Dandi March: 12 मार्च 1930 में महात्मा गांधी ने ‘दांडी मार्च’ की शुरुआत की थी. दांडी मार्च को नमक मार्च, दांडी सत्याग्रह और दांडी यात्रा के नाम से भी जाना जाता है. इस दांडी यात्रा की शुरुआत महात्मा गांधी के द्वारा अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव रखी थी. गांधी ने इस दिन अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से नमक सत्याग्रह के लिए दांडी तक पैदल यात्रा थी.
क्यों जरूरत पड़ी दांडी यात्रा की?
नमक एक्ट 1882 के तहत अंग्रेजों को नमक बनाने और बिक्री में एकाधिकार दिया. भारत के समुद्री तटों पर नमक सभी के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध था. भारतीयों को अक्सर आयात किए जाने वाले महंगे, ज्यादा करों वाले नमक खरीदने की जरूरत पड़ती थी. इस कानून के कारण जो गरीब थे और इसे खरीदने में असमर्थ थे, उन्हें खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा. गांधी ने फैसला लिया कि नमक के जरिए ही सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की जा सकती है. नमक जीवन की सबसे बड़ी जरूरी चीजों में से एक है.
इस तरह खत्म हुआ नमक कर
1930 में महात्मा गांधी ने बढ़ते हुए दमनकारी नमक कर के खिलाफ एक जबदरस्त प्रदर्शन वाली यात्रा का निर्णय लिया. उन्होंने 12 मार्च को दर्जनों अनुयायियों के साथ पैदल यात्रा की शुरूआत की. जब 5 अप्रैल को लगभग 385 किमी की यात्रा तय करने के बाद दांडी पहुंचे, इसमें सैकड़ों लोग शामिल हो चुके थे. 6 अप्रैल की सुबह गांधी और उनके अनुयायियों ने तट के किनारे हाथों में नमक उठाया और इस तरह तकनीकी रूप से नमक का उत्पादन किया और तत्कालीन कानून को खत्म किया.
उस दिन कोई भी गिरफ्तार नहीं हुआ था और गांधी ने अगले दो महीनों के लिए नमक कर के खिलाफ अपना सत्याग्रह जारी रखा. इस तरह उन्होंने अन्य भारतीयों को सविनय अवज्ञा के माध्यम से नमक कानूनों को खत्म करने के लिए प्रेरित किया. इस दौरान हजारों लोगों की गिरफ्तारी हुई.
इस दौरान महात्मा गांधी समेत कई बड़े आंदोलनकारी नेताओं को गिरफ्तार किया गया. सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में 21 मई को योजनाबद्ध तरीके से नमक यात्रा आगे जारी रही और लगभग 2,500 शांतिपूर्ण मार्च में से कई पर पुलिस ने हमला किया. वर्ष के अंत तक लगभग 60,000 लोग जेल में बंद थे.
जनवरी 1931 में महात्मा गांधी को हिरासत से रिहा कर दिया गया और सत्याग्रह अभियान को समाप्त करने के उद्देश्य से लॉर्ड इरविन के साथ चर्चा हुई. जिसके बाद एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौते का औपचारिक रूप दिया गया. 5 मार्च को हस्ताक्षरित किया गया और इस कानून को खत्म किया गया. इस आंदोलन ने संपूर्ण देश में अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक जन संघर्ष को जन्म दिया था.
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