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जातिगत जनगणना के दायरे में ईसाई समुदाय… जानें कनवर्टेड हुए ईसाइयों की स्थिति

दुख की बात है कि कुछ भारतीय चर्चों के भीतर जाति-आधारित भेदभाव किया जाता है, जो ईसाई धर्म के समतावादी सिद्धांतों के विपरीत हैं. यहां दलित ईसाइयों के लिए बैठने की अलग व्यवस्था, अलग कब्रिस्तान और चर्च नेतृत्व में उनकी भागीदारी सुनिश्चित नहीं होती.

Editor Ritam Hindi by Editor Ritam Hindi
May 4, 2025, 05:16 pm IST
जातिगत जनगणना से पहले ईसाइयों की स्थिति

प्रतीकात्मक तस्वीर

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भारत में आजादी के बाद पहली बार जातिगत जनगणना होने जा रही है. कैबिनेट कमेटी ऑफ पॉलिटिकल अफेयर्स (CCPA) ने इसको मंजूरी दे दी है. खास बात यह है कि इस बार की जनगणना में हिंदुओं की जातियों के अलावा मुसलमान और ईसाइयों की जातियों की भी गिनती होगी. बता दें अभी तक केवल हिन्दुओं की एससी (SC) और एसटी (ST) कम्यूनिटी की ही गिनती होती है लेकिन अब अन्य धर्मों की जातियों की भी गणना होगी. जिससे उनके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति के एग्जेक्ट आकंड़े सामने आ सकेंगे.

भारत में ईसाइयों के कितने संप्रदाय?

भारत में ईसाइयों के कई संप्रदाय हैं, जिन्हें मुख्य रूप से 3 कैटेगिरी में बांटा जा सकता है: कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स. भारत में कैथोलिकों की संख्या सबसे अधिक लगभग 73% है, जिसके बाद प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स आते हैं.

ईसाईयों की बात करें तो सीरियन क्रिश्चियन, गोयन क्रिश्चियन, तमील क्रिश्चियन, एंगलो इंडियन, नागा क्रिश्चियन आदि हैं. इन सभी क्रिश्चियन की भाषा, संस्कृति और आर्थिक स्थिति एक दूसरे से काफी अलग होती है.

1. कैथोलिक: यह भारत में ईसाईयों का सबसे बड़ा एकल संप्रदाय है. जिसमें रोमन कैथोलिक के साथ-साथ सिरो-मालाबार कैथोलिक चर्च और सिरो-मलंकारा कैथोलिक चर्च भी शामिल हैं.

2. प्रोटेस्टेंट: प्रोटेस्टेंट संप्रदायों में कई अलग-अलग चर्च शामिल हैं, जैसे कि बैप्टिस्ट, मेथोडिस्ट चर्च.

3. ऑर्थोडॉक्स:  ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों में सेंट थॉमस क्रिश्चियन शामिल हैं, जो केरल में पाए जाते हैं. इनमें मलंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च और जेकोबाइट सीरियन क्रिश्चियन चर्च शामिल हैं.

भारत में ईसाइयों की आबादी

ईसाई भारत का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में ईसाइयों की कुल आबादी 2.6 करोड़ थी. जो भारत की आबादी का 2.3 प्रतिशत हैं. भारत के 3 राज्यों की कुल आबादी में 75% से ज्यादा ईसाई रहते हैं. वहीं 4 राज्य ऐसे हैं. जहां बड़ी संख्या में ईसाई लोग निवास करते हैं.

ये भी पढ़ें-  जातिगत जनगणना के दायरे में मुस्लिम समुदाय… जानें ‘पसमांदा’ समेत सभी बिरादरियों की स्थिति

ईसाई बहुल आबादी वाले राज्य

सबसे ज्यादा आबादी 61 लाख ईसाईयों की आबादी केरल में निवास करती है. नागालैंड में 17 लाख यानि 87.93 प्रतिशत लोग रहते हैं. इसका मतलब है कि सबसे ज्यादा ईसाइयों की संख्या केरल में है तो वहीं प्रतिशत के हिसाब से नागालैंड ईसाई बहुल राज्य है.

Source: 2006 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट

बता दें ईसाई धर्म में कन्वर्ट होने वाले ज्यादातर लोग हिंदू धर्म से हैं. भारत में ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले लोगों की ज्यादा संख्या SC-ST समुदाय की है. यहां जनरल कास्ट के 33.4 प्रतिशत, ओबीसी के 24.8 प्रतिशत और एसटी 32.8 प्रतिशत और एससी के 9 प्रतिशत हैं.

सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव

2021 में हुए प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, 0.4 प्रतिशत लोग पहले हिंदू थे. जो अब क्रिश्चियन बन गए. दक्षिण भारत में हिंदुओं का सबसे ज्यादा धर्मांतरण हुआ है. सर्वे के अनुसार, धर्म परिवर्तन करने वालों में करीब 50 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति है. जबकि 14% एसटी, जबकि 26% ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं.

इन लोग ने अच्छे जीवन स्तर की कल्पना के लिए ईसाई धर्म अपनाया था लेकिन यहां आकर भी उनके जीवन पर कोई खास असर नहीं हुआ. ईसाई धर्म अपनाने के बाद उनके साथ भेदभाव किया जाता है. भारत में हिंदू धर्म से ईसाई बनने वालों की स्थिति काफी दयनीय और गंभीर चुनौतियों से भरी हुई है. उन्हें सामाजिक, आर्थिक क्षेत्रों में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

ईसाई धर्म सैद्धांतिक रूप से जातिभेद को अस्वीकार करता है, लेकिन हिन्दू धर्म से परिवर्तित हुए लोग, खासकर दलित (पिछड़ी जाति) के ईसाई, अक्सर जाति-आधारित भेदभाव का सामना करते हैं. भारतीय समाज में जाति व्यवस्था की गहरी जड़ें होने के कारण, उनकी पूर्व जाति से जुड़ा सामाजिक स्तर अक्सर उनका पीछा नहीं छोड़ता.

चर्चों के भीतर भेदभाव: दुख की बात है कि कुछ भारतीय चर्चों के भीतर जाति-आधारित भेदभाव किया जाता है, जो ईसाई धर्म के समतावादी सिद्धांतों के विपरीत हैं. यहां दलित ईसाइयों के लिए बैठने की अलग व्यवस्था, अलग कब्रिस्तान और चर्च नेतृत्व में उनकी भागीदारी सुनिश्चित नहीं होती.

कई परिवर्तित लोग, विशेषकर गरीब पृष्ठभूमि के, आर्थिक रूप से कमजोर बने रहते हैं और उन्हें बेहतर अवसरों तक पहुंचने में कठिनाई होती है.

धर्मांन्तरण के खिलाफ इन राज्यों में कानून

2021 तक भारत के 9 राज्यों में धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून लागू किया जा चुका है.

1.        ओडिशा- 1967

2.        छत्तीसगढ़- 1968, 2006 (संशोधन कानून)

3.        मध्य प्रदेश- 1968, 2021 (संशोधन कानून)

4.        अरूणाचल प्रदेश- 1978

5.        गुजरात- 2003

6.        हिमाचल प्रदेश- 2006, 2019 (संशोधन कानून)

7.        झारखंड- 2017

8.        उत्तराखंड- 2018

9.        उत्तर प्रदेश- 2021

भारत में कब, कहां और कैसे हुई ईसाई धर्म की शुरूआत?

माना जाता है कि भारत में ईसाई धर्म की शुरूआत केरल से हुई थी. ईसा मसीह ने सूली पर चढ़ने से पहले अपने 11 शिषेयों को पूरी दुनिया में ईसाई धर्म और अपने उपदेशों को फैलाने के कहा.  जिसके बाद यरूशलम में हुई बैठक में इसके लिए पूरी को आपस में बांट लिया.

भारत में ईसाई धर्म को फैलाने की जिम्मेदारी सेंट थॉमस को मिली. कई इतिहासकारों का मानना है कि सेंट थॉमस 52वीं ईस्वी में समुद्र के रास्ते केरल स्थित मालाबार तट पहुंचे. उन्होंने यहां पलायूर में भारत के पहले चर्च की स्थापना की. सेंट थॉहामस 20 सालों तक केरल और तमिलनाडु में रहे. उन्होंने यहां उन्होंने 6 अन्य चर्च बनवाएं.

इसके बाद उन्होंने पूर्वी और चीन तक पहुंचे और भारत वापस आकर चेन्नई में ही बस गए. उन्होंने यहां दूसरे धर्म के लोगों को भी ईसाई धर्म स्वीकार करने के लिए राजी कर लिया. इसके बाद उसने बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन कराया.

72 वीं ईस्वी में दक्षिण भारत के स्थानीयों ने सेंट थॉमस की हत्या कर दी. क्योंकि वह थॉमस के ईसाई प्रचार से नाराज थे. अभी भी चेन्नई में मयलापुर में उनका मकबरा है. माना जाता है कि सेंट थॉमस जिस वक्त भारत आए थे, उस समय कई यूरोपियन देशों में ईसाई धर्म नहीं था. इसलिए भारत में ईसाई धर्म की जड़ें कई यूरोपियन देशों से पहले ही फैल चुकी थीं.

ये भी पढ़ें- क्या है जातिगत जनगणना? क्यों पड़ी इसकी जरूरत? जानें हर सवाल का जवाब

Tags: Caste CensusChristian CommunityConverted Christians
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