26 जून 1975 का वो दिन जो आज भी लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन माना जाता है. इसी दिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनुशंसा पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के आर्टिकल 352 के तहत पूरे देश में आपातकाल लगा दिया था. आतरिंक सुरक्षा के नाम पर दिल्ली के शाही तंत्र ने देश पर अपना कब्जा करने की कोशिश की थी. आम आदमी के मौलिक अधिकारियों पर प्रतिबंध के साथ ही प्रेस पर सेंसरशिप लगाकर कुछ चंद लोगों ने लोकतंत्र की हत्या करने की नापाक हरकत की थी. इमरजेंसी के वक्त के समय को सोचकर भी आज लोगों के गला सुख जाता है. आपाताकाल के बाद सरकार ने संविधान में संशोधन कर कुछ ऐसे बदलाव किए जिससे भविष्य में कोई संविधान की शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सके.
अब इतना आसान नहीं आपातकाल लगाना
21 महीने के बाद 21 मार्च 1977 को आपातकाल को सरकार ने हटा लिया. उसके कुछ समय बाद देश में लोकसभा चुनाव हुए. कांग्रेस पार्टी आजादी के बाद पहली बार लोकसभा का चुनाव हार गई. इतना ही नहीं पूर्व पीएम इंदिरा गांधी खुद रायबरेली सीट से हार गई. फिर मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी. जनता पार्टी ने आपातकाल पर सख्त रुख अपनाते हुए 44वां संविधान संशोधन किया. जिसके तहत कुछ ऐसे बदलाव किए गए जिससे भविष्य में कोई संविधान की शक्तियों का दुरुपयोग न कर सके.
‘आंतरिक अशांति’ की जगह ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द
इस संशोधन के बाद अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति तब तक राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा नहीं कर सकते, जब तक संघ का मंत्रिमंडल लिखित रूप में ऐसा प्रस्ताव उन्हें नहीं भेज दे और आर्टिकल 352 में ‘आंतरिक अशांति’ की जगह ‘सशस्त्र विद्रोह’ लिख दिया गया.
इमरजेंसी से पहले संसद की मंजूरी जरूरी
वहीं राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को संसद के दोनों सदनों से एक महीने के अंदर अनुमोदन मिलना अनिवार्य है और एक बार अनुमोदन मिलने पर आपातकाल सिर्फ 6 महीने के लिए ही लागू रह सकता है. अगर 6 महीने के बाद इसकी अवधि को बढ़ाना हो तो फिर दोनों सदनों के अनुमोदन की जरूरत पड़ेगी. 44वें संविधान संशोधन के जरिए ‘मंत्रिमंडल’ शब्द को आर्टिकल 352 में जोड़ा गया. बाकी पूरे संविधान में ‘मंत्रिपरिषद’ ही है.
आर्टिकल 20 और 21 नहीं होंगे निलंबित
44वें संवैधानिक संशोधन, 1978 ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए सजा के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) को निलंबित नहीं किया जा सकता है.
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