नोबेल पुरस्कार से सम्मानित और ब्रिटेन में रहकर पाकिस्तानी महिलाओं के लिए आवाज बुलंद करने वाली मलाला यूसुभजई अक्सर अपने बयानों और को लेकर सुर्खियों में आ जाती हैं. हाल ही में उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार पर हमला बोलते हुए वहां की महिलाओं की बेकार स्थिति करने का आरोप लगाया है. उन्होंने वहां कि महिलाओं से तालिबानी सरकार की नीतियों को चुनौती देने की अपील की है.
मलाला ने कहा कि तालिबान में कुछ भी इस्लामिक नहीं है और वो लड़कियों को शिक्षा ग्रहण करने से रोकता है. बता दें कि मलाला पाकिस्तान के इस्लामाबाद में एक शिक्षा के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आई थीं. इस दौरान अपने वक्तव्य में मलाला ने आरोप लगाया कि तालिबान वहां लिंग के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों को कुचलने की कोशिश की जा रही हैं.
यूसुपजई ने इस दौरान कहा कि तालिबान धर्म और संस्कृति की आड़ में महिलाओं के अधिकारों को कुचलने की कोशिशे करता है. जबकि सच यह है कि यह हमारे मजहब के सिद्धांतों के पूरी तरह से खिलाफ है. उन्होंने साफ करते हुए कहा कि वर्तमान में तालिबान पूरी दुनिया का इकलोता शासन बन गया है जहां लड़कियों व बालिकाओं को छठी कक्षा के बाहर पढ़ने की स्वतंत्रता नहीं है, ऐसा करके तरीबन डेढ़ मिलियन लोगों को जानबूझकर शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है.
बता दें कि तालिबान ने साल 2021 से अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया है. वहां पर उसी समय से महिलाओं की जिंदगी काफी कठिन हो गई है, कई सारे तालिबानी नियम उन पर लगाए गए हैं. कई कारणों में से यह भी एक बड़ा करण है कि अब तक दुनिया के किसी भी देश ने अफगानिस्तान के तालिबान को मान्यता नहीं दी है.
खुद मलाला को भी तालिबान की गोली का निशाना बनाया गया था, साल 2012 में जब उनकी उम्र केवल 15 की थी तब आतंकियों ने उनके सिर में गोली मारी थी. इसके बाद मलाला को ब्रिटेन के अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां उनका इलाज चला.
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