बिजली और रेल परियोजनाओं में देरी
साल 2010 की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2010 तक 559 केंद्रीय परियोजनाओं में से केवल 14 समय से आगे थीं, जबकि 117 समय पर थीं और शेष में देरी हो रही थी. इनमें सड़क, बिजली, रेलवे, पेट्रोलियम, दूरसंचार, कोयला और इस्पात जैसी परियोजनाएं शामिल थीं.
Source- indiabudget.gov.in
3. नीति निर्धारण में अस्थिरता और भ्रष्टाचार
नीति निर्धारण में अस्थिरता और भ्रष्टाचार भारत की आर्थिक प्रगति में एक महत्वपूर्ण बाधा रहा है, विशेषकर 1991 से 2014 के बीच. इस अवधि में कई प्रमुख घोटाले और नीतिगत अस्थिरताएं सामने आईं, जिनका निवेशकों के विश्वास और देश की आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा.
A. 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2008)
CAG रिपोर्ट: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने 2010 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 2G स्पेक्ट्रम आवंटन में 1.76 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित नुकसान की बात कही गई थी.
B. कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला (कोलगेट, 2012)
CAG रिपोर्ट: CAG ने 2012 में एक रिपोर्ट में बताया कि 2004 से 2009 के बीच कोयला ब्लॉकों के आवंटन में पारदर्शिता की कमी के कारण सरकार को 1.86 लाख करोड़ रूपये का अनुमानित नुकसान हुआ.
CBI की कार्रवाई: इस घोटाले के चलते केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने कई मामलों में जांच शुरू की और कई आरोपियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए.
Source- ndtv.com
C. नीति निर्धारण में अस्थिरता
नीतियों में बार-बार बदलाव: FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) नीतियों, विशेषकर खुदरा क्षेत्र में बार-बार बदलाव और अस्पष्टता ने निवेशकों के विश्वास को प्रभावित किया.
लाइसेंस राज: 1991 के उदारीकरण के बावजूद, कई क्षेत्रों में लाइसेंस और अनुमतियों की जटिल प्रक्रियाएं बनी रहीं, जिससे व्यापार करना कठिन होता गया.
4. कमजोर कर प्रणाली से विदेशी निवेशकों में भय
1991 से 2014 के बीच भारत की कर प्रणाली की जटिलता और बार-बार होने वाले बदलावों ने विदेशी निवेशकों के बीच अनिश्चितता और भय का माहौल बना, जिससे निवेश प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. नीचे इस विषय से संबंधित कुछ प्रमुख स्रोतों के लिंक दिए गए हैं.
A. ICRIER वर्किंग पेपर (2014): Improving Taxation Environment: Attracting Foreign Direct Investment
इस अध्ययन में बताया गया है कि 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के बावजूद, भारत की कर प्रणाली विदेशी निवेशकों के लिए जटिल और अस्थिर बनी रही. विशेष रूप से 2012 और 2013 में GAAR (General Anti-Avoidance Rules) और पिछली तारीख से कर लगाने जैसे कदमों ने निवेशकों के विश्वास को कमजोर किया.
Source- ICRIER
B. India Law Journal (2012): “India Budget Insight 2012: A Jolt to Foreign Investors
इस लेख में साल 2012 के बजट में प्रस्तावित कर प्रावधानों, जैसे कि विदेशी कंपनियों के शेयर ट्रांसफर पर पिछली तारीख से कर लगाने और GAAR की शुरुआत, को विदेशी निवेशकों के लिए प्रतिकूल बताया गया है. इन प्रावधानों ने निवेशकों के लिए कर नियोजन और लेन-देन की योजना बनाना कठिन बना दिया.
Source- India Law Journal
C. India Law Journal (2013): India’s Tax Regime and Foreign Investment
यह लेख भारत की कर प्रणाली की आक्रामकता और असंगत प्रवर्तन पर प्रकाश डालता है, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए एक प्रतिकूल निवेश वातावरण बना. लेख में कहा गया है कि भारत की कर प्रणाली को दुनिया की सबसे आक्रामक कर व्यवस्थाओं में से एक माना जाता है.
Source- India Law Journal
5. बैंकिंग प्रणाली की समस्याएं
1991 से 2014 के बीच भारत की बैंकिंग प्रणाली, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) को सबसे प्रमुख समस्या का सामना करना पड़ा वो था NPA. जिससे अर्थव्यवस्था की गति अवरुद्ध हो रही थी.
Non Performing Asset (NPAs) की भारी मात्रा
A. 1990 के दशक में उच्च NPA अनुपात: 1996-97 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल NPA अनुपात 17.8% तक पहुंच गया, जो उस समय की कुल बैंकिंग प्रणाली के लिए 15.7% था.
Source- isid.org.in
B. 2014 में NPA की बढ़ती प्रवृत्ति: 2014 की अंतिम तिमाही में, प्रमुख सार्वजनिक बैंकों में सकल NPA अनुपात 2.3% से 7.2% के बीच था, जो पिछले वर्ष के 2.10% से 3.19% के मुकाबले अधिक था.
Source- pinkerton.com
6. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पिछड़ना
1991 से 2014 के बीच, भारत ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण तो उठाए, लेकिन वैश्विक परिप्रेक्ष्य में चीन जैसे देशों की तुलना में भारत की प्रगति अपेक्षाकृत धीमी रही, विशेषकर निर्यात और विनिर्माण क्षेत्रों में.
A. विनिर्माण क्षेत्र में धीमी वृद्धि
वर्ष 1991 से 2014 के बीच, भारत के विनिर्माण क्षेत्र की वार्षिक औसत वृद्धि दर लगभग 7% रही. हालांकि, यह वृद्धि दर चीन की तुलना में कम थी, जिसने इसी अवधि में अपने विनिर्माण क्षेत्र को तेजी से फैलाया. चीन ने श्रम-प्रधान उद्योगों में निवेश को प्रोत्साहित किया, जिससे उत्पादन और निर्यात दोनों में तेजी आई.
B. निर्यात पर निर्भरता में अंतर
भारत की निर्यात निर्भरता, यानी GDP में निर्यात का योगदान, 1991 में लगभग 20% थी, जो 2014 तक केवल 24% तक बढ़ी. इसके विपरीत, चीन ने अपने निर्यात को GDP का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया, जिससे उसका औद्योगीकरण तेज हुआ.
C. नीतिगत और संस्थागत बाधाएं
भारत में श्रम कानूनों की कठोरता, भूमि अधिग्रहण में जटिलताएं, और बुनियादी ढांचे की कमी ने निवेशकों को हतोत्साहित किया. इसके विपरीत, चीन ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना की और नीतिगत स्थिरता प्रदान की.
Sourse- lancaster.ac.uk
वर्ष 2014 के बाद बदलाव की दिशा
वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद कुछ बड़े कदम उठाए गए, जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलनी शुरू हुआ और मई 2025 में भारतीय इकोनॉमी दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर कर सामने आई. इस दौरान जो बदलाव लागू हुए उनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं:
-GST लागू होना – एकीकृत कर व्यवस्था.
-इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भारी निवेश – सड़क, रेल, हाइवे, एयरपोर्ट.
-डिजिटल इंडिया और जनधन योजना – वित्तीय समावेशन और तकनीकी सुविधा.
-FDI में सुधार – अधिक विदेशी निवेश की अनुमति.
-पीएलआई योजना – विनिर्माण को बढ़ावा देना.
Conclusion:
भारत में वर्ष 2014 से पहले भी आर्थिक क्षमता थी, लेकिन नीतिगत स्पष्टता, प्रशासनिक सुधार, बुनियादी ढांचे का विकास, और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की कमी के कारण यह क्षमता पूरी तरह उपयोग में नहीं आ पाई. पिछले एक दशक में जब इन क्षेत्रों में सुधार हुए, तब जाकर भारत तेजी से आर्थिक रैंकिंग में ऊपर आया.
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