यूरोप में राजनीति गरमाई हुई है. इसकी वजह हालही में हुए यूरोपीय संसदीय चुनाव है. दरअसल, यूरोपीय संघ के इस संसदीय चुनाव में दक्षिणपंथी मानी जाने वाली नेशनल रैली यानी रैसेम्बलमेंट नेशनल, आरएन ने राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों की रेनेसां पार्टी को 31.5 प्रतिशत वोटों के अंतर से हरा दिया.
आपको बता दें कि इन चुनावों में फ्रांस की दक्षिणपंथी पार्टी का जीतना वामपंशियों को बिलकुल पसंद नहीं आया है. ऐसे में इन्होंने राजधानी पेरिस समेत अन्य कई शहरों में उपद्रव मचाया हुआ है. इनमें मुस्लिम झुकाव वाले सेकुलरों की अच्छी-खासी संख्या है.
पेरिस चुनाव के नतीजों के सामने आने के बाद वामपंथियों की भीड़ सड़कों पर उमड़ पड़ी. वामपंथियों ने जमकर प्रदर्शन किया और लोकतंत्र की दुहाई दी. इन वामपंथी प्रदर्शनकारियों ने फ्रांस की संसद के बाहर इकट्ठे हो कर चुनाव में जीती नेशनल रैली के विरुद्ध नारेबाजी की. हैरानी तो तब हुई जब प्रदर्शनकारियों ने शोर-शराबे के बीच फिलिस्तीन समर्थन के नारे लगाने लगे. इस प्रदर्शन में वामपंथी मजदूर संघों के कार्यकर्ता भी शामिल थे.
इधर 9 जून को जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने अपने देश की संसद के निचले सदन को भंग किया और 30 जून को चुनाव कराने की औचक घोषणा की तो उसके पीछे की वजह यूरोपीय संसद के चुनावों में उनकी हार को बताया जा रहा है. वहां की दक्षिणपंथी पार्टी के ऐसे उभार ने उन्हें भी हैरान किया हुआ है. मैक्रों यूरोप समर्थक मध्यमार्गी माने जाते हैं.
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