‘मेरा शरीर तिब्बती है, लेकिन मैं भारत मां का बेटा हूं’. यह शब्द दलाई लामा द्वारा कहे गए प्रसिद्ध शब्दों में से एक है. यह बात भारत के साथ उनके गहरे और अच्छे संबंधों को दर्शाता है.
14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो 6 दशक से भारत में निवास कर रहे हैं. उनका जन्मदिन हर साल 6 जुलाई को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बती समुदाय द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. उनका जन्मदिन तिब्बती समुदाय के सबसे भव्य आयोजनों में से एक है. दलाई लामा अक्सर अपने जन्मदिन पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जहां वे लोगों को संबोधित करते हैं और अपनी शिक्षाएं साझा करते हैं. इस दिन कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है, जिनमें तिब्बती नृत्य, संगीत और नाटक शामिल हैं. दुनियाभर में दलाई लामा के प्रशंसक उनके जन्मदिन को बड़े उत्साह से मनाते हैं.
दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक गरुओं में से एक हैं. वे शांति, करुणा और अहिंसा के प्रतीक के रूप में दुनिया भर में जाने जाते हैं. उनका जन्मदिन दलाई लामा जयंती के रूप में मनाया जाता है, जब उनके योगदानों को लोग याद कर जश्न मनाते हैं.
दलाई लामा के जन्मदिन के अवसर पर आईए आपको बताते हैं उनके सफर और जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में…
‘दलाई लामा’ किसे कहते हैं
दलाई लामा तिब्बत के सबसे बड़े धार्मिक नेता होते हैं. दलाई का मतलब है सागर और लामा का अर्थ है गुरु, जो अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं.
दलाई लामा का जीवन
(प्रारंभिक जीवन- 13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म)
दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के एक छोटे से गांव तकत्सेर में हुआ. किसान परिवार में जन्मे एक छोटे से बच्चे को केवल 2 वर्ष की आयु में 13वें दलाई लामा, थुबटेन ग्यात्सो के पुनर्जन्म के रूप में मान्यता मिली. जो की एक महत्वपूर्ण घटना थी. उनके लंबे कान, तिल और अन्य पहचान के आधार पर उन्हें चुना गया. उनका नाम ल्हामो धोंडुप रखा गया.
इस मान्यता ने उन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित किया, और इसके साथ ही उनके जीवन में अभूतपूर्व बदलाव आने शुरू हो गए. तिब्बत के आध्यात्मिक नेता चुने जाने के समय उन्हें पता भी नहीं था कि आगे उनके सामने कौन-कौन सी चुनौतियां आएंगी. नन्हे तेनजिन ग्यात्सो को जल्द ही मठवासी जीवन की कठोरताओं और गहन आध्यात्मिक प्रशिक्षण के लिए तैयार किया जाने लगा, एक ऐसी राह जिस पर चलकर वे लाखों लोगों के मार्गदर्शक बनते.
दलाई लामा की शिक्षा
दलाई लामा ने महज 6 साल की उम्र में अपनी मठवासी शिक्षा शुरू की. उन्होंने बौद्ध दर्शन, तर्कशास्त्र, ललित कला, संस्कृत व्याकरण और चिकित्सा जैसे विषयों का अध्ययन किया.
15 साल की आयु में उन्हें तिब्बत के राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता की भूमिका निभाने का अवसर मिला.
23 साल की उम्र में, उन्होंने ल्हासा के जोखांग मंदिर में अपनी अंतिम परीक्षा पास की और बौद्ध दर्शन में उच्चतम डॉक्टरेट की उपाधि, ‘गेशे ल्हारम्पा’ प्राप्त की.
दलाई लामा का तिब्बत से पलायन
साल 1950 में, चीनी सेना ने तिब्बत पर चढ़ाई कर आक्रमण किया. लगभग 8 महीनों तक चीन धीरे-धीरे तिब्बत पर कब्जा करता रहा. इस घटना ने दलाई लामा और तिब्बती लोगों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया. चीनी सेना के आक्रमण ने तिब्बत की शांति को भंग कर दिया और क्षेत्र में राजनीतिक तनाव बहुत बढ़ गया.
आक्रमण के बाद, दलाई लामा ने तिब्बत और चीन के बीच शांति बनाए रखने के लिए चीनी सरकार के साथ बातचीत करने की कोशिश की. लेकिन 1959 में, राजधानी ल्हासा में चीनी शासन के खिलाफ एक विद्रोह को क्रूरतापूर्वक दबा दिए जाने के बाद, वे हजारों तिब्बतियों के साथ भारत में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए. अपने लोगों और संस्कृति को बचाने के लिए, उन्हें एक कठिन निर्णय लेना पड़ा.
इन घटनाओं के कारण, दलाई लामा को अपनी जान बचाने के लिए तिब्बत छोड़ना पड़ा. वे हजारों तिब्बती शरणार्थियों के साथ हिमालय के खतरनाक रास्तों से होते हुए भारत आए. भारत ने दलाई लामा और उनके अनुयायियों को शरण दी. दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं. यहीं से वे तिब्बत की निर्वासित सरकार चलाते हैं और तिब्बती समुदाय का नेतृत्व करते हैं. उन्होंने तिब्बती स्वतंत्रता के लिए शांतिपूर्ण ढंग से आवाज उठाई है और दुनिया भर में बौद्ध धर्म और शांति के संदेश का प्रचार किया है.
14वें दलाई लामा के बारे में कुछ रोचक बातें
1. निर्वासन में, दलाई लामा ने तिब्बती लोगों और उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए अथक रूप से काम किया है. उन्होंने तिब्बती स्वायत्तता के लिए शांतिपूर्ण ढंग से आवाज उठाई है और दुनिया भर में बौद्ध धर्म और शांति के संदेश का प्रचार किया है.
2. दलाई लामा का मानना है कि करुणा सभी मानवीय संबंधों का आधार है. हमें सभी प्राणियों के प्रति दयालु होना चाहिए और उनकी पीड़ा को कम करने के लिए काम करना चाहिए.
3. वे शांति के प्रबल समर्थक हैं और उनका मानना है कि हिंसा कभी भी समस्याओं का समाधान नहीं है. वे बातचीत और आपसी समझ के माध्यम से संघर्षों को हल करने की वकालत करते हैं.
4. वे अहिंसा को एक जीवन शैली के रूप में देखते हैं और मानते हैं कि यह सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने का सबसे प्रभावी तरीका है.
5. दलाई लामा बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को बढ़ावा देते हैं, जिसमें चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग और शून्यता का दर्शन शामिल है.
6. वे विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव और सम्मान को बढ़ावा देते हैं. उनका मानना है कि सभी धर्मों का एक ही मूल संदेश है – प्रेम, करुणा और सच्चाई.
7. 14वें दलाई लामा अपने सभी पूर्ववर्तियों में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले और सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले हैं.
8. 14वें दलाई लामा को मेडिटेशन और गार्डनिंग के अलावा घड़ियों की मरम्मत करने का शौक भी है.
दलाई लामा न केवल तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि वे पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा हैं. उनकी शिक्षाएं और जीवन हमें करुणा, शांति और अहिंसा के मूल्यों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. दलाई लामा जयंती हमें उनके संदेश को याद करने और उसे अपने जीवन में शामिल करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है.
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