सरोजिनी नायडू को एक महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ के तौर पर जाना जाता है, उनका नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. उनके जन्मदिन 13 फरवरी को हर वर्ष महिला दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. सरोजिनी नायडू ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. जिसके चलते महिलाओं के साथ वो पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत रही हैं. सरोजिनी नायडू को कोकिला नाम से भी जाना जाता है. नायडू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरणा का स्रोत थीं. सरोजिनी नायडू एक कवयित्री और राजनीतिक कार्यकर्ता थीं. उन्हें कविता के क्षेत्र में ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ उपनाम मिला था. नायडू का महिला शसक्तिकरण में महत्वपूर्व योगदान रहा है. इसलिए उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. बता दें कि सरोजिनी नायडू भारत की पहली महिला राज्यपाल बनी थी.
कौन थी सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू का जन्म हैदराबाद के एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता अनिजाम कॉलेज के प्रिंसिपल थे. उनकी मां बरदा सुंदरी देवी चट्टोपाध्याय एक बंगाली कवयित्री थी. नायडू केवल 12 साल की उम्र में सरोजिनी ने कविताएं लिखने की शुरुआत कर दी थी. उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से मैट्रिक परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक लाकर टॉप किया था. 16 वर्ष की आयु में हायर एजुकेशन के लिए लंदन और कैम्ब्रिज चली गई थी. 19 साल की उम्र में उनका विवाह आंध्र प्रदेश के डॉक्टर पैदिपति गोविंदराजुलु नायडू से हुआ था.
सरोजिनी नायडू ने महात्मा गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नेताओं से प्रेरित होकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अहम भूमिका निभाई. उनकी राजनीतिक यात्रा सन् 1905 में बंगाल के विभाजन से शुरू हुई थी. सरोजिनी नायडू साल 1914 में महात्मा गांधी से पहली बार मिली थीं और तभी से उनके अंदर आजादी की ज्वाला पनपी. 1916 में नेहरू के साथ मिलकर ब्रिटिश उत्पीड़न को चुनौती देते हुए, बिहार के चंपारण में नील श्रमिकों के अधिकारों की वकालत की. नायडू ने 1917 में एनी बेसेंट के साथ महिला भारत संघ की सह-स्थापना की और स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की वकालत की. वर्ष 1925 में सरोजिनी नायडू को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. वो पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें अध्यक्ष बनाया गया था. सरोजिनी नायडू के बहुमुखी योगदान ने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई पर एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ी.
महिलाओं के अधिकार के लिए संघर्ष
सरोजिनी नायडू अक्सर महिला सशक्तिकरण के महत्व, उनके अधिकारों की बात करती थीं. सरोजिनी नायडू ने महिलाओं के अधिकारों के लिए कड़ा संघर्ष किया जिनमें से कुछ तथ्य बहुत ही महत्वपूर्ण रहे…
विधवाओं के अधिकार- नायडू ने 1908 में इंडियन नेशनल सोसाइटी की 22वीं कांग्रेस में विधवाओं के लिए शैक्षिक सुविधाओं का आह्वान किया, महिला संघ की स्थापना की, और विधवाओं के पुनर्विवाह की बाधाओं को दूर करने के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया. इन सभी विषयों को उस समय विवादास्पद माना जाता था.
मतदान अधिकार- सरोजिनी नायडू ने 1917 में, एनी बेसेंट और अन्य के साथ महिला भारतीय संघ (WIA) की स्थापना की. इस संघ का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के मताधिकारों को सुनिश्चित करना है. उन्होंने लंदन में महिलाओं के मताधिकार प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया. महिलाओं के अधिकारों को दिलाया, साथ ही अंतरराष्ट्रीय महिला मताधिकार आंदोलन में भाग लिया.
संसद में उठाया मुद्दा- नायडू ने वर्ष 1925 में भारतीय राष्ट्रीय सभा की अध्यक्षता की. वे संसद की अध्यक्षता करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. उन्होंने संसद अध्यक्ष के रूप में अपनी नियुक्ति को “भारतीय महिलाओं के लिए एक उदार श्रद्धांजलि” माना. उन्होंने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि स्वतंत्रता केवल “महिलाओं की समानता” के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है. नायडू ने संसद में एक महिला विभाग के निर्माण का प्रस्ताव दिया. प्रस्ताव में यह तर्क दिया कि भारत में महिलाओं की मान्यता पर विशेष रूप से चर्चा की जानी चाहिए. 1926 में, उनकी पहली बार महिलाओं को विधायिका में नामांकित किए जाने के रूप में सफलता हासिल की.
महिलाओं के मानवाधिकारों की लड़ाई- सरोजिनी नायडू ने WIA और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) की स्थापना की. महिलाओं के मानवाधिकारों के खिलाफ देश की लड़ाई में दोनों समूहों ने अहम भूमिका निभाई है. महिला सम्मेलन खंड और सम्मेलन के दौरान उन्होंने पुडा द्वीप समूह के खिलाफ बात की और महिलाओं से पर्दा उठाने का आग्रह किया.
सरोजिनी नायडू की उपलब्धियां
सरोजिनी नायडू को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में उनकी भूमिका के अलावा भारतीय कविता में उनको काम के लिए सराहा जाता है. 1905 में उनका कविता संग्रह “गोल्डन थ्रेशोल्ड” शीर्षक से प्रकाशित हुआ. बाद में, उन्होंने “द बर्ड ऑफ टाइम” और “द ब्रोकन विंग्स” नामक दो अन्य संग्रह भी प्रकाशित किए, जिसके बाद भारत और इंग्लैंड दोनों देशों में बड़ी संख्या में पाठक आकर्षित हुए. कविता के अलावा उन्होंने अपनी राजनीतिक और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों पर ‘वर्ड्स ऑफ फ्रीडम’ जैसे लेख और निबंध भी लिखे.
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