Sunday, July 6, 2025
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer
Ritam Digital Hindi
Advertisement Banner
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Legal
    • Business
    • History
    • Viral Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
No Result
View All Result
Ritam Digital Hindi
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Legal
    • Business
    • History
    • Viral Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
No Result
View All Result
Ritam Digital Hindi
No Result
View All Result
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
Home Opinion

राम हमारे : हरि अनंत हरि कथा अनंता..!

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन चरित्र से राष्ट्र को उसके आदर्श सौंपे हैं। बाल्यकाल से लेकर जीवन के सम्पूर्ण क्रम में प्रभु श्री राम का चरित मनुष्यत्व से देवत्व की साधना का मार्ग प्रशस्त करता है। और उनका मार्ग एकदम सुगम - सहज- सरल तथा मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा का अमृत कुम्भ है।

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल by कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
Dec 7, 2023, 11:48 am IST
FacebookTwitterWhatsAppTelegram

हमारी सनातनी परम्परा-संस्कृति श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की जननी है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन चरित्र से राष्ट्र को उसके आदर्श सौंपे हैं। बाल्यकाल से लेकर जीवन के सम्पूर्ण क्रम में प्रभु श्री राम का चरित मनुष्यत्व से देवत्व की साधना का मार्ग प्रशस्त करता है। और उनका मार्ग एकदम सुगम – सहज- सरल तथा मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा का अमृत कुम्भ है। इसी अमृत कुम्भ में ही सम्पूर्ण सृष्टि के कुशल सञ्चालन- शान्ति- समन्वय- साहचर्य की गर्भनाल गड़ी हुई है। दशरथ पुत्र कौशल्या नन्दन बालक राम का बाल्यकाल वर्तमान परिदृश्य के लिए सर्वाधिक प्रेरणादायी है। प्रकृति के पञ्चभूत -पञ्चतत्वों यथा-भूमि, जल,आकाश, अग्नि वायु से लेकर माता -पिता , गुरुजनों, सम्पूर्ण समाज के प्रति जिस आदर एवं श्रद्धा के मानकों को स्थापित किया है, वह अनुकरणीय है। विद्या अध्ययन के समय गुरुभक्ति – गुरु आज्ञा एवं आश्रम के नियमों का पालन करते हुए उनकी अतिशय विनम्रता, और अनन्य समर्पण से भरा हुआ भक्ति भाव ज्ञान प्राप्त करने का दिग्दर्शन कराता है।

अपने प्राणों से प्रिय राम-लक्ष्मण को जब महाराज दशरथ महर्षि विश्वामित्र को राक्षसों के संहार के लिए सौंप देते हैं। तब पिता का ह्रदय अश्रुओं से भर आता है, किन्तु अपने द्वन्द्वों से जीतकर महाराज दशरथ ऋषि रक्षा – धर्म रक्षा के लिए राम लक्ष्मण को भेज देते हैं। और यहीं से श्री राम के मर्यादा पुरुषोत्तम और राक्षसों के संहार, सहस्त्रों वर्षों से प्रतीक्षारत भक्तों के उद्धार का क्रम चल पड़ता है। अहल्या उद्धार से लेकर वन में तपस्यारत ऋषियों के यज्ञादि कर्मों के विघ्नकर्ता राक्षसों का संहार किया। धर्म के लिए भयमुक्त वातावरण किया। फिर जनकपुरी में शिव धनुष भंग कर माता सीता का पाणिग्रहण किया। जहाँ भगवान परशुराम के प्रचण्ड क्रोध को सौम्य मुस्कान के साथ सहन करते रहे। लक्ष्मण के क्रोधित होने पर उन्हें शान्त करवाया। लेकिन श्री राम अपनी धर्म मर्यादा से क्षणिक भी नहीं डिगे। अन्ततोगत्वा भगवान परशुराम के समक्ष प्रभु ने अपना विष्णु स्वरूप का प्रकटीकरण किया। विष्णु के द्वय अवतारों ने किसी के काल क्रम का अतिक्रमण नहीं किया। श्रीराम और परशुराम ने एक दूसरे को प्रणाम किया तत्पश्चात अपने काल का भान कर परशुराम अपनी तपस्या में लीन हो गए।

राज्याभिषेक के समय माता कैकेयी ने राम को वनवास और भरत को राजा बनाने का हठ किया। राजा दशरथ व्याकुल हो उठे – सम्पूर्ण प्रजा कैकेयी के हठ के विरोध में उतर आई। लेकिन जब राम भगवान को भान हुआ तब उन्होंने मातृ आज्ञा – पितृआज्ञा को स्वीकार करते हुए वनवास के लिए सहर्ष तैयार हो गए। राम चाहते तो अस्वीकार कर सकते थे – लेकिन उन्होंने पितृ वचन को सत्य सिद्ध करने के लिए, मातृ-पितृ आज्ञा में धर्माज्ञा का दर्शन कर कर्मपथ पर चले गए। किन्तु एक भी ऐसा प्रसंग नहीं देखने को मिलता है – जब लोकरक्षक श्रीराम ने मूल्यों को क्षण के सहस्त्रांश भाग में भी विचलित या विस्मृत हुए हों। उन्होंने न राज्य का मोह किया – न वैभव का। और न ही स्वार्थ के वशीभूत होकर किसी को भी कुछ कहा हो। उन्हें जो धर्मादेश मिले – वे सत्यनिष्ठ होकर उनका सम्यक आचार निर्वहन करते चले गए‌।

राम लक्ष्मण के वनगमन के कारण महाराज दशरथ परलोक सिधार गए।‌ माता कैकेयी को अपनी महान गलती का भान हुआ। भरत ने राजसिंहासन अस्वीकार कर दिया। चित्रकूट में राम से भेंट करने-उन्हें वापस बुलाने के लिए सभी ने अनेकानेक यत्न-प्रयत्न किए। किन्तु राम ने पितृवचन को धर्मवचन मानकर सन्यासी-वनवासी का जीवन बिताना स्वीकार कर लिया। भरत ने नन्दीग्राम में कुटिया बनाकर-सिंहासन में श्री राम की चरण पादुका रखकर राज्य का सञ्चालन करना प्रारम्भ कर दिया।

राम ने वनवास काल में समस्त वनवासियों, वंचितों, उपेक्षितों को अपना सहयोगी-मित्र बनाया और धर्माचरण में रत हो गए। निषाद राज गुह, माता शबरी, केवट सबको अपने गले से लगाया। माता शबरी के भक्तिमय जूठे बेरों को चख चख कर भक्तवत्सलता का अनुपमेय उदाहरण प्रस्तुत किया। शूर्पणखा के नाक-कान काटने तदुपरान्त खर- दूषण वध प्रसंग के पश्चात, माता सीता का रावण ने मारीचि के स्वर्णमृगजाल के पश्चात मायावी रुप धरकर अपहरण कर लिया। माता सीता की खोज में व्याकुल राम का शोक क्रन्दन सम्पूर्ण सृष्टि का शोकालाप था‌।

तत्पश्चात हनुमान सुग्रीव भेंट और बालीवध के बाद किष्किंधा में सुग्रीव का शासन स्थापित हो जाता है। बाली प्राण त्यागते- त्यागते अंगद को श्री राम को अपने संरक्षण में सौंप देते हैं। इसके बाद माता सीता की खोज प्रारम्भ होती है‌ । विभिन्न दिशाओं में खोजी दल रवाना होते हैं। जाम्बवान द्वारा हनुमान जी की अतुलनीय शक्ति का स्मरण कराने के बाद हनुमान लंका में माता की खोज पूरी करते हैं। रावण के मिथ्यादम्भ का मानमर्दन करते हुए हनुमानजी अतिचारी रावण को रामशक्ति का सन्देश देते हैं। अन्ततोगत्वा समुद्र में पुल बाँधने का क्रम प्रारम्भ होता है। अनुनय-विनय प्रार्थना के पश्चात भी जब समुद्र उन्हें पथ नहीं प्रदान करता-तब श्री राम प्रथम बार कुपित हो उठते हैं‌। बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसका अद्भुत वर्णन करते हुए लिखा है –

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।

श्रीराम के इस रौद्र रूप से समुद्र घबरा जाता है। राम की प्रत्यञ्चा समुद्र को सुखाने के लिए तन जाती है।‌अपना और जलचरों के सम्भावित संहार से व्याकुल समुद्र त्राहिमाम – त्राहिमाम करते हुए शरण में आ जाता है‌।‌ शरणागत वत्सल श्री राम ने समुद्र को क्षमा कर दिया। समुद्र ने ऋषि वरदानी-नल-नील के शिल्प विधान की सूचना दी। और अपने उत्तर दिशा में निवासरत राक्षसों के संहार के लिए धनुष में चढ़े बाण को छोड़ने का अनुरोध किया। राम धर्मरक्षक- क्षमाशील हैं। उन्होंने समुद्र को क्षमादान दिया। नल- नील सहित समुची वानर सेना सेतु निर्माण में लग गई‌। राम की वानरी सेना समुद्र पारकर लंका पहुंच गई। अंगद रामदूत बनकर रावण के पास जाते हैं। जहाँ वे रावण को – प्रभु श्री राम से क्षमा याचना और ससम्मान माता जानकी को वापस भेजने की बातें कहते हैं। रावण नहीं मानता है -अंगद भी रावण के मिथ्यादर्प को चूर- चूर कर वापस लौट आते हैं।

अन्ततोगत्वा राम- रावण युद्ध सुनिश्चित हो जाता है। विभीषण-रावण को समझाते हैं लेकिन रावण का सम्पूर्ण कुल वंश सहित विनाश समीप था। इसलिए रावण अपने को त्रैलोक्य विजेता व श्री राम को साधारण मनुष्य मानकर विभीषण को राज्य से निष्कासित कर देता है। विभीषण राम की शरण में आ जाते हैं। श्रीरामचरितमानस – वाल्मीकि रामायण सहित अन्य रामायण ग्रन्थों में राम- रावण युद्ध के विविध प्रसङ्गों का विस्तार से चित्रण- दृश्यांकन है। युद्ध अपने ढँग से प्रारम्भ हो जाता है। रावण की अपार सेना – राक्षसों के समूह से राम की वानरी सेना युद्ध मैदान में आ डटी थी‌। राक्षसों का संहार जारी था। नागपाश व लक्ष्मण मूर्च्छा के प्रसंग श्री राम को अत्यधिक विचलित कर देते हैं।

किन्तु गरुड़ द्वारा नागपाश काटने और विभीषण की सलाह के पश्चात रावण के राजवैद्य सुषेण तक हनुमान पहुंचते हैं।‌‌ सञ्जीवनी बूटी से लक्ष्मण का औषधोपचार होता है – लक्ष्मण में चेतना आ जाती है। राम का आकुल व्याकुल ह्दय हर्षित हो उठता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आश्विन शुक्ल तृतीया से लेकर दशमी तिथि तक कुल आठ दिनों तक चला था। कुछ मान्यताओं में राम रावण युद्ध की अवधि चौरासी दिनों तक मानी गई है। मान्यताएं ऐसी भी हैं कि इन दिनों में नौ दिनों तक श्री राम भगवान ने ‘शक्ति ‘ की उपासना भी की थी। और माँ ने प्रसन्न होकर अभय – विजय वरदान दिया था। राम-रावण युद्ध के भीषण संग्राम में एक-एक कर रावण के समस्त पुत्रों सहित कुम्भकर्ण का वध हो चुका था‌ ।

राम- रावण युद्ध में रावण का संहार हो नहीं पा रहा था। राम के बाण प्रहार से उसका एक सिर कटकर गिरता और फिर जुड़ जाता। रावण अपने दशशीशों से अट्टहास करता जा रहा था। राम सहित समूची सेना विस्मित थी-रावण वध का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। तत्पश्चात विभीषण ने भगवान राम को रावण की नाभि में छिपे अमृत को नष्ट करने के लिए आग्नेयास्त्र चलाने की सलाह दी। राम ने आग्नेयास्त्र का संधान किया। और उसके बाद प्रभु श्री राम ने ब्रम्हास्त्र से रावण का अंत कर दिया। यह तिथि विजयादशमी की थी। राम रावण युद्ध असत्य पर सत्य की जीत, अधर्म पर धर्म की जीत, अन्याय पर न्याय की , अनीति पर नीति की जीत, दुष्टता पर शिष्टता की जीत के रुप में लोकधर्म के रुप में व्याप्त हो गई।

रावण भले ही ऋषि पुलस्त्य का वंशज रहा हो-तपस्या से शक्ति अर्जित की रही हो। ज्ञानी रहा हो। लेकिन उसने शक्ति-साधना-ज्ञान का दुरुपयोग कर उसे दुराचारों एवं अनचारों के लिए प्रयुक्त किया। दुष्टता में मदान्ध होकर दानवता के अक्षम्य अपराध किए। लोक के लिए वह अक्षम्य अपराधी था‌ । उसने प्रकृति के मूल स्वरूप को जीतने का प्रयत्न करने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया। और उसने ऐसे ऐसे जघन्य पाप किए – अधर्म उसका स्वभाव बन गया ; और इन्हीं सबकी शृंखला ने-नियति ने उसका अंत सुनिश्चित कर दिया। साथ ही ध्यातव्य यह भी है कि अधर्म का साथ देने वाला कोई भी शेष नहीं बचा। जबकि धर्म की शरण लेने वाला रावण के भाई-भक्त विभीषण लंकाधिपति के रुप में नीति धर्म शासन के भागी हुए।

अतएव यह दृष्टिगत रखना होगा कि शील- सत्य- संयम एवं धर्मानुसार आचरण की ही दीर्घायु होती है। पाप की लौ एक सीमित समय तक भले दिखेगी , लेकिन एक दिन उसका बुझ जाना तय है। चाहे पापी कितना भी शक्तिशाली हो-उसके पाप का दण्ड ईश्वरीय विधान और नियति तय ही कर देते हैं। विजयादशमी का पर्व इस बात का द्योतक है कि -सत्य,न्याय, धर्म के लिए शक्ति की उपासना एवं अतुलित सामर्थ्यवान- पौरूषवान बनना चाहिए । ताकि दुष्टों का समूलनाश करके सुख,समृध्दि, ऐश्वर्य की प्राप्ति के साथ लोकमङ्गल के कलश एवं अविरल चेतना की स्थापना की जा सके। विजयादशमी का पर्व इस बात का भी प्रतीक है कि – जब सद्-मार्ग – धर्मपथ पर चला जाता है – तब सृष्टि की समूची शक्तियाँ साथ देती हैं। और अधर्म का विनाश कर धर्म संस्थापना का पथ प्रशस्त करती हैं।

ज्ञान- विद्या, शक्ति – साधना, पराक्रम- बल , ऐश्वर्य ; इन सबका धर्म के लिए प्रयोग ही हितकारी होता है‌। और इसकी अर्हता- लोककल्याण एवं धर्मानुसार आचरण हैं। अन्यथा रावण जैसा हश्र होना सुनिश्चित हो जाता है। यह भी सदैव स्मरण में रखना चाहिए कि : अस्त्र – शस्त्र किसी निर्बल को सताने के लिए नहीं बल्कि धर्म रक्षा एवं अन्यायियों का मर्दन करने लिए सनातनी वंशजों को अनिवार्यतः रखने चाहिए। शक्ति -शास्त्र और शस्त्र में समन्वय स्थापित कर इन्हें लोकल्याण के लिए प्रयुक्त करना हमारा प्रथम कर्त्तव्य एवं जन्मजात धर्म है। रावण समस्त बुराइयों का प्रतीक है और यदि वह रावण कहीं हमारे अन्दर या आस-पास वातावरण में दृष्टिगत होता है।

तो उसके दहन के लिए सबको संकल्पित होना ही चाहिए। भगवान राम का चरित मर्यादा एवं शक्ति संतुलन के साथ लोकमङ्गल की वह अनमोल – ईश्वरीय निधि है जो भारत वर्ष की भूमि में ईश्वरीय चेतना – लीला के रूप में अवतरित हुई। प्रभु श्री राम का सम्पूर्ण वाङ्मय किसी चमत्कार के रुप में नहीं दिखता बल्कि कर्म- साधना पुरुषार्थ के समन्वय के साथ धर्मराज्य के स्थापना का अद्भुत – अनुपम – अप्रतिम दर्शन है ; जो सर्वत्र व्याप्त है। उनके अनुकरण- अनुशीलन में ही इस जगत की भलाई है। और रामराज्य का अभिप्राय ही –

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।

 

Tags: RitamNewsRitam NewsSanatanRamLifeofLord_Ram
ShareTweetSendShare

संबंधितसमाचार

Buddhh Purnima 2025
Opinion

Buddha Purnima 2025: महात्मा बुद्ध दया- करूणा और मानवता के पक्षधर

Operation Sindoor
Opinion

Opinion: ऑपरेशन सिंदूर- बदला हुआ भारत, बदला लेना जानता है

ऑपरेशन सिंदूर से आतंक पर प्रहार
Opinion

Opinion: ऑपरेशन सिंदूर के बाद क्या?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला
Opinion

Opinion: पहलगाम में हिन्‍दुओं की पहचान कर मार दी गईं गोलियां, कौन-सा भारत बना रहे हम

कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर संसद में हंगामा
Opinion

Opinion: मुस्लिम आरक्षण का खेल खेलती कांग्रेस

कमेंट

The comments posted here/below/in the given space are not on behalf of Ritam Digital Media Foundation. The person posting the comment will be in sole ownership of its responsibility. According to the central government's IT rules, obscene or offensive statement made against a person, religion, community or nation is a punishable offense, and legal action would be taken against people who indulge in such activities.

ताज़ा समाचार

Dalai Lama Birthday

दलाई लामा जन्मदिन: तिब्बत की पहचान और अस्तित्व के लिए चीन के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक

Shyama Prasad Mukherjee Birthday

देश की अखंडता का सपना, अनुच्छेद-370 का विरोध… जानिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जीवन से जुड़ी बड़ी उपलब्धियां

राष्ट्र ध्वज के निर्माता पिंगली वेंकैया की पुण्यतिथि

Pingali Venkaiah Death Anniversary: 30 देशों के झंडे की स्टडी के बाद तैयार हुआ तिरंगा, जानिए पिंगली वेंकैया का योगदान

Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर विशेष… हिंदू संस्कृति को पूरे विश्व में दिलाया था सम्मान

कजाकिस्तान सरकार ने बुर्के पर लगाया बेैन

कजाकिस्तान ने बुर्के हिजाब पर लगाया बैन, इन देशों में भी है चेहरा ढकने पर रोक, 10 पॉइंट्स में समझें

Old Delhi Railway Stations Name Change Proposal

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम महाराजा अग्रसेन स्टेशन करने की मांग, जानें इससे जुड़े 10 महत्वपूर्ण तथ्य

Courts Ban Namaz

सार्वजनिक जगहों पर नमाज पर कोर्ट की रोक: 7 अहम फैसले (2018–2025)

ग्रेटर नोएडा

15 प्वाइंट्स में समझे ग्रेटर गाजियाबाद की संकल्पना और जिले का महत्व

Doctors Day

National Doctor’s Day: डॉ. बिधान चंद्र रॉय: एक महान चिकित्सक, दूरदर्शी नेता और राष्ट्र निर्माता

एक राष्ट्र, एक कर- व्यापारियों के लिए कितना आसान हुआ कारोबार? जानें GST की  पूरी कहानी

एक राष्ट्र, एक कर- व्यापारियों के लिए कितना आसान हुआ कारोबार? जानें GST की  पूरी कहानी

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer

© Ritam Digital Media Foundation.

No Result
View All Result
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
  • Politics
  • Opinion
  • Business
  • Entertainment
  • Lifestyle
  • Sports
  • About & Policies
    • About Us
    • Contact Us
    • Privacy Policy
    • Terms & Conditions
    • Disclaimer

© Ritam Digital Media Foundation.