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Opinion: आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण त्योहार है महाशिवरात्रि

हिंदू धर्म में सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि है. इस दिन सभी शिव मंदिरों में भीड़-भाड़ का माहौल रहता है. महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्त महादेव की कृपा पाने के लिए विधिवत पूजा-पाठ करते हैं.

रमेश सर्राफ धमोरा by रमेश सर्राफ धमोरा
Feb 25, 2025, 04:20 pm IST
Mahashivratri 2025

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हिंदू धर्म में सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि है. इस दिन सभी शिव मंदिरों में भीड़-भाड़ का माहौल रहता है. महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्त महादेव की कृपा पाने के लिए विधिवत पूजा-पाठ करते हैं. पंचांग के अनुसार शिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. महाशिवरात्रि भगवान शिव का त्योहार है. भारत के सभी प्रदेशों में महाशिव रात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. भारत के साथ नेपाल, मारिशस सहित दुनिया के कई अन्य देशों में भी महाशिवरात्रि मनाते हैं. हर साल फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिव रात्रि का व्रत किया जाता है. हिन्दू पुराणों के अनुसार इसी दिन सृष्टि के आरंभ में मध्यरात्रि में भगवान शिव ब्रह्मा से रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे. इसीलिए इस दिन को महाशिवरात्रि कहा जाता है.

योगिक परम्परा में इस दिन और रात को इतना महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि यह आध्यात्मिक साधक के लिए जबर्दस्त संभावनाएं प्रस्तुत करते हैं. आधुनिक विज्ञान कई चरणों से गुजरने के बाद आज उस बिंदु पर पहुंच गया है. जहां वह प्रमाणित करता है कि हर वह चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं. जिसे आप ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं. वह सिर्फ एक ही ऊर्जा है, जो लाखों रूपों में खुद को अभिव्यक्त करती है.

माना जाता है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं. महाशिवरात्रि का व्रत रखना सबसे आसान माना जाता है. इसलिये बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी इस दिन व्रत रखते हैं. महाशिवरात्रि के व्रत रखने वालों के लिये अन्न खाना मना होता है इसलिये उस दिन फलाहार किया जाता है. राजस्थान में व्रत के समय गाजर, बेर का सीजन होने से गांवों में लोगों द्वारा गाजर, बेर का फलाहार किया जाता है. लोग मन्दिरों में भगवान शिव की पूजा करते हैं व उन्हें आक, धतूरा चढ़ाते हैं. भगवान शिव को विशेष रूप से भांग का प्रसाद चढ़ाया जाता है.

पुराणों में कहा गया है कि एक समय शिव-पार्वती जी के साथ कैलाश पर्वत पर बैठे थे. उसी समय पार्वती जी ने प्रश्न किया कि इस तरह का कोई व्रत है जिसके करने से मनुष्य आपके धाम को प्राप्त कर सके ? तब उन्होंने यह कथा सुनाई थी कि प्रत्यना नामक देश में एक व्यक्ति रहता था, जो जीवों को बेचकर अपना भरण -पोषण करता था. उसने सेठ से धन उधार ले रखा था. समय पर कर्ज न चुकाने के कारण सेठ ने उसको शिवमठ में बन्द कर दिया.

संयोग से उस दिन फाल्गुन बदी चतुर्दशी थी. वहां रातभर कथा-पूजा होती रही जिसे उसने भी सुना. अगले दिन शीघ्र कर्ज चुकाने की शर्त पर उसे छोड़ा गया. उसने सोचा रात को नदी के किनारे बैठना चाहिये. वहां जरूर कोई न कोई जानवर पानी पीने आयेगा. अतः उसने पास के बील वृक्ष पर बैठने का स्थान बना लिया. उस बील के नीचे एक शिवलिंग था. जब वह पेड़ पर अपने छिपने का स्थान बना रहा था उस समय बील के पत्तों को तोड़कर फेंकता जाता था जो शिवलिंग पर ही गिरते थे. वह दो दिन का भूखा था. इस तरह से वह अनजाने में ही शिवरात्रि का व्रत कर ही चुका था. साथ ही शिवलिंग पर बेल-पत्र भी अपने आप चढ़ते गये.

एक पहर रात्रि बीतने पर एक गर्भवती हिरणी पानी पीने आई. उस व्याध ने तीर को धनुष पर चढ़ाया किन्तु हिरणी की कातर वाणी सुनकर उसे इस शर्त पर जाने दिया कि सुबह होने पर वह स्वयं आयेगी. दूसरे पहर में दूसरी हिरणी आई. उसे भी छोड़ दिया. तीसरे पहर भी एक हिरणी आई उसे भी उसने छोड़ दिया और सभी ने यही कहा कि सुबह होने पर मैं आपके पास आऊंगी. चौथे पहर एक हिरण आया. उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई कि वे तीनों हिरणियां मेरी स्त्री थी. वे सभी मुझसे मिलने को छटपटा रही थी. इस पर उसको भी छोड़ दिया तथा कुछ और भी बेल-पत्र नीचे गिराये. इससे उसका हृदय बिल्कुल पवित्र, निर्मल तथा कोमल हो गया.

प्रातः होने पर वह बेल-पत्र से नीचे उतरा. नीचे उतरने से और भी बेल पत्र शिवलिंग पर चढ़ गये. अतः शिवजी ने प्रसन्न होकर उसके हृदय को इतना कोमल बना दिया कि अपने पुराने पापों को याद करके वह पछताने लगा और जानवरों का वध करने से उसे घृणा हो गई. सुबह वे सभी हिरणियां और हिरण आये. उनके सत्य वचन पालन करने को देखकर उसका हृदय दुग्ध सा धवल हो गया और वह फूट-फूट कर रोने लगा.

शिवरात्रि के प्रसंग को हमारे वेद, पुराणों में बताया गया है कि जब समुद्र मन्थन हो रहा था उस समय समुद्र में चौदह रत्न प्राप्त हुए. उन रत्नों में हलाहल भी था. जिसकी गर्मी से सभी देव दानव त्रस्त होने लगे. तब भगवान शिव ने उसका पान किया. उन्होंने लोक कल्याण की भावना से अपने को उत्सर्ग कर दिया. इसलिए उनको महादेव कहा जाता है. जब हलाहल को उन्होंने अपने कंठ के पास रख लिया तो उसकी गर्मी से कंठ नीला हो गया. तभी से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहते हैं. शिव का अर्थ कल्याण होता है. जब संसार में पापियों की संख्या बढ़ जाती है तो शिव उनका संहार कर लोगों की रक्षा करते हैं. इसीलिए उन्हें शिव कहा जाता है.

योगियों और संन्यासियों के लिए यह वह दिन है जब शिव कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे. योगिक परम्परा में शिव को ईश्वर के रूप में नहीं पूजा जाता है. बल्कि उन्हें प्रथम गुरु, आदि गुरु माना जाता है. जो योग विज्ञान के जन्मदाता थे. कई सदियों तक ध्यान करने के बाद शिव एक दिन वह पूरी तरह स्थिर हो गए. उनके भीतर की सारी हलचल रुक गई और वह पूरी तरह स्थिर हो गए. वह दिन महाशिवरात्रि था. इसलिए संन्यासी महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात के रूप में देखते हैं.

महाशिवरात्रि का पर्व हमारे जीवन में ईश्वरीय शक्ति के महत्व को दिखलाता है. हमें भगवान शिव के द्वारा मानव जाति तथा सृष्टि के कल्याण के लिए विषपान जैसे असीम त्याग को प्रदर्शित करता है. यह दिन हमें इस बात की याद दिलाता है कि यदि हम अच्छे कर्म करेंगे और ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखेंगे तो ईश्वर भी हमारी रक्षा अवश्य केरेंगे. लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव हमारे निकट होते हैं और इस दिन पूजा अर्चना तथा रात्रि जागरण करने वालों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है. कई लोग इस दिन दान धर्म करते है तथा गरीबों को खाना खिलाकर भगवान शिवजी से अपनी सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं.

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है. इस रात धरती के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति ऐसी होती है कि इंसान के शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है. इस दिन प्रकृति इंसान को अपने आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है. गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोग महाशिवरात्रि को शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं. सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले लोग इस दिन को शिव की दुश्मनों पर विजय के रूप में देखते हैं.

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं.)

हिन्दुस्थान समाचार

Tags: MahashivratriOpinionHindu festival
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