Swami Vivekananda Death Anniversary: ‘सिस्टर्स एण्ड बर्दर्स ऑफ अमेरिका…’ के साथ साल 1893 में शिकागो में आयोजित हुए विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने इस लाइन के साथ अपने भाषण की शुरूआत की थी. भाषण की शानदार शुरूआत सुनते ही पूरा हॉल तालियों की आवाज से गूंज उठा था. स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) के इस भाषण के बाद पूरे विश्न में भारत को देखने के नजरिए में बदलाव आया है. अमेरिका में दिए गए स्वामी विवेकानंद के इस ऐतिहासिक भाषण को आज भी लोगों के द्वारा याद किया जाता है. विवेकानंद भारतीय संस्कृति,वेदांत और योग के महान प्रचारक थे.
हर साल 4 जुलाई को पूरा भारत स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि (Swami Vivekananda Death Anniversary) मनाता है. वह भारत के सबसे महान विद्धवानों, आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे. 12 जनवरी, 1863 को कोलकता के कायस्थ परिवार में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था. उनका पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त, जो कलकत्ता हाईकोर्ट में पेशे से वकील थे. उनकी माता भुवनेश्वरी देवी जो बेहद धार्मिक थी. विवेकानंद के दादा-दादी, माता-पिता के धार्मिक संगत का प्रभाव उन पर बचपन से ही देखने को मिला था. बता दें, स्वामी विवेकानंद को यह नाम राजस्थान के खेतड़ी नामक छोटे से राज्य के शासक महाराजा अजीत सिंह ने दिया था.
स्वामी विवेकानंद का बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर झुकाव थोड़ा ज्यादा था. वह अपने गुरु रामकृष्ण परमंहस से बेहद प्रभावित थे. वह इतिहास, साहित्य, कला, धर्म और दर्शन जैसे विषयों में खास रुचि रखते थे. उन्होंने रामायण, महाभारत, श्री मदभगवद्गीता, वेद समेत कई हिंदू शास्त्रों का अध्ययन किया था. स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद का जनक भी माना जाता है.
अमेरिका में ‘साइक्लोनिक हिंदू’ के नाम से मिली पहचान
शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद 3 साल तक अमेरिका में ही रहे थे. उनके ज्ञान और वक्तव्य-शैली के अंदाज को देखते हुए अमेरिकी मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लोनिक हिंदू’ का नाम दिया गया था. 11 सितंबर, 1893 में अमेरिका के शिकागो में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए भाषण के दौरान उन्होंने मानव समाज को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भी शिक्षा दी थी.
4 जुलाई को दुनिया को कहा था अलविदा
स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई, 1902 को हुआ था. उनके शिष्यों का कहना है कि विवेकानंद ने महासमाधि ली थी. महज 39 साल की उम्र में विवेकानंद ने दुनिया छोड़ दी थी. उनका मानना था कि भारतीय दर्शन और अध्यात्म -विद्या के बिना दुनिया अनाथ रह जाती है.
स्वामी विवेकानंद जीवन की खास उपलब्धि
स्वामी विवेकानंद का जीवन अनेक उपलब्धियों से भरा हुआ है. जिनमें से खास 4 उपलब्धियां ये हैं.
1893 में शिकागो में विश्व धर्म ससंद में दिया ऐतिहासिक भाषण
11 सितंबर, 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद ने एक भाषण दिया था. जिसकी शुरूआत उन्होंने सिस्टर्स और बर्दर्स ऑफ अमेरिका से की थी. उनके इस लाइन के बाद ही करीब 2 मिनट तक हॉल में तालियों की आवाज से गूंजता रहा था. उनके इस संबोधन ने विश्वभर के आध्यात्मिक और धार्मिक संतों पर एक अमिट छाप छोड़ी थी.
भारत की सांस्कृतिक जागरुकता को दोबारा से किया जीवित
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को स्वाभिमान, आत्मविश्वास और कर्मठता के रास्ते पर चलने की प्ररेणा दी. उन्होंने युवाओं को आधुनिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता को जोड़े रहने के लिए भी प्रेरित किया और राष्ट्रभक्ति जगाई.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
स्वामी विवेकानंद ने साल 1897 में अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के द्वारा प्राप्त की गई शिक्षा को लोगों को बीच में फैलान के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की गई थी. आज भी इस मिशन के तहत शिक्षा, आध्यात्मिक जागरुकता और सेवा के क्षेत्र में काम कर रहा है.
पश्चिमी दुनिया में योग और वेदांत का किया खूब प्रचार
स्वामी विवेकानंद को वैश्विक मंचों पर हिंदू धर्म के बारे में लोगों को जागरुक करने का पूरा श्रेय दिया जाता है. शिकागों में हुई विश्व धर्म महासभा में शामिल होकर उन्होंने हिंदू धर्म की मूल बातों और वेदांत को सबके सामने रखा. 19सीं सदीं में अंतर-धार्मिक जागरुकता को बढ़ाने और हिंदू धर्म को एक विशेष दर्जा दिलाने का पूरा श्रेय स्वामी विवेकानंद को जाता है.
स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन
“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये.”
“सबसे बड़ा पाप है अपने आप को कमजोर समझना”
“सारी शक्ति आपके भीतर है; आप कुछ भी और सब कुछ कर सकते हैं.”
“जब तक आप स्वयं पर विश्वास नहीं करेंगे तब तक आप ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकते.”
“सत्य को हजार तरीकों से कहा जा सकता है, फिर भी प्रत्येक तरीका सत्य हो सकता है.”
स्वामी विवेकानंद के प्रमुख विचार
गंगा नदी नहीं हमारी मां है
एक बार अमेरिकी मीडिया ने विवेकानंद से नदियों को लेकर एक प्रश्न पूछा कि आपके देश में सबसे अच्छा पानी कौन-सी नदी का है? तब विवेकानंद जी ने उत्तर दिया यमुना. तब मीडिया ने कहा कि आपके देश की जनता तो बोलती है कि गंगा नदी का जल सबसे अच्छा है. तब स्वामी जा का उत्तर सुन सब लोग हैरान रह गए. स्वामी विवेकानंद ने कहा कि कौन कहता है गंगा नदी हैं, वो तो हमारी मां है.
दूसरों के पीछे ना भागे
स्वामी विवेकानंद का कहना है कि कभी भी दूसरों के पीछे न भागे. तुम अपनी मंजिल पर जाने के बजाये दूसरों के पीछे भागते रहते हो.
सांस्कृति वस्त्रों में नहीं चरित्र में होनी चाहिए
एक बार स्वामी जी भगवा वस्त्र और पगड़ी पहनकर विदेश गए थे. उस दौरान लोगों ने कहा कि आपका बाकी का सामान कहां है. तो स्वामी ने उत्तर दिया-बस यही है. इस पर लोगों ने व्यंग किया. तब स्वामी जी ने बोला कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से अलग है. आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं और हमारी संस्कृति का चरित्र करता है.
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