Veer Savarkar Death Anniversary: महाराष्ट्र के नासिक जिले में 28 मई 1883 को पैदा हुआ एक साधारण बच्चा आज पूरे देश में महान क्रांतिकारी, राजनीतिज्ञ, लेखक, वकील और अन्य कई महान कार्यों के चलते प्रसिद्ध है. यह और कोई नहीं बल्कि विनायक दामोदार सावरकर थे, जिन्हें लोग आज भी वीर सावरकर के नाम से जानते हैं. आइए जानते हैं ऐसे महान क्रांतिकारी के जीवन से जुड़े हर उस पहलू के बारे में जिन्होंने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में अतुलनीय योगदान दिया…
उथल-पुथल भरा रहा बचपन
वीर सावरकर का परिवार बहुत साधारण सा था. उनके परिवार में उनके पिता दामोदार पंत सावरकर और मां राधाबाई और एक बड़े भाई गणेश रहते थे. जब विनायक केवल 8 वर्ष के थे तो उनकी माता का निधन हो गया था. जिसके बाद उन्हें गहरा सदमा लगा. इसके 7 साल बाद उनके पिता की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद मानो उनके जीवन में भूचाल आ गया. यहीं से शुरू हुआ उनके जीवन का कड़ा संघर्ष .
छोटी उम्र से ही कविताएं लिखने का शौक
जब विनायक ने अपनी मैट्रिक कक्षा की पास की थी. उसी बीच यमुनाबाई से उनका विवाह हो गया था. माता-पिता के न होने से उन्हें काफी आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन विनायक ने इसे कभी भी अपनी पढ़ाई पर हावी नहीं होने दिया था. पुणे स्थित कॉलेज से बीए पास कर वे हायर स्टीडज के लिए लंदन गए. इसी बीच विनायक का साहित्य के प्रति भी रुझान बढ़ने लगा, उन्हें कविताएं पढ़ना और लिखना बेहद पसंद था. उनके कई सारे लेख पत्रिकाओं में भी छपे थे, जिसे लोगों के द्वारा खूब पसंद किया गया था.
1904 में अभिनव संगठन की शुरुआत की
कविताओं के अलावा विनायक को राजनीति में भी दिलचस्पी थी. साल 1904 में उन्होंने खुद एक गठन बनाया , जिसका नाम उन्होंने ‘अभिनव संगठन’ रखा था. इस गठन के जरिए वह युवाओं को धर्मनिरपेक्षता, स्वेदशी और राष्ट्रीय एकता जैसे जरूरी विषयों के बारे में जागरूक करते थे. इन सबके अलावा उनका भारत जैसे महान देश को आजादी दिलाने में एक बड़ा योगदान था. जिसके चलते उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था.
साल 1907 में वीर सावरकर ने लंदन के इंडिया हाउस में प्रथम भारतीय स्वंतत्रता संग्राम की जयंती बनाई थी. उस समय उस हाऊस की देखभाल करने की जिम्मेदारी लाला हरदयाल के पास थी. इतना ही नहीं 1857 में हुए विद्रोह को आजादी की लड़ाई को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम घोषित करने वाले पहले इंसान वीर सावरकर ही थे. 1905 में हुए बंगाल-विभाजन का सावरकर ने काफी जोंरो शोरों से विरोध किया था. वीर सावरकर के लिए सन 1911 और 1948 काफी महत्वपूर्ण थे. इस दौरान उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गई.
काला पानी की सजा सुनाई वीर सावरकर को
बता दें 7 अप्रैल , 1911 में सावरकर को काला पानी की सजा सुनाई गई थी, जिसके उपरान्त 4 जुलाई , 1911 से उन्होंने 10 साल पोर्ट ब्लेयर सेलुलर जेल में बिताएं थे. परंतु अंग्रेजों ने उनकी याचिका पर काफी विचार-विमर्श करके 21 मई, 1921 को उन्हें जेल से रिहा भी कर दिया था. उसके बाद सावरकर ने ‘मेरा आजीवन कारावास’ नामक आत्मकथा में कई सारे पहलूओं पर खुलकर अपने विचार लोगों को बताएं.
कमेंट