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जब भारत के वैश्विक अंतरिक्ष क्लब में प्रवेश की हुई घोषणा, जानिए महान वैज्ञानिक सतीश धवन की उपलब्धियां

देश के वैज्ञानिक कारनामों की जब कभी बात आती है तो सतीश धवन स्पेस सेंटर का नाम अक्सर आता है. सुप्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और एयरोस्पेश इंजीनियर प्रो. सतीश धवन के नाम पर यह संस्थान है, जिन्हें भारत में प्रायोगिक द्रव गतिकी अनुसंधान का जनक माना जाता है.

Editor Ritam Hindi by Editor Ritam Hindi
Jan 3, 2024, 09:15 am IST
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देश के वैज्ञानिक कारनामों की जब कभी बात आती है तो सतीश धवन स्पेस सेंटर का नाम अक्सर आता है. सुप्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और एयरोस्पेश इंजीनियर प्रो. सतीश धवन के नाम पर यह संस्थान है, जिन्हें भारत में प्रायोगिक द्रव गतिकी अनुसंधान का जनक माना जाता है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के तीसरे अध्यक्ष के रूप में उनकी बेमिसाल सेवाओं को देखते हुए 3 जनवरी 2002 को उनके निधन के बाद आंध्र प्रदेश के नल्लोर जिला स्थित उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का नाम बदल कर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया. उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का सफल और स्वदेशी करण की दिशा में उल्लेखनीय नेतृत्व किया. इसरो के कार्यकाल के दौरान ही दो उपग्रह- आर्यभट्ट (1975) और भास्कर (1979) को पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में (सोवियत रॉकेट द्वारा) स्थापित किया गया. पहले स्वदेशी रूप से निर्मित एसएलवी (उपग्रह प्रक्षेपण वाहन) ने भारत के वैश्विक अंतरिक्ष क्लब में प्रवेश की घोषणा की.

प्रोफेसर सतीश धवन का जन्म 25 सितंबर 1920 को श्रीनगर में हुआ था. सतीश धवन के पिता देवीलाल आजादी से पहले पंजाब प्रांत में वकील थे जो बाद में लाहौर हाइकोर्ट में जज बने. सतीश धवन बचपन से ही पढ़ाई में बढ़िया थे. 1934 में उन्होंने मैट्रिक्युलेशन पास करने के बाद लुधियाना से विज्ञान में इंटर की परीक्षा पास की. लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से उन्होंने गणित और भौतिकी में स्नातक की परीक्षा पास की, फिर अंग्रेजी साहित्य में एमए भी किया. उन्होंने लाहौर के ही मैक्लैगन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर यूनिवर्सिटी में टॉप किया और प्रांत के पहले गोल्ड मेडलिस्ट बने. 1945 में छात्रवृत्ति पाकर आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए और मिनेपोलिस के मिनोसेटा विश्वविद्यालय से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री हासिल की.

1951 में भारत लौटने के बाद प्रो सतीश धवन बेंगलुरू के भारतीय विज्ञान संस्थान में सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर के रूप में काम किया. 1955 में वे एरोनॉटिकल विभाग के प्रमुख बन गए. शोध और शिक्षण के दौरान उन्होंने अपनी लैब के लिए खुद ही उपकरण तैयार किए. उन्हें भारत की पहली सुपरसॉनिक विंड टनल के विकास के लिए जाना जाता है.

1962 में प्रोफेसर धवन भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रमुख बने और इस पद पहुंचने वाले वे सबसे कम उम्र के वैज्ञानिक थे. उन्होंने करीब 20 साल तक इस संस्थान का निर्देशन किया. 1971 में विक्रम साराभाई की असमय मृत्यु के बाद उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई और उन्होंने इसरो के पद के साथ भारतीय विज्ञान संस्थान को भी संभाला. उनके कार्यकाल में इसरो ने सबसे ज्यादा तरक्की की. धवन का 3 जनवरी 2002 को बैंगलुरू में निधन हो गया.

साभार – हिन्दुस्थान समाचार

Tags: Satish DhawanSatish Dhawan Death AnniversarySatish Dhawan Space Centre
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