तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज डीएमके के नेताओं द्वारा हिंदी भाषा और सनातन धर्म का अपमान जगजाहिर है. अब डीएमके नेताओं ने देव भाषा संस्कृत को निशाना बनाया है. दरअसल, डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने संसद में आरोप लगाया कि टैक्सपेयर्स का पैसा, उस भाषा पर बर्बाद कराया जा रहा है. जिसमें कोई बात नहीं करता. इतना ही नहीं मारन ने संस्कृत अनुवाद के औचित्य पर ही सवाल उठा दिया. उन्होंने कहा कि किसी और आधिकारिक राज्य भाषाओं की आपत्ति नहीं है, लेकिन संस्कृत का औचित्य उन्हें समझ नहीं आता है. दयानिधि मारन ने 2011 की जनगणना का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में संस्कृत केवल 73 हजार लोग ही बोलते हैं.
DMK MP Dayanidhi Maran: Why are you wasting taxpayers' money on translating debates into Sanskrit?
Speaker Om Birla responds 🔥: In which country are you living? Debates are translated in 22 languages but you have problem with Sanskrit, with Hindi. It will be translated pic.twitter.com/q3CFXORsWM
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) February 11, 2025
स्पीकर बिरला ने सुनाई खरी-खरी
डीएमके सांसद के सवाल पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने आपत्ति जताई और प्रश्न किया कि आप किस देश में रहते हैं. उन्होंने कहा कि संसद में कार्रवाई का 22 भाषाओं में अनवाद हो ता है.लेकिन आपको सिर्फ संस्कृत और हिंदी के साथ ही समस्या है. स्पीकर ने जोर देकर कहा कि संस्कृत, भारत की मूल भाषा रही ह.. उन्होंने कहा कि सभी 22 भाषाओं में अनुवाद होगा, हिन्दी और संस्कृत दोनों में होगा.
ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जिस संस्कृत में हमारे धर्मग्रंथ रामायण, महाभारत आदि लिखे गए. वेद-उपनिषद् सभी संस्कृत में ही है. भगवद् गीता जिसने दुनिया को जीना सिखाया. उसके श्लोक भी संस्कृत भाषा में ही है. दुनिया भर में संस्कृत के प्रति उत्सुकता है. उसी संस्कृत भाषा का गमारे ही देश में अपमान किया जा रहा है. बता दें डीएमके की नीति हमेशा से तमिलनाडु को भाषाई आधार पर उत्तर भारत से अलग करने की रही है. इसी वजह से डीएमके लीडर्स हिंदी और संस्कृत का विरोध करते हैं.
दो राज्यों की दूसरी आधिकारिक भाषा है संस्कृत
संसद में दयानिधि मारन ने कहा कि संस्कृत किसी भी राज्य की आधिकारिक भाषा है. उन्होंने बिना होम-वर्क के संसद में सिर्फ झूठ बोला. बता दें संस्कृत उत्तराखंड औऱ हिमाचल प्रदेश की दूसरी आधिकारिक भाषाएं है. 2010 में उत्तराखंड ने तो 2019 में हिमाचल को अपनी दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया है.
केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने दयानिधि मारन की टिप्पणी को अनुचित बताया. उन्होनें एक्स पर दयानिधि मारन का वही वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा कि विभाजनकारी राजनीति करना करदाताओं के धन की असली बर्बादी है. एक भाषा को बढ़ाने के लिए दूसरी भाषा को नष्ट करना जरूरी नहीं है.
उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय भाषाओं के बीच घृणा फैलाने और फर्जी विभाजन पैदा करने के इस कुत्सित प्रयास की उचित निंदा की है. डीएमके की राजनीति में हिंदू पहचान या कहें हिन्दू जड़ों वाले भारत और उसके तमाम प्रतीकों का अपमान ही मूल रह गया है.
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