काठमांडू : नेपाली नागरिकों को नकली भूटानी शरणार्थी बनाकर अमेरिका भेजे जाने के प्रकरण में पिछले 6 महीने से न्यायिक हिरासत में रहे देश के दो पूर्व उपप्रधानमंत्रियों एवं गृहमंत्री को उच्च अदालत ने भी जमानत देने से इनकार कर दिया है. इनके साथ ही गृहमंत्री के सलाहकार, तत्कालीन गृह सचिव की जमानत याचिका भी नामंजूर हो गई है.
पाटन उच्च अदालत ने इस मामले में पकड़े गए सभी हाई-प्रोफाइल लोगों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार की देर शाम को इनकी जमानत याचिका खारिज कर दी. जिन लोगों की जमानत याचिका खारिज की गई है, उनमें पूर्व उप प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री बालकृष्ण खांड, पूर्व उप प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री टोप बहादुर रायमांझी, तत्कालीन गृहमंत्री राम बहादुर थापा के प्रमुख सलाहकार इन्द्रजीत राई, तत्कालीन गृह सचिव तथा वर्तमान में उपराष्ट्रपति कार्यालय के सचिव टेक नारायण पाण्डे सहित 10 लोग शामिल हैं.
इसी मामले में बालकृष्ण खांड को लेकर दो जजों की बेंच में जमानत देने को लेकर विवाद हो गया है. एक जज ने अपने फैसले में खांड को 30 लाख रुपये के मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का फैसला लिखा लेकिन उसी फैसले के नीचे दूसरे जज ने इस फैसले पर अपना नोट ऑफ डिसेंट लिखते हुए कहा कि जब इसी मामले में एक पूर्व गृहमंत्री की जमानत याचिका खारिज की जा रही है तो दूसरे पूर्व गृहमंत्री को कैसे जमानत दी जा सकती है? दूसरे जज की आपत्ति के बाद इस मामले में तीसरे जज को अपना मत रखने की राय दी गई है.
नेपाल में रहने वाले भूटानी शरणार्थियों को अमेरिका ने अपने यहां बसाने का फैसला किया था. इसी की आड़ में करीब सात सौ नेपाली नागरिकों को नकली भूटानी शरणार्थी बनाकर अमेरिका भेजने के लिए नीतिगत रूप से हुए भ्रष्टाचार के एक मामले में कई हाई प्रोफाइल लोगों को गिरफ्तार किया गया था. नेपाली नागरिकों को नकली भूटानी शरणार्थी बनाकर अमेरिका भेजने के लिए प्रति व्यक्ति 50 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक की वसूली करने के बाद पूरा का पूरा सरकारी तंत्र इसमें संलग्न हो गया था.
सबसे पहले इस मामले ने नेपाल की कैबिनेट ने गृह मंत्रालय के प्रस्ताव पर एक कमेटी बनाई. उसने नेपाली नागरिकों को नकली भूटानी शरणार्थी बनाकर पेश किया. फिर उस सूची को अमेरिका भेजा गया ताकि इन सभी को अमेरिकी सरकार अपने यहां की नागरिकता प्रदान कर उनके रहने का प्रबन्ध करे. हालांकि उससे पहले जितने भी भूटानी शरणार्थी थे, उनमें से अधिकांश को अमेरिका भेजा जा चुका था. नेपाल की तरफ से सात सौ अतरिक्त लोगों की सूची देने के बाद अमेरिका को संदेह हुआ, जिससे इस पूरे प्रकरण का खुलासा हुआ था.
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