राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय’ 2025 के समापन समारोह में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रभावशाली वाक्य कहा. यह वाक्य है- ‘निश्चित होगा परिवर्तन, जाग रहा है जन-गण-मन’.
यह वाक्य न सिर्फ उत्साह बढ़ाने वाला था, बल्कि आज के भारत में हो रहे सामाजिक और मानसिक बदलावों की ओर भी इशारा करता है. आइए जानते हैं कि संघ प्रमुख ने ऐसा क्यों कहा और इसके मायने क्या हैं.
मोहन भागवत का कहना था कि अब भारतीय समाज जागरूक हो रहा है. लोग सिर्फ अपने व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि देश, समाज, संस्कृति और राष्ट्रीय सुरक्षा की बातों में भी रुचि ले रहे हैं. वे अब सवाल कर रहे हैं, जवाब मांग रहे हैं और जरूरत पड़ने पर आवाज भी उठा रहे हैं. यही जन-गण-मन का जागना है.
उन्होंने कहा कि लोग अब अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगे हैं, अब देश की समस्याओं को केवल सरकार या नेताओं की जिम्मेदारी मानने की मानसिकता बदल रही है. डॉ. भागवत ने कहा कि आम नागरिक भी बदलाव का हिस्सा बनना चाहता है, यही समाज में वास्तविक परिवर्तन की शुरुआत है.
संघ प्रमुख ने इस बात पर जोर दिया कि यह बदलाव एक स्थायी दिशा में जा रहा है, जब जनमानस जाग जाता है, तब परिवर्तन कोई रोक नहीं सकता.
संघ प्रमुख की इस वाक्य का मतलब है कि आने वाले समय में देश की सोच, नीतियां, संस्कृति और राजनीति सब में बदलाव आएगा और वह भी सकारात्मक दिशा में. यह बदलाव केवल सत्ता परिवर्तन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह सोच और दृष्टिकोण के स्तर पर भी गहराई से होगा.
बता दें कि इस समारोह में 800 से अधिक स्वयंसेवकों ने भाग लिया. मोहन भागवत ने इन युवाओं से कहा कि वे इस जागते हुए समाज के साथ कदम मिलाकर चलें. उन्होंने यह भी कहा कि संगठन का उद्देश्य समाज को दिशा देना है, सत्ता प्राप्त करना नहीं. संघ का काम है- संस्कारित, जागरूक और संगठित समाज का निर्माण.
यह एक संकेत है कि देश अब सिर्फ बदलने को तैयार नहीं, बल्कि बदल रहा है और वह भी अपने अंदर से बदल रहा है.
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