मुंबई हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पण कानून के तहत अमेरिका से भारत लाया जा चुका है. अब खबर आई है कि बेल्जियम में छिपकर रह रहे पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले के आरोपी मेहुल मेहुल चोकसी को भी गिरफ्तार किया गया है. हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी और उनके भांजे नीरव मोदी पर सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक से करीब 13,578 करोड़ रुपये के गबन का आरोप है. घोटाले का पता लगते ही साल 2018 में मेहुल चौकसी और नीरव मोदी देश छोड़कर भाग गए थे. बताया जा रहा है कि भारत सरकार ने मेहुल चोकसी की गिरफ्तारी को लेकर दबाव बनाया था. अब मेहुल चोकसी को जल्द भारत लाया जा सकता है, क्योंकि भारत और बेल्जियम के बीच प्रत्यर्पण संधि है. आईए जानते हैं कि क्या है प्रत्यर्पण कानून और भारत के कितने देशों के साथ है यह संधि?
कैसे शिकंजे में आया चोकसी?
बता दें कि वर्ष 2020 में भारत और बेल्जियम के बीच प्रत्यर्पण संधि हुई थी. भारत और बेल्जियम के बीच होने वाले इस नए समझौते ने 1901 में ब्रिटेन और बेल्जियम के बीच हुई संधि का स्थान लिया, जो स्वतंत्रता हासिल करने से पूर्व भारत पर भी लागू हो गई थी. फिलहाल वह संधि ही भारत और बेल्जियम के बीच लागू है. मेहुल चौकसी ने एंटीगुआ और बरबूडा की नागरिकता ले रखी है और भारत की इन दोनों देशों के साथ कोई प्रत्यपर्ण संधि नहीं है. बताया जा रहा है कि जब चौकसी बेल्जियम आया, तभी से एजेंसियां एक्टिव हो गई थीं. बेल्जियम के साथ भारत को प्रत्यर्पण संधि का फायदा मिला और मेहुल की गिरफ्तारी हो सकी.
क्या है प्रत्यर्पण संधि?
प्रत्यर्पण एक जटिल कानूनी प्रक्रिया है जो सीमा पार अपराधों से निपटने और अपराधियों को न्याय के दायरे में लाने में सहायता करता है. यह पूरी प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय कानून और संधि के अधीन है. इससे किसी व्यक्ति को एक क्षेत्राधिकार से दूसरे क्षेत्राधिकार में स्थानांतरित किया जाता है, ताकि उस पर किए अपराध पर मुकदमा चलाया जा सके या सजा सुनाई जा सके. यह प्रक्रिया आमतौर पर तब होती है, जब एक व्यक्ति किसी अपराध के लिए एक देश में आरोपी या दोषी है और वह दूसरे देश में भाग कर जाता है.
भारत का प्रत्यर्पण कानून कब से लागू है?
भारत का प्रत्यर्पण कानून वर्ष 1962 के प्रत्यर्पण अधिनियम से नियंत्रित है. यह भारत और दूसरे देशों के बीच लागू प्रत्यर्पण संधियों द्वारा शासित है. प्रत्यर्पण कानून 1962 भारत और भारत से विदेशों में प्रत्यर्पित करने वाले दोनों व्यक्तियों पर लागू होता है.
कहां लागू होता है प्रत्यर्पण कानून?
दोहरी आपराधिकता: प्रत्यर्पण कानून आमतौर पर उन मामलों में लागू होता है, जहां अपराध दोनों देशों में गैर कानूनी होता है.
राजनीतिक अपराध: कई देशों में राजनीतिक अपराधों के लिए प्रत्यर्पण की अनुमति नहीं दी जाती है.
मानवाधिकार: प्रत्यर्पण कानून मानवाधिकारों की रक्षा का भी सपोर्ट करता है, जैसे उचित प्रक्रिया और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार.
पारस्परिकता: प्रत्यर्पण कानून आमतौर पर दो देशों के बीच समझौता होता है, जिसका अर्थ है कि दोनों देश एक दूसरे के साथ प्रत्यर्पण करने के लिए राजी होते हैं.
भारत की कितने देशों के साथ है प्रत्यर्पण संधि?
भारत ने अब तक 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि की है और 12 देशों के साथ प्रत्यर्पण व्यवस्था बनाई है. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, रूस, फ्रांस, यूएई, नेपाल, सऊदी अरब, जर्मनी, बांग्लादेश जैसे कई अहम देशों के साथ भारत की कानूनी समझौते हैं, ताकि कोई भी भगोड़ा अपराधी कानून से बच न सके. यहां यह जान लेना आवश्यक है कि प्रत्यर्पण संधि और प्रत्यर्पण व्यवस्था में कुछ अंतर है. दोनों ही किसी व्यक्ति को एक देश से दूसरे देश में स्थानांतरित करने से संबंधित हैं, लेकिन वे कानूनी रूप से अलग-अलग हैं. प्रत्यर्पण संधि एक औपचारिक, लिखित समझौता होता है, जबकि प्रत्यर्पण व्यवस्था एक अनौपचारिक, आपसी सहमति होती है.
भारत में प्रत्यर्पण का कामकाज कौन सी एजेंसी करती है?
विदेश मंत्रालय का कांसुलर, पासपोर्ट और वीजा विभाग (सीपीवी) केंद्रीय प्राधिकरण है जो प्रत्यर्पण अधिनियम को नियंत्रति करता है. यह आने वाले और जाने वाले प्रत्यर्पण अनुरोधों पर विचार करता है. भारत की ओर से प्रत्यर्पण के लिए अनुरोध केवल विदेश मंत्रालय करता है, जो राजनयिक चैनलों के माध्यम से संबंधित देश को औपचारिक रूप से प्रत्यर्पण के लिए अनुरोध करता है.
अब माल्या, नीरव या ललित में किसका नंबर
माना जा रहा है कि शराब कारोबारी और भगोड़े विजय माल्या को भी भारत लाया जा सकता है. नीरव मोदी लंदन में मनी लॉन्ड्रिंग मामले को लेकर कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहा है. वहीं, पूर्व उद्योगपति और इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के संस्थापक ललित मोदी ने वनआतु की नागरिकता हासिल कर ली है. इसका मतलब है कि ललित मोदी को स्वदेश लाना अब और मुश्किल हो गया है. 15 वर्ष पहले (साल 2010) भारतीय जांच एजेंसियों की आंखों में धूल झोंककर विदेश भाग चुके ललित मोदी ने न सिर्फ भारतीय नागरिकता छोड़ने का आवदेन भारत सरकार को भेजा है, बल्कि प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटे से द्वीपीय देश वनआतु की नागरिकता भी ले ली है. अब अगर वो वहां से निकलेगा, तभी उसे लाया जा सकेगा.
अब तक इन अपराधियों को लाया जा चुका है भारत
तहव्वुर राणा: 64 वर्ष का राणा, 2008 के मुंबई आतंकी हमले के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक डेविड हेडली का करीबी था. उसे 10 अप्रैल 2025 को अमेरिका से भारत लाया गया.
छोटा राजन: दाऊद इब्राहिम का करीबी और अंडरवर्ल्ड डॉन. उसे 6 नवंबर, 2015 को इंडोनेशिया से भारत लाया गया. इसे डी-कंपनी के नेटवर्क को तोड़ने की दिशा में भारत की बड़ी सफलता माना गया.
अबू सालेम: वर्ष 1993 मुंबई ब्लास्ट का मुख्य आरोपी. हत्या और वसूली जैसे मामलों में भी आरोपी रहा. 11 नवंबर, 2005 में पुर्तगाल से भारत लाया गया.
क्रिश्चियन मिशेल: अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर घोटाले में बिचौलिया. दिसंबर 2018 में यूएई से भारत लाया गया. इसे रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत की बड़ी सफलता माना गया.
रवि पुजारी: अंडरवर्ल्ड डॉन रवि पुजारी को साउथ अफ्रीका में पकड़ा गया था. फरवरी 2020 में सेनेगल से भारत लाया गया. उस पर 200 से ज्यादा केस दर्ज हैं.
फतेह सिंह: दिल्ली के कुख्यात गैंगस्टर नीरज बवाना का करीबी साथी फतेह सिंह को 2023 में थाईलैंड से भारत प्रत्यर्पित किया गया था. वह हत्या, वसूली और अन्य गंभीर आपराधिक मामलों में वांछित था. फतेह सिंह को दिल्ली के संगठित अपराध नेटवर्क में एक अहम कड़ी माना जाता था.
राजीव सक्सेना: अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले से जुड़े आरोपी राजीव सक्सेना को 2019 में यूएई (संयुक्त अरब अमीरात) से भारत लाया गया. वह मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) और अवैध पैसों को इधर-उधर पहुंचाने के आरोपों का सामना कर रहा है. उसकी वापसी के बाद इस घोटाले की वित्तीय लेन-देन की जटिल परतें सामने आने लगीं, जिससे जांच एजेंसियों को बड़ी सहायता मिली.
कमेंट