भारत का विकास हमेशा बहस और विश्लेषण का विषय रहा है. खासकर 2014 के बाद जब केंद्र में मोदी सरकार सत्ता में आई. इस परिवर्तन के बाद आर्थिक सुधारों, बुनियादी ढांचे, डिजिटल क्रांति और सामाजिक योजनाओं के क्षेत्र में कई बड़े कदम उठाए गए. वहीं वर्ष 2014 से पहले की सरकारों ने भी शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में अहम योगदान दिया. यह तुलना केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि नीति, दृष्टिकोण और कार्यान्वयन की भी है. इस विषय में हम जानने का प्रयास करेंगे कि क्या वास्तव में 2014 के बाद भारत ने तेज गति से प्रगति की है.
1- राष्ट्रीय राजमार्ग
साल 2014 के बाद भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का कितना विकास?
साल 2014 से 2024 के बीच भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) के क्षेत्र में बहुत बड़े पैमाने पर विकास हुआ है, जिससे देश की कनेक्टिविटी और आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है. इस दौरान सरकार ने बुनियादी ढांचे के विस्तार और गुणवत्ता सुधार पर विशेष ध्यान केंद्रित किया.
राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क में वृद्धि
A- लंबाई में वृद्धि: 2014 में भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 91,287 किलोमीटर थी, जो 2024 तक बढ़कर 1,46,195 किलोमीटर हो गई है. यह लगभग 60% की वृद्धि है.
Source Link- Times of India
B- फोर-लेन और उससे अधिक चौड़े राजमार्ग: 2014 में ऐसे राजमार्गों की लंबाई 18,278 किलोमीटर थी, जो 2024 में बढ़कर 45,947 किलोमीटर हो गई है, यानी 2.5 गुना वृद्धि हुई.
Source Link- financialexpress.com
C- हाई-स्पीड कॉरिडोर: 2014 में हाई-स्पीड कॉरिडोर की लंबाई 93 किलोमीटर थी, जो 2024 में बढ़कर 2,474 किलोमीटर हो गई है.
Source Link- theweek.in
निर्माण गति
2014-15 में प्रति दिन औसतन 12.1 किलोमीटर राजमार्ग का निर्माण होता था, जो 2023-24 में बढ़कर 34 किलोमीटर प्रतिदिन हो गया है.
Source Link- timesofindia
पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure)
सड़क निर्माण पर सरकार का पूंजीगत व्यय 2013-14 में 51,000 करोड़ रूपये था, जो 2022-23 में बढ़कर 2.4 लाख करोड़ रुपये हो गया है.
Source Link- reuters.com
साल 2014 से पहले एक दशक में भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का कितना विकास?
वर्ष 2004 से 2014 के बीच भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई में वृद्धि हुई और कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं की शुरुआत भी हुई. लेकिन निर्माण की रफ्तार और चौड़ीकरण की प्रक्रिया बहुत धीमा रही. इस अवधि में देश के राजमार्ग नेटवर्क के विस्तार की नींव रखी गई, जिसे 2014 में मोदी सरकार आने के बाद के वर्षों में अधिक गति और विस्तार मिला.
वर्ष 2004-05 में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 65,569 किलोमीटर थी, जोकि 2013-14 में बढ़कर 91,287 किलोमीटर हुई. जोकि इस दौरान हुई 39 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है. इस दौरान औसत निर्माण 7 किलोमीटर प्रतिदिन था, जबकि साल 2014-15 में यह गति 12.1 किमी/दिन थी. इस दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग जुड़ी कई परियोजनाएं भी शुरू की गईं. इस दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) के तहत इस पर 2004-2014 के दौरान लगभग 2,20,000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया.
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2014-24 और 2004-14 के बीच राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास की तुलना
साल 2014 से 2024 का दौर सड़क निर्माण की गुणवत्ता और गति में सुधार पर केंद्रित रहा है. जिसमें 2004-2014 की तुलना में राष्ट्रीय राजमार्गों के वार्षिक निर्माण में लगभग 130% की वृद्धि हुई है.
Source Link- pib.gov.in
2. हवाई क्षेत्रों में कितना विकास
साल 2014 से 2024 के बीच भारत में हवाई क्षेत्रों में कितना विकास हुआ
साल 2014 से 2024 के बीच भारत में हवाई अड्डों को लेकर बड़े पैमाने पर विकास हुआ है. इस दौरान क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर पूरा फोकस किया गया है.
हवाई अड्डों की संख्या में बढ़ोतरी
वर्ष 2014 में भारत में 74 हवाई अड्डे संचालित थे. साल 2024 तक यह संख्या बढ़कर 159 हो गई है, जो लगभग दोगुनी वृद्धि है. यह वृद्धि मुख्य रूप से UDAN (उड़े देश का आम नागरिक) योजना के तहत संभव हुई, जिसका उद्देश्य छोटे शहरों और पिछड़े क्षेत्रों को हवाई नेटवर्क से जोड़ना है.
Source Link- infra.economictimes.indiatimes.com
UDAN योजना की उपलब्धियां
A. उड़ान योजना 21 अक्टूबर 2016 को शुरू की गई थी. पहली उड़ान 27 अप्रैल 2017 को शिमला और दिल्ली के बीच संचालित हुई थी.
B. अब तक 625 उड़ान मार्ग चालू किए गए हैं जो पूरे भारत में 90 हवाई अड्डों (2 जल हवाई अड्डों और 15 हेलीपोर्ट सहित) को जोड़ते हैं.
C. उड़ान के अंतर्गत 1.49 करोड़ से अधिक यात्री किफायती क्षेत्रीय हवाई यात्रा से लाभान्वित हुए हैं.
D. भारत का हवाई अड्डा नेटवर्क 2014 में 74 हवाई अड्डों से बढ़कर 2024 में 159 हवाई अड्डों तक पहुंच गया जो एक दशक में दोगुने से भी अधिक है.
E. दूरदराज के क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए 4,023.37 करोड़ रूपये वितरित किए गए.
F. उड़ान ने क्षेत्रीय पर्यटन, स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच और व्यापार को मजबूत किया जिससे टियर-2 और टियर-3 शहरों में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला.
Source Link- pib.gov.in
भविष्य की योजनाएं
UDAN योजना को आगामी 10 वर्षों के लिए बढ़ाया गया है, जिससे क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और सुदृढ़ होगी. सरकार का लक्ष्य 2047 तक 350-400 हवाई अड्डों को परिचालित करना है.
Source Link- business-standard.com
साल 2004 से 2014 के बीच भारत में हवाई क्षेत्रों में कितना विकास हुआ
साल 2004 से 2014 के बीच भारत के नागर विमानन क्षेत्र में विकास तो हुई लेकिन अगर इसकी तुलना साल 2014 से 2014 के दौरान हुए डेवलपमेंट को देखा जाए तो बहुत कम है. नीचे साल 2004 से 2014 के बीच की अवधि के दौरान हुए के बारे में बताया गया है.
हवाई अड्डों की संख्या में वृद्धि
साल 2004 में भारत में 89 परिचालन हवाई अड्डे थे, जो 2014 तक बढ़कर 125 हो गए. इस प्रकार, इस दशक में 36 नए हवाई अड्डों का विकास हुआ. यह जानकारी नागर विमानन मंत्रालय की तत्कालीन वार्षिक रिपोर्टों में उपलब्ध है.
Source Link- civilaviation.gov.in
3. रेलवे का विद्युतीकरण
रेलवे का विद्युतीकरण (2014 से 2024 तक)
साल 2014 से 2024 के बीच भारतीय रेलवे ने विद्युतीकरण में विशेष प्रगति की है. इस अवधि में लगभग 45,200 रूट किलोमीटर (RKM) का विद्युतीकरण किया गया. मई 2025 तक ब्रॉड गेज नेटवर्क का कुल विद्युतीकरण 97% तक पहुंच गया है.
साल 2014-15 में जहां विद्युतीकरण की गति लगभग 1.42 किमी/दिन थी, वहीं 2023-24 में यह बढ़कर 19.7 किमी/दिन हो गई. इस दशक में 46,425 करोड़ रूपय से अधिक का निवेश किया गया है, और 2024-25 के लिए 6,500 करोड़ रूपये का बजट आवंटित किया गया है.
साल 2023-24 में 7,188 किमी का विद्युतीकरण हुआ, जिसमें अहमदाबाद-राजकोट-ओखा (499 किमी), बेंगलुरु-तालगुप्पा (371 किमी) और बठिंडा-फिरोजपुर-जालंधर (301 किमी) जैसे प्रमुख मार्ग शामिल हैं. यह परिवर्तन 2027-28 तक कार्बन उत्सर्जन में 24% की कटौती का लक्ष्य रखता है.
अब तक 20 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं, जहां रेलवे नेटवर्क का 100% विद्युतीकरण पूरा हो चुका है.
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साल 2004 से 2014 के बीच भारतीय रेलवे की प्रगति
साल 2004 से 2014 के बीच भारतीय रेलवे ने विद्युतीकरण के क्षेत्र में प्रगति की थी. हालांकि यह गति सीमित रही.
विद्युतीकरण के मामले में मार्च 2004 से मार्च 2014 तक भारतीय रेलवे ने लगभग 24,891 रूट किलोमीटर (RKM) का विद्युतीकरण पूरा किया था.
साल 2007–2012 (11वीं पंचवर्षीय योजना) की अवधि में 4,556 RKM का विद्युतीकरण हुआ, जो निर्धारित लक्ष्य 4,500 RKM से अधिक था।
साल 2012–2014 (12वीं पंचवर्षीय योजना के पहले दो वर्ष) के दौरान 2,667 RKM का विद्युतीकरण हुआ, जबकि इस अवधि के लिए लक्ष्य 2,600 RKM था.
विद्युतीकरण की औसत गति के मामले इस दशक में औसतन 185 किलोमीटर प्रति वर्ष की दर से विद्युतीकरण हुआ.
कुल नेटवर्क में हिस्सेदारी: 2014 तक, भारतीय रेलवे के कुल नेटवर्क का लगभग 35.94% हिस्सा विद्युतीकृत था.
Source Link- studylib.net
4. डिजिटल क्रांति: UPI और डिजिटल भुगतान
वर्ष 2014 के बाद और उससे पहले डिजिटल पेंमेंट्स को लेकर भारत में क्या स्थिति थी?
भारत में 2014 से 2024 के बीच डिजिटल क्रांति में अभूतपूर्व गति पकड़ी, जिसमें यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने मुख्य भूमिका निभाई है. इस दशक में भारत ने न केवल डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल की, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अग्रणी स्थान प्राप्त किया.
A. डिजिटल भुगतान की रीढ़ बना UPI
UPI की शुरुआत 2016 में नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा की गई थी. यह एक रियल-टाइम इंटरबैंक भुगतान प्रणाली है जो मोबाइल ऐप्स के माध्यम से तुरंत लेन-देन (Money Transactions) की सुविधा प्रदान करती है.
अगर हम यूपीआई ट्रांजैशन की बात करें तो दिसंबर 2016 में 1.99 मिलियन से बढ़कर दिसंबर 2024 में इनकी संख्या 16,730.01 मिलियन (16.73 अरब) हो गई.
UPI ट्रांजैशन के वैल्यु की बात करें तो दिसंबर 2016 में 707.93 करोड़ रूपये से बढ़कर दिसंबर 2024 में 23,24,699.91 करोड़ रूपये हो गई है.
वहीं, दिसंबर 2024 तक 641 बैंक यूपीआई पर सक्रिय हैं, जबकि दिसंबर 2016 में केवल 35 बैंक ही इससे जुड़े थे और दिसंबर 2020 में इनकी संख्या 207 थी.
Source Link- pib.gov.in
B- डिजिटल पेमेंट्स में UPI का कितना बोलबाला
UPI ने भारत के डिजिटल भुगतान परिदृश्य में प्रमुख स्थान प्राप्त किया है. पेमेंट वाल्यूम में हिस्सेदारी को बात करें तो 2019 में 34% से बढ़कर 2024 में 83% आ गई है.
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C. वैश्विक स्तर पर UPI की स्वीकार्यता
भारत के UPI ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. वर्ष 2023 में भारत ने लगभग 129.3 अरब रियल-टाइम भुगतान किए, जो वैश्विक रियल-टाइम लेन-देन का लगभग 49% है.
साल 2024 में भारत ने लगभग 139.99 अरब UPI लेन-देन किए, जिनका कुल मूल्य 246.83 लाख करोड़ रूपये(लगभग 2.85 ट्रिलियन डॉलप) था.
दिसंबर 2024 तक UPI 7 देशों में लाइव हैं, जिनमें UAE, सिंगापुर, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, फ्रांस और मॉरीशस शामिल हैं.
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साल 2014 से 2024 के बीच भारत में डिजिटल भुगतान प्रणाली, विशेष रूप से UPI, ने बड़े स्तर पर विकास किया है. सरकार की नीतियों, तकनीकी नवाचारों और उपभोक्ताओं की बढ़ती स्वीकृति ने मिलकर भारत को डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में ग्लोबल लीडर बना दिया है.
2004 से 2014 के बीच कैसी थी डिजिटल भुगतान प्रणाली
2004 से 2014 के बीच भारत में UPI और डिजिटल भुगतान प्रणाली आज की तुलना में बहुत प्रारंभिक अवस्था में थी. इस दशक को डिजिटल भुगतान का बीज बोने वाला दौर कहा जा सकता है, जबकि असली विस्तार 2014 के बाद ही हुआ. तो आईए जानते हैं कि इस दौरान डिजिटल भुगतान की स्थिति कैसी थी.
UPI का अस्तित्व नहीं था. इसकी शुरुआत अप्रैल 2016 में हुई. इस समय भारत का डिजिटल भुगतान प्रमुख रूप से क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, और नेटबैंकिंग तक सीमित था. निजी और कुछ सार्वजनिक बैंक नेटबैंकिंग सेवाएं दे रहे थे. इसके उपयोगकर्ताओं की संख्या सीमित थी. यह ज्यादातर शहरी और उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग तक सीमित था. डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड प्रचलन में आने लगे थे, लेकिन उपयोग ज्यादातर एटीएम निकासी तक सीमित था.
इस दौर में ऑनलाइन शॉपिंग धीरे-धीरे शुरू हो रही थी, जैसे कि Flipkart, IRCTC आदि. इस दौरान मोबाइल पेमेंट का अभाव था क्योंकि स्मार्टफोन का प्रसार सीमित था और 2G इंटरनेट प्रमुख था. SMS आधारित बैंकिंग सेवाएं कुछ हद तक उपलब्ध थीं.
रियल-टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) की शुरुआत साल 2004 में हुई, लेकिन न्यूनतम राशि 2 लाख थी. यह केवल हाई-वैल्यू ट्रांसफर के लिए थी. इसके बाद नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) की शुरुआत 2005 में हुई, जिससे बैंक-टू-बैंक इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर संभव हुआ.
इसके बाद साल 2010 में पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया यानि NPCI द्वारा इमीडिएट पेंमेंट सर्विस (IMPS) की शुरुआत हुई. इसे यूपीआई का पूर्ववर्ती कहा जा सकता है. लेकिन इसे व्यापक रूप से अपनाया नहीं गया.
5. स्टार्टअप इंडिया की सफलता
स्टार्टअप इंडिया की सफलता (2014-24)
30 जून 2024 तक उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने 1,40,803 संस्थाओं को स्टार्टअप के रूप में मान्यता दी है. 2016 में स्टार्टअप इंडिया पहल के शुभारंभ के बाद से, डीपीआईआईटी-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप ने 30 जून 2024 तक 15.53 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां पैदा की हैं. इसके अलावा, 30 जून 2024 तक 67,499 डीपीआईआईटी-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप में कम से कम एक महिला निदेशक बनी हैं.
A. 2024 तक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स: 1,40,803
B. महिला निदेशक वाले स्टार्टअप्स: 67,499
C. निर्मित प्रत्यक्ष नौकरियां: 15.53 लाख
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भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम वाला देश
भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है. यह जानकारी केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 6 मई 2025 को दी. पुरी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में स्टार्टअप क्रांति आई है. उन्होंने बताया कि गेल की स्टार्टअप योजना ‘पंख’ खास तौर पर युवाओं के नए विचारों को प्रोत्साहित कर रही है, जिससे ऊर्जा के क्षेत्र में इनोवेशन और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिल रहा है. बता दें कि स्टार्टअप इकोसिस्टम मामले में पहले नंबर पर अमेरिका और दूसरे नंबर पर ब्रिटेन है.
Source Link- ddnews.gov.in
स्टार्टअप: 2004-2014 के बीच कितना विकास
वर्ष 2004 से 2014 के बीच भारत में स्टार्टअप्स की संख्या और स्टार्टअप इकोसिस्टम में वृद्धि हुई. हालांकि इस अवधि के प्रारंभिक वर्षों में स्टार्टअप्स की संख्या सीमित थी, लेकिन दशक के अंत तक भारत दुनिया के प्रमुख स्टार्टअप हब्स में से एक बना.
जहां 2010 में लगभग 480 स्टार्टअप्स थे. वहीं 2013 में इनकी संख्या लगभग 2,200 पहुंची, जबकि 2014 में लगभग 3,100 स्टार्टअप्स हो गए.
इस दौरान स्टार्टअप गतिविधियों का 90% हिस्सा बेंगलुरु, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, हैदराबाद, पुणे और चेन्नई जैसे प्रमुख शहरों में केंद्रित था.
साल 2014 में भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया था. इस दौरान अमेरिका पहले नंबर पर, ब्रिटेन दूसरे नंबर पर था. जबकि इजराइल तीसरे नंबर था
Source Link- statinvestor.com
2004-2014 के बीच स्टार्टअप इकोसिस्टम में विकास हुआ, इसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह भी सत्य है कि 2014 के बाद जितना जितना डेवलपमेंट हुआ, वह इससे कई गुना ज्यादा रहा.
6. रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
वर्ष 2014 से 2024 के बीच भारत का रक्षा निर्यात और आयात
वर्ष 2014 से 2024 के बीच भारत के रक्षा निर्यात में बड़ी वृद्धि हुई है, जबकि आयात में अपेक्षित कमी नहीं आई है. सरकार का लक्ष्य 2028-29 तक रक्षा निर्यात को 50,000 करोड़ तक पहुंचाना है, जो आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.
रक्षा निर्यात: 2014–2024
साल 2013-14 में भारत का रक्षा निर्यात 686 करोड़ रूपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 21,083 करोड़ रूपय हो गया. यह 31 गुना वृद्धि है.
वर्ष 2024-25 में यह आंकड़ा 23,622 करोड़ रूपये तक पहुंच गया, जो 2013-14 की तुलना में 34 गुना अधिक है. इस वृद्धि का श्रेय ‘मेक इन इंडिया’ पहल, निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के सहयोग और निर्यात प्रक्रियाओं के सरलीकरण को जाता है.
रक्षा आयात: 2014–2024
हालांकि आयात के मामले में अपेक्षित कमी नहीं आई, लेकिन आत्मनिर्भरता पर जोर देने अभियान से जल्द ही यह काम भी पूरा हो जाएगा.
भारत 2019–23 की अवधि में दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक बना रहा, जिसका वैश्विक आयात में 9.8% हिस्सा था. 2014–18 की तुलना में 2019–23 में भारत के रक्षा आयात में 4.7% की वृद्धि हुई.
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साल 2004 से 2014 के बीच रक्षा क्षेत्र में कितना निर्यात और आयात
रक्षा निर्यात (2004–2014)
साल 2004 से 2014 के बीच की अवधि में भारत कुल रक्षा निर्यात 4,312 करोड़ रहा. यह निर्यात मुख्यतः सीमित मात्रा में हुआ और वैश्विक स्तर पर भारत का योगदान न्यूनतम रहा. इस दौरान निर्यात की गई प्रमुख वस्तुओं में हल्के हेलीकॉप्टर, निगरानी प्रणाली, और कुछ रक्षा उपकरण शामिल थे. हालांकि, यह निर्यात आयात की तुलना में नगण्य था.
Source Link- timesofindia.indiatimes.com
रक्षा आयात (2004–2014)
इस दशक में भारत ने रक्षा आयात पर लगभग 30 बिलियन डॉलर (2.56 लाख करोड़ रूपये) खर्च किए, जिसमें 499 विमान और हेलीकॉप्टर, मिसाइलें, रडार, और नौसैनिक जहाज शामिल थे. मुख्य आपूर्तिकर्ता देश रूस, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और इज़राइल थे. साल 2014 में भारत का रक्षा आयात निर्यात की तुलना में 40 गुना अधिक था, जो देश की भारी आयात निर्भरता को दर्शाता है.
Source Link- timesofindia.indiatimes.com
साल 2004 से 2014 के बीच भारत का रक्षा निर्यात तो सीमित रहा, जबकि आयात में निरंतर वृद्धि हुई. इस अवधि में आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस प्रगति नहीं हुई, और भारत दुनिया के प्रमुख रक्षा आयातकों में बना रहा.
7. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)
2014 से 2024 तक भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) कितना रहा?
साल 2014 से 2024 के बीच भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में बड़ी वृद्धि हुई है. वर्ष 2013-14 में FDI लगभग 2.17 लाख करोड़ रूपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 6.21 लाख करोड़ रूपये हो गया.
इस दशक में कुल FDI 56.73 लाख करोड़ रूपये रहा. जो पिछले दशक (2004-14) की तुलना में 119% अधिक है.
2021-22 में भारत ने 6.84 लाख करोड़ रूपये के साथ अब तक का सर्वोच्च वार्षिक FDI प्राप्त किया. हालांकि, 2023-24 में FDI में 3.5% की गिरावट दर्ज की गई, जो सेवा, सॉफ्टवेयर, टेलीकॉम और ऑटो सेक्टर में कमी के कारण हुआ. वहीं, निर्माण और ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश में वृद्धि देखी गई.
FDI के प्रमुख स्रोत देशों में मॉरीशस, सिंगापुर, अमेरिका और नीदरलैंड शामिल हैं. इस अवधि में भारत की निवेश नीति में सुधार, जैसे कि ऑटोमैटिक रूट के तहत 100% FDI की अनुमति ने निवेशकों को आकर्षित किया है.
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2004 से 2014 तक भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) कितना रहा?
साल 2004 से 2014 के बीच भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) कितना रहा इसके लिए नीचे आंकड़े दिए गए हैं.
साल 2004-05 में FDI 14,653 करोड़ रहा, जोकि वर्ष 2013-14 में 1,47,518 करोड़ रूपये तक पहुंच गया.
विशेष रूप से 2006-07 में 56,390 करोड़ रूपये और 2007-08 में 98,642 करोड़ रुपये का निवेश दर्ज किया गया, जो कि क्रमशः 146% और 75% की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है.
हालांकि, 2009-10 और 2010-11 में वैश्विक आर्थिक मंदी के प्रभाव के कारण FDI में गिरावट देखी गई, लेकिन 2011-12 में 1,65,146 करोड़ के निवेश के साथ फिर वृद्धि हुई.
इस दशक में कुल FDI 8,18,000 करोड़ रूपये से अधिक रहा. इस वृद्धि में सेवा क्षेत्र, निर्माण, दूरसंचार, और ऑटोमोबाइल उद्योगों में निवेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा.
Source Link- researchgate.net
वर्ष 2014 से पहले और बाद के भारत की तुलना केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दो अलग-अलग दृष्टिकोणों, नीतियों और विकास की प्राथमिकताओं की कहानी भी है. वर्ष 2014 से पहले भारत ने आधारभूत ढांचे, शिक्षा और सामाजिक कल्याण योजनाओं में मजबूत नींव रखी, जबकि 2014 के बाद डिजिटल इंडिया, बुनियादी सुविधाओं का विस्तार, तेज निर्णय-निर्माण और वैश्विक मंच पर भारत की सशक्त छवि को बल मिला. दोनों अवधियों का विकास अपने-अपने संदर्भ में महत्वपूर्ण कहा जा सकता है लेकिन 2014 के बाद जिस गति से विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ी है, वह प्रशंसनीय हैं, उसे कभी नहीं भूला जा सकता है.
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