छत्तीसगढ़ विधानसभा में मिशनरियों द्वारा जनजातियों के धर्मांतरण का मुद्दा उठा. इस पूरे धर्मांतरण के प्रकरण में विदेशी फंडिंग को लेकर भी बात हुई. बस्तर जिले से विधायक केशकाल नीलकंठ टेकाम ने कहा कि बस्तर के 70 प्रतिशत गांवों में धर्मातरण जोर-शोर से चल रहा है. इसमें सीधे तरीके से विदेशी फंडिंग का इस्तेमाल हो रहा है.
तकरीबन यही स्थिति छत्तीसगढ़ के उन जिलों की स्थिति है, जो जनजातीय बाहुल्य हैं. विधानसभा में इसका जवाब भी आया कि छत्तीसगढ़ में ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित 364 संस्थाएं थी, जांच के बाद 84 संस्थाओं की फंडिंग रोकी गई. 127 की वैधता भी खत्म की गई है. सवाल ये है कि धर्मांतरण से जुड़े सख्त कानून होने के बाद भी आखिर क्यों नहीं रुक रहे कंवर्जन के मामले? कौन हैं इसके लिए दोषी?
छत्तीसगढ़ हो या देश के दूसरे राज्य धर्मातंरण एक गंभीर समस्या तो है ही. चाहे संसद हो या विधानसभा के सत्र, यहां इससे जुड़े मामले उठते रहते हैं. आम लोगों में भी इसे लेकर बहस छिड़ी रहता है. इसे रोकने की मांग उठती है और इसके लिए और कड़े कानून लाने को भी कहा जाता है. राज्य में भी कोई न कोई कानून तो होता है जो धर्मांतरण को रोकने से जुड़ा होता है. इसके बाद भी कन्वर्जन नहीं रुक रहा है. तो इसके लिए यह जानना जरूरी है कि सिर्फ कानून बन जाने से ही इसे नहीं रोका जा सकता है.
जो कानून हैं उसमें जबरन धर्मांतरण रोकने की बात है नाकि अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करने की. धर्मांतरण करने वाले लोग और संस्थाएं इसी बात का फायदा उठाती हैं. ऐसी संस्थाएं धर्मांतरित लोगों का इस तरह से ब्रेनवाश करती हैं कि वो कहते ही नहीं कि उनका जबरन कंवर्जन हुआ है.
ये जो ईसाई मिशनरीज से जुड़ी कंवर्जन कराने वाली संस्थाएं हैं. उनका धर्मांतरण का एक तरीका है. वे पहले एक ऐसे क्षेत्र को चुनते हैं जहां गरीबी, अशिक्षा और असहाय लोग होते हैं. उन्हें जिस क्षेत्र का धर्मांतरण कराना होता है तो उस क्षेत्र में पहले अस्पताल खोला जाता है, प्राइमरी स्कूल्स खोले जाते हैं. वहां निशुल्क इलाज किया जाता है, मुफ्त शिक्षा दी जाती है. वहां पर धर्म विशेष के लोगों को नियुक्त किया जाता है. धर्म विशेष के लोगों के लिए जरूरी होता है कि वह रोज प्रार्थना करें तो उसके लिए सरकार से परमिशन लेकर चर्च बनाया जाता है. उसके बाद धर्म का प्रचार शुरू होता है.
देश में धर्म का प्रचार करने पर भी कोई रोक नहीं है. जब लोगों को निशुल्क चिकित्सा, मुफ्त शिक्षा, बिना कुछ किए आर्थिक मदद की आदत पड़ जाती है तो उनको बताया जाता है कि यह सब सुविधाएं अब आगे भी चाहिए तो धर्म परिवर्तन कर लो. पहले सुविधाओं की आदत डाली जाती है, उसके बाद लोगों का धर्म परिवर्तन आसान हो जाता है. इस तरह ऐसे धर्म परिवर्तनों को कोई नहीं कह सकता कि जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया है.
दरअसल, मिशनरियां जो गरीबों और जनजातियों के लिए सेवा, सुविधा देती हैं, ये सब काम है तो सरकार का ही. सरकार जनजातीय क्षेत्रों में अच्छे अस्पताल खोले, अच्छे स्कूल शुरू करे तो लोग धर्म विशेष के अस्पताल में इलाज के लिए क्यों जाएंगे? लोग धर्म विशेष के स्कूलों में अच्छी शिक्षा के लिए क्यों जाएंगे?
ऐसे में आप कह सकते हो कि धर्म परिवर्तन के लिए सरकारें भी तो दोषी हैं. गरीब तो वहीं जाएगा ना, जहां अच्छी सुविधाएं मिलेंगी. इसके लिए समाज भी कहीं न कहीं दोषी है, सामाजिक व्यवस्था में भी ऐसी चीजें हैं जो आपस में भेदभाव से जुड़ी हैं, असमानता से जुड़ी हैं. जिसका फायदा भी ये कंवर्जन कराने वाले लोग उठाते रहे हैं और आगे भी उठाते रहेंगे.
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