नेपाल में इन दिनों ‘राजा आओ, देश बचाओ’ के नारे लग रहे हैं. वामपंथी सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों पर उबल रहा है. यहां हिन्दू राष्ट्र और राजशाही की मांग जोर पकड़ रही है. इससे नेपाल की मौजूदा सरकार में बेचैनी है और वामपंथी विचारधारा वाले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली इन प्रदर्शनों को अलोकतांत्रिक और व्यवस्था विरोधी बता रहे हैं. तो आईए जानते हैं कि नेपाल में हिन्दू राष्ट्र की मांग जोर क्यों पकड़ने लगी है?
नेपाल में पिछले करीब डेढ़ दशक से नेपाल में लोकतांत्रिक सरकार है. उससे पहले यहां राजशाही शासन था और हिन्दू राष्ट्र. सितंबर 2015 में नेपाल ने अपना नया संविधान लागू किया और इस संविधान में घोषणा की गई कि नेपाल अब हिंदू राष्ट्र नहीं रहेगा. तभी नेपाल संवैधानिक रूप से सेक्यूलर स्टेट बना.
नेपाल में ऐसी घोषणा तब हुई थी, जब भारत में हिंदू राष्ट्र की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार बन चुकी थी. 2006 में भी भाजपा के उस समय के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नेपाल को चेताया था कि उन्हें माओवादियों के दबाव में आकर हिंदू राष्ट्र की अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए.
बता दें कि नेपाल 1962 के संविधान के तहत हिंदू राष्ट्र बना था और इसे बनाने वाले किंग महेंद्र थे. नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद संवैधानिक व्यवस्था की नींव पड़ने के साथ ही नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के तौर पर स्थापित हुआ. इससे पहले राजशाही के दौरान साल 2008 तक नेपाल एक हिंदू राष्ट्र हुआ करता था. लेकिन अब नेपाल में लोगों का इस धर्मनिरपेक्ष सरकार से भरोसा उठता जा रहा है. जनता एक बार फिर से राजशाही और हिन्दू राष्ट्र की मांग कर रही है.
लोग राजशाही और हिन्दू राष्ट्र वापस क्यों चाहते हैं?
9 मार्च 2025 को नेपाल के पूर्व राजा किंग ज्ञानेंद्र शाह का काठमांडू में हजारों समर्थकों ने जोरदार स्वागत किया. इस दौरान समर्थकों ने राजशाही को फिर से बहाल करने और हिंदू धर्म को फिर से राजधर्म बनाने की मांग की. पश्चिमी नेपाल के दौरे से लौट रहे राजा ज्ञानेंद्र का स्वागत करने के लिए उनके करीब 10 हजार समर्थकों ने काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट के मेन गेट को जाम कर दिया.
बताया गया कि भीड़ में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के सदस्य, कार्यकर्ता और आम लोग शामिल थे. कुछ के हाथ में तो सीएम योगी के पोस्टर भी दिखे. इसके बाद से नेपाल में ये जोर पकड़ने लगी है. लोग नेपाल के वामपंथी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ हैं.
ज्ञानेन्द्र के स्वागत में हुई रैली में शामिल लोगों ने कहा कि वे देश को और बिगड़ने से रोकने के लिए राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव चाहते हैं. राजनीति के जानकारों का कहना है कि नेपाल की राजनीति में ‘राजशाही की ओर यह मोड़’ भ्रष्ट सरकारों के खिलाफ गहरा असंतोष व्यक्त कर रहा है.
वर्ष 2008 में संसद ने नेपाल की हिंदू राजशाही को खत्म करने के लिए मतदान किया. तब से नेपाल में 13 सरकारें आ चुकी हैं और देश के बहुत से लोग गणतंत्र से निराश हैं. उनका कहना है कि यह सब राजनीतिक स्थिरता लाने में पूरी तरह से विफल रहा है और नेपाल की गिरती अर्थव्यवस्था और व्यापक भ्रष्टाचार के लिए सरकारें हैं.
जानकारों का यह भी मानना है कि नेपाल में भारत की हर पार्टी और विचारधारा का प्रभाव पड़ता है. नेपाल पर पड़ रहा हिंदुत्व का प्रभाव भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है.
नेपाल का धार्मिक ढांचा
नेपाल के केंद्रीय जनसांख्यिकी ब्यूरो द्वारा पेश की गई 2021 की एक जनगणना रिपोर्ट बताती है कि इस देश में सबसे बड़ा धर्म हिंदू है. इस जनगणना में नेपाल में हिंदुओं की जनसंख्या 81.19 प्रतिशत (2,36,77744) थी. नेपाल में दूसरा सबसे ज्यादा माना जाने वाला धर्म बौद्ध है.
नेपाल में इस धर्म के मानने वाले लोग 8.2 प्रतिशत (23,94549) थे. वहीं नेपाल में 14,83060 लोग इस्लाम को मानने वाले थे और वे कुल जनसंख्या का 5.09 प्रतिशत थे. हालांकि इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक में हिंदुओं और बौद्धों की जनसंख्या में कमी आई है, वहीं मुसलमानों, ईसाइयों और किरात की संख्या बढ़ गई है.
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