Mahakumbh Mela 2025: प्रयाग प्रागैतिहासिक तीर्थ है. प्रयाग अपने आध्यात्मिक प्रभाव के लिए प्रख्यात है. प्रयाग का भारतीय सभ्यता संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है. ऋषियों-मुनियों ने प्रयाग और कुंभ का श्रद्धापूर्वक वर्णन किया है. सनातन धर्म के श्रद्धालु विश्वास रखते हैं कि तीर्थराज प्रयाग की यात्रा, दर्शन संगम स्नान से व्यक्ति सांसारिक आवागमन से मुक्त हो जाता है. कुंभ महाकुंभ पूरे संसार के लिए दुर्लभ घटना है. करोड़ों करोड़ लोग एक साथ कुम्भ में संगम स्नान कर आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाते हैं. प्रयागराज की महिमा के विशिष्ट होने के ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, भौगोलिक आदि कई कारण हैं. गंगा-यमुना-सरस्वती संगम स्थल ही प्रयाग है. इसी कारण ब्रम्हादि देवताओं ने दिशा, दिकपाल लोकपाल, पितृगण, सनत कुमार आदि महर्षि गण,नदी, समुद्र, गंधर्व ,अप्सरा भगवान विष्णु और प्रजापति ने अपना निवास बनाया है. प्राकृतिक सुंदरता भी संगम में अद्वितीय है. अनेक पक्षियों का कलरव आनंदित करता है.
प्रयाग की महिमा नारद पुराण में विशेष रूप से वर्णित है. प्रयाग का त्रिवेणी संगम कार्मिक तीर्थ है. अर्थात त्रिवेणी संगम में स्नान करने से राज्य, स्वर्ग, मोक्ष सब कुछ प्राप्त होता है. त्रिवेणी संगम में गंगा की धारा धवल और यमुना की धारा हरित है. अन्तः सलिला सरस्वती की धारा लुप्त है. नारद पुराण में लिखा है, कि मकर राशि पर सूर्य के संचार के समय समस्त तीर्थ समस्त देवता प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर पहुंच जाते हैं. प्रयाग का महत्व तब और बढ़ जाता है जब प्रत्येक बारह वर्ष बाद कुंभ योग होता है. वहीं छः वर्ष में अर्द्ध कुंभ योग आता है, इसी तरह प्रयाग के अतिरिक्त कुंभ राशि में जब बृहस्पति आ जाते हैं और मेष राशि में जब सूर्य आ जाते हैं तो हरिद्वार में कुंभ लगता है। स्कंद पुराण के अनुसार जब माघ महीने में सूर्य मकर राशि में होता है गुरु जब मेष राशि में आ जाते हैं तो प्रयाग में तीर्थराज कुंभ योग होता है. वाल्मीकि रामायण में प्रयाग का वर्णन है। महाभारत में प्रयाग की महिमा का यशोगान है. तीनों लोकों में प्रयाग सभी तीर्थों की अपेक्षा श्रेष्ठ है. पुण्य स्थान है.
प्रयाग में महात्मा बुद्ध के द्वारा धर्म प्रचार का भी उल्लेख साहित्य में मिलता है. प्रयाग के निकट कौशांबी को सम्राट अशोक ने अपनी उप राजधानी बनाया था. वैदिक, बौद्धधर्म के साथ प्रयाग क्षेत्र में जैन धर्म के उत्कर्ष और प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ द्वारा प्रयाग के वटव्रक्ष के नीचे ध्यान लगाने का उल्लेख मध्यकालीन तीर्थमालाओं में है. प्रयाग, कौशाम्बी को अति प्राचीन नगर होने के साथ बौद्धों एवं जैन धर्मों प्रचारकों, विचारकों महापुरुषों की स्थली का गौरव भी है.
चीनी यात्री ह्वेनसांग ईस्वी सन 644 के लगभग सम्राट हर्षवर्धन के साथ प्रयाग भी आया था. उसने लिखा यहां अन्न बहुत पैदा होता है. फलों के वृक्ष भी खूब पैदा होते हैं. यहां की जलवायु उष्ण है. स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है. यहां के लोग नम्र और सुशील हैं. यहां के लोगों को पठन-पाठन और विद्या से विशेष प्रेम है परंतु निर्मूल और असत्य सिद्धांत पर उनका अधिक विश्वास है. नगर में केवल दो संघाराम है. थोड़े से हीनयान संप्रदाय के अनुयाई हैं. दूसरी ओर पौराणिक देवताओं के मंदिर अधिक हैं. उनके अनुयायियों की संख्या बहुत है. नगर के दक्षिण और पश्चिम में एक चंपक वाटिका में बड़ा स्तूप है. स्तूप को सम्राट अशोक ने बनवाया था. इसकी दीवारें भूमि से अधिक ऊंची हैं. इसके बगल में एक और स्तूप है जिसमें बुद्ध के केश और नख समाधिस्थ हैं.
पुराणों में प्रयाग को सभी तीर्थों का अधिपति कहा गया है. कूर्म पुराण में प्रयाग को सर्वोतम तीर्थ कहा गया है. जैसे ग्रहों में सूर्य तथा तारागणों में चंद्रमा प्रमुख है उसी प्रकार समस्त तीर्थों में प्रयाग सर्वोतम है. पदम् पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण सहित प्राचीन ग्रन्थों में प्रयाग संस्कृति का उल्लेख और कथाएं हैं. कुंभ भगवान विष्णु का प्रतीक है. कुंभ ज्ञान बुद्धि और आध्यात्मिक विकास का प्रतिनिधित्व करता है. प्राचीन ग्रंथों में कुंभ को एक पवित्र स्थल के रूप में वर्णित किया गया है. प्रयाग में संगम तट पर मेले का आयोजन होता है. भारी संख्या में श्रद्धालु पूरे विश्व से आते हैं.
मेघदूत में कालिदास ने एक यक्ष की कहानी बताई है. वह यक्ष अपनी प्रियतमा से अलग हो जाता है. मेघदूत (बादल दूत) के माध्यम से उसे संदेश भेजता है. इस संदर्भ में कालिदास ने मेघदूत में प्रयाग का उल्लेख कुछ इन शब्दों में किया है. “त्रिवेणी संगमे यत्र गंगा यमुना सरस्वती” अर्थात “जहां गंगा यमुना और सरस्वती नदियां मिलती हैं ” कालिदास के मेघदूत में कुंभ का सीधा वर्णन नहीं है.
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)
साभार – हिंदुस्थान समाचार
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